विदेशी विनिमय बाजार

बाजार और बाजार

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सांकेतिक फोटो।

शेयर बाजार में लगातार चौथे दिन उछाल, सेंसेक्स 375 अंक और चढ़ा

एशियाई और यूरोपीय बाजारों में तेजी के साथ विदेशी संस्थागत निवेशकों (Foreign Institutional Investors) के लगातार निवेश से घरेलू शेयर बाजारों में मंगलवार को भी तेजी का रुख जारी रहा। BSE का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स लगातार चौथे कारोबारी सत्र में लाभ में रहा और 374.76 अंक यानी 0.62 प्रतिशत की बढ़त के साथ 61,121.35 अंक पर बंद हुआ। कारोबार के दौरान एक समय यह 543.14 अंक तक उछल गया था। इसी तरह नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी भी 133.20 अंक यानी 0.74 प्रतिशत चढ़कर 18,145.40 अंक पर पहुंच गया।

सेंसेक्स के शेयरों में एनटीपीसी, पावरग्रिड, डॉ रेड्डीज, इन्फोसिस, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, अल्ट्राटेक सीमेंट, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, सन फार्मा और एशियन पेंट्स प्रमुख रूप से लाभ में रहे।

एशिया के अन्य बाजारों में दक्षिण कोरिया का कॉस्पी, जापान का निक्की, चीन का शंघाई कम्पोजिट और हांगकांग का हैंगसेंग लाभ में बंद हुए। यूरोप के प्रमुख बाजारों में शुरुआती कारोबार में मिला-जुला रुख रहा। अमेरिकी बाजार वॉल स्ट्रीट सोमवार को गिरावट के साथ बंद हुए थे। इस बीच, अंतरराष्ट्रीय तेल मानक ब्रेंट क्रूड 1.45 प्रतिशत बढ़कर 94.16 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया।

शेयर बाजार के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध लिवाल बने हुए हैं। उन्होंने सोमवार को 4,178.61 करोड़ रुपये के मूल्य के शेयर खरीदे।

धनतेरस पर गुलजार रहा बाजार, जमकर हुई खरीदारी

अरवल, जागरण संवाददाता। धनतेरस पर बाजार पूरे दिन गुलजार रहा। दुकानों पर लोगों की भीड़ नजर आई। लोग बर्तनों के साथ कई सामानों की खरीदारी में जुटे रहे। इससे दुकानदारों के चेहरे पर रौनक छाई रही। दिवाली पर्व से दो दिन पहले मनाए जाने वाले धनतेरस के इस पर्व पर खरीदारी को शुभ माना जाता है। खासकर बर्तनों व गहने के अलावा नई गाड़ियां और इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की बिक्री खूब हुई।

बाजारों में लोगों की भीड़ को देखते हुए पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी।शहर के दुकानदारों ने अपनी दुकानों को विशेष रूप से सजाया हुआ था। ये दुकानें खरीदारों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं। अधिकतर महिलाएं पूजा सामग्री , दीपक, रूई,और प्रसाद के लिए लड्डू खरीदतीं दिखाई दीं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों ने अपने घरों को सजाने की सामग्री की जमकर खरीदारी की।

हालांकि, सामान महंगे होने के बावजूद लोगों ने स्वदेशी सामानों की खरीदारी की। इलेक्ट्रॉनिक्स दुकानदार गुड्डू कुमार, कृष्णा कुमार, पवन कुमार ने बताया कि पिछले दो वर्षों की तुलना में इस बार दिवाली पर अधिक खरीदारी हो रही है। पर्व को लेकर कूपन और उपहार आदि की व्यवस्था भी की गई है। इसके अलावा सुजीत सोनी, रबी सोनी, गोपाल सोनार , राजू सोनार, आदि सोना चांदी विक्रेता ने बताया कि धनतेरस पर्व पर लोगों ने जमकर चांदी के सिक्के, चांदी की लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां आदि खरीदीं।

Stock Market: बाजार में आज करना चाहते हैं कमाई, तो देखें क्या है आज के लिए संकेत

मंगलवार को शेयर बाजार में तेज गिरावट देखने को मिली थी. सेंसेक्स और निफ्टी कल 1.5 प्रतिशत से ज्यादा गिरे थे. वहीं आज के लिए विदेशी संकेत भी मिले जुले बने हुए हैं.

Stock Market: बाजार में आज करना चाहते हैं कमाई, तो देखें क्या है आज के लिए संकेत

TV9 Bharatvarsh | Edited By: सौरभ शर्मा

Updated on: Oct 12, 2022 | 8:33 AM

मंगलवार को शेयर बाजार में निवेशकों को तगड़ा नुकसान उठाना पड़ा था. शेयर बाजार करीब डेढ़ प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुआ था और निवेशकों के 4 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा बाजार में डूब गए थे. हालांकि कल कई स्टॉक्स ऐसे भी थे जहां निवेशकों को कमाई भी हुई थी. फिलहाल बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है निवेशक सतर्क रुख अपना रहे हैं और स्टॉक स्पेस्फिक एक्शन ही देखने को मिल रहा है. ऐसे में अगर आप भी बाजार में बने हुए हैं या फिर आज के बाजार में कोई सौदा करना चाहते हैं तो पहले देखें कि आज कौन से संकेत हैं जो किसी स्टॉक या सेक्टर में हलचल ला सकते हैं. इन संकेतों के आधार पर आप आज के लिए अपनी रणनीति बना सकते हैं.

क्या हैं विदेशी बाजारों के संकेत

विदेशी बाजारों के संकेत मिले जुले रहे हैं. मंगलवार को अमेरिकी बाडार में एसएंडपी और नैस्डेक गिरावट के साथ बंद हुए थे हालांकि डाओ जोंस में बढ़त देखने को मिली थी. इंडेक्स में नजर डालें तो सेंटीमेंट्स दबाव ही दिखा रहे हैं. डाओ में 0.12 प्रतिशत की बढ़त के मुकाबले नैस्डैक में 1 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट रही है. वहीं शुरुआती कारोबार में एशिया पैसेफिक बाजारों से भी संकेत मिले जुले बने हुए हैं. जापान का निक्केई और साउथ कोरिया का कोस्पी गिरावट के साथ कारोबार कर रहा था.

अर्थव्यवस्था को लेकर खबरें

कल आईएमएफ ने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं के लिए नए ग्रोथ अनुमान जारी किए हैं. इसमें भारत की अर्थव्यवस्था की ग्रोथ अनुमानों में कटौती की गई है. वहीं दुनिया भर के लिए ग्रोथ अनुमान घटाया गया है. इसके साथ कई विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लेकर भी स्लोडाउन की चिंता जताई गई है. वहीं आईएमएफ ने चेतावनी दी है कि सबसे बुरा वक्त अभी आना बाकी है. वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक खबर ये है कि कच्चे तेल की कीमतों में लगातार तीसरे सत्र में गिरावट देखने को मिली है. फिलहाल ब्रेंट 94 डॉलर प्रति बैरल के स्तर से नीचे है. कीमतों में ये गिरावट दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में सुस्ती और चीन की कोविड को लेकर सख्त नीतिया हैं

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क्या हैं घरेलू संकेत

आज कई कंपनियां अपने नतीजे जारी करने वाली हैं. जिनका असर इनके स्टॉक और सेक्टर पर देखने को मिल सकता है. इन कंपनियों में विप्रो, एचसीएल टेक्नोलॉजी, स्टर्लिंग एंड विल्सन रिन्यूअबल एनर्जी, 7एनआर रिटेल, आर्टसन इंजीनियरिंग, मंगलम इंडस्ट्रियल फाइनेंस, मेगा निर्माण, नेशनल स्टैंडर्ड, नेक्स्ट डिजिटल, सनतनगर एंटरप्राइजेस, स्टैंडर्ड कैपिटल शामिल हैं.

शिक्षा का बाजार और समाज

अब शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के बजाय केवल डिग्री हासिल करना भर रह गया है।

शिक्षा का बाजार और समाज

सांकेतिक फोटो।

ज्योति सिडाना

अब शोध का उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति के बजाय केवल डिग्री हासिल करना भर रह गया है। इसका बड़ा कारण यह भी है कि डिग्रियों के बिना शिक्षण संस्थानों में पदोन्नति असंभव हो गई है। जब शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक जाए तो उसके परिणाम कितने हानिकारक हो सकते हैं, वर्तमान दौर के संकटों में
इसे समझा जा सकता है।

शोध और विकास के बीच गहरा संबंध है। शोध कार्यों के नतीजों के आधार पर ही विकास कार्यों के लिए नीतियां बनाई जाती हैं। इसलिए अकादमिक संस्थानों में किए जाने वाले शोध देश के समग्र विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होते हैं। विज्ञान नीति पर चर्चा करते हुए एक बार प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर ने कहा था कि भारत सरकार और विभिन्न सरकारों ने विज्ञान एवं अन्य अनुसंधानों को दिशा देने के लिए अनेक शोध संस्थान स्थापित किए हैं, ताकि एक वैज्ञानिक अपने विचार एवं क्रियाओं की स्वतंत्रता के साथ एक स्वायत्तशासी परिवेश में सक्रिय हो सके।

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लेकिन इन संस्थानों के प्रशासनिकीकरण, युवा वैज्ञानिकों के लिए शोध संबंधी रोजगार का ह्रास, विश्वविद्यालयों में विज्ञान एवं समाज विज्ञान विषयों की उपेक्षा और इन क्षेत्रों में कार्यरत विशेषज्ञों की तुलनात्मक रूप से कम प्रतिष्ठा आदि ऐसे पक्ष हैं जो भारत की ज्ञान अर्थव्यवस्था के विकास के समक्ष गंभीर चुनौती पेश करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से अकादमिक संस्थानों में किए जाने वाले शोध कार्यों की गुणवत्ता पर संदेह किया जाता रहा है। साथ ही वैश्विक पायदान में भी हमारा कोई विश्वविद्यालय उच्च स्थान प्राप्त नहीं कर सका है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या वास्तव में उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में शोध की स्थिति इतनी खराब है कि उसमें नवाचार, नवीनता, वैधता जैसे तत्वों का अभाव है? अगर ऐसा है तो क्यों? यह सोचने का विषय है?

वर्ष 2020 में कोविड के दौर में वैज्ञानिक शोधों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। देखा जाए तो लगभग एक लाख से ज्यादा शोध लेख विभिन्न वैज्ञानिक पत्र-पत्रिकाओं में छपे। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इन वैज्ञानिक लेखों की जो बहुस्तरीय बौद्धिक समीक्षा होती थी, अब वह समाप्त-सी हो गई है जिसके कारण अकादमिक धोखाधड़ी और अनैतिक व्यवहार बढ़ गया है। इसलिए वैज्ञानिक शोध आलेखों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ गुणवत्ता में गिरावट भी आती गई। देखा जाए तो यह न केवल शैक्षणिक जगत के लिए अपितु समाज व राष्ट्र के विकास के लिए भी बाजार और बाजार बाजार और बाजार गंभीर चिंता का विषय है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि वैज्ञानिक शोध जो एक निश्चित परिणाम लेकर विकसित होने चाहिए, वे अब नहीं हो रहे हैं। ऐसा लगने लगा है कि वर्तमान में हो रहे शोध विशेष रूप से विज्ञान के क्षेत्र में किए जाने वाले शोध बाजार को लाभ पहुंचाने वाली सूचनाएं ही उपलब्ध करवाने में जुटे हैं। जबकि वैज्ञानिक सूचनाएं पूर्वाग्रहों व व्यक्तिगत मूल्यों से रहित और विश्वसनीय होनी चाहिए, न कि बाजार केंद्रित। महामारी के दौर में कुछ दवाइयों के दुष्प्रभाव या किसी टीके से रोगी की मृत्यु होने या किसी अमुक दवा से कोविड से पूरी तरह स्वस्थ होने की खबरे आए दिन सुर्खियों में थी। फिर बाद में उनके खंडन या स्पष्टीकरण भी सामने आते रहे। ऐसी सूचनाएं तभी अस्तित्व में आ सकती हैं जब किसी शोध लेख को संबंधित विशेषज्ञों के समूह द्वारा समीक्षा किए बिना प्रकशित कर दिया जाए।

इस तरह की सूचनाओं ने समाज में लोगों में भय और भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। परिणामस्वरूप ऐसी घटनाएं भी सामने आर्इं, जिसमें लोगों ने कोविड की चपेट में आने से पहले ही सिर्फ खौफ और गफलत के कारण अपनी जान तक दे दी। इस तरह की भ्रामक और मिथ्या सूचनाओं को सार्वजानिक करना क्या अकादमिक बेईमानी नहीं कहा जाना चाहिए? कोई भी शोध या सूचना, चाहे वह चिकित्सा के क्षेत्र से संबंधित हो या राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक या फिर अर्थव्यवस्था से जुड़ी हो, बिना किसी बौद्धिक समीक्षा के सार्वजानिक नहीं की जानी चाहिए। यह शोधकर्ता और सूचनादाता की नैतिक जिम्मेदारी होती है। ऐसा न होने पर समाज में फैलने वाली अव्यवस्था और भय के लिए कौन जिम्मेदार होगा? यह विचारणीय विषय है।

इस दौर में ऑनलाइन राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों-सम्मेलनों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है। इसमें न केवल विषय विशेषज्ञों के विवेचन और विश्लेषणों में भी कमी आई है बल्कि बाजार और बाजार एक सामान्य जन के रूप में विषयों पर विवेचन और विमर्श बढ़ रहे हैं। एक और चुनौती जो सामने आई है, वह यह है कि वेबीनार में बिना सभागिता किए केवल फीस जमा करके या केवल जानकारी संबंधी फॉर्म भर कर ही प्रमाणपत्र लेना आसान हो गया है।

क्योंकि एपीआइ स्कोर इस बात पर निर्भर करता है कि आपके पास अकादमिक कार्यक्रमों में सहभागिता के कितने प्रमाणपत्र हैं, न कि इस बात पर कि आपने कितने शोध आलेख प्रस्तुत किए, उनकी गुणवत्ता और वर्तमान में उनकी प्रासंगिकता क्या है। ऑनलाइन वेबिनार के दौर में हर कोई अधिकाधिक प्रमाण पत्र एकत्र करने में जुटा है। इसलिए क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि महामारी का यह दौर शोध एवं सैद्धांतिक विवेचन के ह्रास का दौर है? और यदि यह वास्तव में ह्रास का दौर है तो महामारी के बाद के दौर में शोध की क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान लगा पाना कठिन नहीं है।

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