ट्रेडिंग उदाहरण

शेयर बाजार में स्क्वायर ऑफ का मतलब
स्क्वायर ऑफ शब्द को समझने से पहले इंट्राडे ट्रेडिंग को समझना जरुरी है। आइए संक्षेप में, समझते हैं की इंट्राडे ट्रेडिंग ट्रेडिंग उदाहरण क्या होता है?
इंट्राडे ट्रेडिंग, जैसा कि नाम से ही मालूम होता है।
यह दो शब्दों से जुड़कर बना है – पहला ‘इंट्रा’ और दूसरा डे। मतलब एक ही दिन के अन्दर।
यदि कोई निवेशक शेयर या सिक्योरिटी की खरीदारी और बिक्री एक ही दिन में कर देता है।
तब यह ट्रेड इंट्राडे ट्रेड कहलाता है। यह प्रक्रिया (प्रोसेस) इंट्राडे ट्रेडिंग कही जाती है।
हाँ, यह भी हो सकता है। आपने ठीक पढ़ा। यदि आप इस अब तक इस शब्द से अनजान है। आपकी जानकारी के लिए बता दे।
शार्ट सेलिंग में शेयर को आप पहले बेच सकते हो। यदि शेयर आपके डीमैट अकाउंट में नहीं है फिर भी। शर्त एक होती है। आपको शेयर उसी दिन बाजार बंद होने से पहले खरीदना होगा।
1. प्री ओपनिंग सेशन सुबह नौ बजे से के लेकर नौ बजकर सात मिनट तक होता है।
2. ऊपर कहा गया है, ” दोपहर 3:20 तक” यह समय सभी ब्रोकर पर लागू नहीं होता है। कृपया नीचे की टेबल में जाँच ले। यह समय ब्रोकर के हिसाब से अलग अलग होता है।
3. यहां पर शेयर शब्द का प्रयोग किया है। शेयर की जगह कोई अन्य सिक्योरिटी भी हो सकती है। अन्य प्रकार की सिक्योरिटी से मतलब डेरीवेटिव, कमोडिटी, करेंसी आदि से है।
स्क्वायर ऑफ का मतलब उदाहरण सहित
शेयर बाजार में स्क्वायर ऑफ का मतलब समझने के लिए हम इन उदाहरण से समझते हैं –
उदाहरण 1- यदि राम ने टाटा मोटर्स के 10 शेयर सुबह खरीदे। फिर शाम को बेच दिए। शाम को शेयर बेचना, अपनी पोजीशन को बंद करना है। पहले लिखा गया है शेयर को ‘शाम को बेचना’ इसका मतलब शाम को बेचना ही नहीं है निवेशक किसी भी समय उसी दिन बेच सकता है।
उदाहरण 2- इसके विपरीत दूसरी स्थिति एक और हो सकती है। कोई व्यक्ति, विकास सुबह सनफार्मा के 5 शेयर को शोर्टसेल करता है। बाद में खरीद लेता है। विकास ने भी शाम एक्सचेंज बंद होने से पहले अपनी पोजीशन बंद की।
उपरोक्त दोनों उदाहरणों में दोनों व्यक्तियों ने अपनी पोजीशन बंद की। यही स्क्वायर ऑफ है।
स्क्वायर ऑफ के प्रकार
स्क्वायर ऑफ दो प्रकार से हो सकता है –
- पहला, ऑटोमैटिक स्क्वायर ऑफ
- दूसरा, मैनुअल स्क्वायर ऑफ
ऑटोमैटिक स्क्वायर ऑफ, ब्रोकर के द्वारा किया जाता है। जब किसी ट्रेडर की पोजीशन खुली रह जाती है। तब ब्रोकर का सिस्टम पोजीशन को स्क्वायर ऑफ कर देता है।
इस प्रकार की परिस्थिति आम तौर पर दो कारणों से होती है। पहला, जब निवेशक अपनी पोजीशन बना के भूल जाता है। दूसरी स्थिति में, निवेशक अपनी पोजीशन को बंद ही नहीं कर पाता। अक्सर ऐसा सर्किट लगने पर होता है।
ऑटोमैटिक स्क्वायर ऑफ के प्रकार
- टाइमर आधारित (Timer Based)
- मार्केट टू मार्केट (Market to Market Base)
टाइमर आधारित स्क्वायर ऑफ मोड में, निवेशक की पोजीशन पहले से निर्धारित समय पर हो जाती है। यह समय अलग अलग ब्रोकर के हिसाब से तय होता है। आम तौर पर, यह समय तीन बज कर दस मिनट होता है। दूसरी ओर, किसी ब्रोकर का समय तीन बजकर बीस मिनट भी हो सकता है।
टाइमर बेस ऑटो स्क्वायर ऑफ की विशेषताएँ
- इक्विटी और फ्यूचर और ऑप्शन(F&O) में जितनी मार्जिन और इंट्राडे पोजीशन है वे सभी लिमिट/ क्रेडिट होने के बावजूद भी स्क्वायर ऑफ हो जाएगी।
- प्रोडक्ट टाइप डिलीवरी में नई पोजीशन तभी बन सकती है जब फंड / लिमिट विस्तार किये हो।
मार्केट टू मार्केट स्क्वायर ऑफ मोड में, किसी ग्राहक की इक्विटी और फ्यूचर और ऑप्शन(F&O) में हुई एमटीएम लॉस की गणना करने के बाद स्क्वायर ऑफ हो जाएगा।
एमटीएम बेस स्क्वायर ऑफ की विशेषताएँ
- एमटीएम लॉस की गणना करते हुए केवल बुक किये गए लाभ को ही माना जाएगा।
- प्री स्क्वायर ऑफ में 70% और ऑटोस्क्वायर ऑफ में 80% स्क्वायर ऑफ प्रतिशत सेट किया गया है।
मैनुअल स्क्वायर ऑफ, से मतलब है। निवेशक अपनी पोजीशन खुद बंद करता है।
ऑटोमैटिक स्क्वायर ऑफ का समय
ब्रोकर | ऑटो स्क्वायर ऑफ टाइम | ऑटो स्क्वायर ऑफ शुल्क |
---|---|---|
जेरोधा | 3:15 से 3:20 PM | रु 50 + 18% GST |
आईसीआईसीआई डायरेक्ट | 3:30 PM | रु 50 + 18% GST |
HDFC सिक्योरिटीज | 3:00 PM | रु 50 + 18% GST |
अपस्टॉक्स | 3:15 PM | रु 20 + 18% GST |
5 पैसा | 3:15 PM | रु 20 + 18% GST |
एंजेल ब्रोकिंग | 3:15PM | रु 50 + 18% GST |
SBIसिक्योरिटीज | 3:05 PM | रु 50 + 18% GST |
स्क्वायर ऑफ का मतलब, अपनी सेल साइड या बाय साइड पोजीशन को बंद करना होता है। सेल करना एक तरफ़ा प्रक्रिया है।
उदाहरण के लिए: रमेश ने Indusland Bank के 10 शेयर, 1200 रुपये प्रति शेयर के भाव से खरीदे। यह खरीद किसी विशेष तारिख, मान लीजिये 11 नवंबर, 2021 को हुयी।
अब यदि रमेश Indusland Bank के 10 शेयर, उसी दिन ( 11 नवंबर, 2021 ) को बेच देता है। उस स्थिति में इसे Sell Transaction भी कहा जायेगा और स्क्वायर ऑफ भी कहा जायेगा।
दूसरी स्थिति में, रमेश शेयर 11 नवंबर, 2021 के बाद कभी भी बेचता है तब यह केवल Sell Transaction बोला जायेगा।
तीसरी स्थिति में, यदि रमेश इंट्राडे शार्ट सेलिंग करता है तो बाय करने को स्क्वायर ऑफ कहा जायेगा।
यदि कोई ट्रेडर इंट्राडे पोजीशन को स्क्वायर ऑफ नहीं करता है। तब यह पोजीशन ब्रोकर के सिस्टम से स्क्वायर ऑफ की जाती है। ऐसा होने पर ट्रेडर को कॉल और ट्रेड चार्ज भी देना पड़ता है। इसलिए अपनी सारी पोसिशन्स को निर्धारित समय से ट्रेडिंग उदाहरण पहले स्क्वायर ऑफ कर देना चाहिए।
स्क्वायर ऑफ, प्रक्रिया इंट्राडे ट्रेडिंग से जुडी होती है। यदि कोई ट्रेडर इंट्राडे ट्रेड करता है। तब उसको अपनी पोजीशन स्क्वायर ऑफ करनी होती है।
यदि आपने डिलीवरी के लिए कोई शेयर खरीदा है तो वह आपके डीमैट खाते में चला जायेगा। ऐसा होने पर आपको कॉल और ट्रेड का चार्ज भी नहीं देना होता है।
शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों के लिए जरूरी खबर- 1 सितंबर से लागू होंगे नए नियम, बदल जाएगा कारोबार का तरीका…यहां जानिए सबकुछ
शेयर बाजार में पैसा लगाने वालों के लिए बड़ी खबर आई है. 1 सितंबर 2021 से शेयर बाजार में मार्जिन्स से जुड़े नियम बदल रहे है. आइए जानें इससे निवेशकों पर क्या असर होगा?
TV9 Bharatvarsh | Edited By: अंकित त्यागी
Updated on: Aug 31, 2021, 1:24 PM IST
शेयर बाजार के कामकाज पर नज़र रखने वाली संस्था सेबी (SEBI-Securities and Exchange Board of India) ने कुछ नियमों में बदलाव किया है. निए नियम 1 सितंबर से लागू हो रहे है. आमतौर पर शेयर बाजार में शेयर खरीदते और बेचते वक्त ब्रोकर्स मार्जिन्स देते है. अगर आसान शब्दों में समझें तो 10 हजार रुपये आपने अपने ट्रेडिंग अकाउंट में डाले. तो आसानी से 10 गुना मार्जिन्स के साथ 1 लाख रुपये तक के शेयर ग्राहक खरीद लेते थे. लेकिन अब ये निमय पूरी तरह से बदल गए है. आइए इसको उदाहरण के तौर पर समझते है.
पीक मार्जिन के नए नियम इंट्राडे, डिलीवरी और डेरिवेटिव (Intraday, delivery and derivatives) जैसे सभी सेगमेंट में लागू होंगे. चार में से सबसे ज्यादा मार्जिन को पीक मार्जिन माना जाएगा. सेबी ने इसके नियमों में बदलाव कर दिया है.
उदाहरण के लिए अगर रिटेल निवेशक रिलायंस इंडस्ट्रीज के एक लाख रुपये मूल्य के शेयर खरीदता है तो ऑर्डर प्लेस करने से पहले उसके ट्रेडिंग अकाउंट में 1 लाख रुपये होने चाहिए. सेबी के नए नियम के मुताबिक शेयर बेचते वक्त भी आपके ट्रेडिंग अकाउंट में मार्जिन होना चाहिए.
अब जानते हैं पीक मार्जिन्स क्या होते है-इसका मतलब यह हुआ कि आपके दिनभर के जो ट्रेड्स (शेयर खरीदे और बेचे) किए हैं क्लीयरिगं कॉर्पोरेशन उसके चार स्नैप शॉर्ट लेगा. इसका मतलब साफ है कि चार बार यह देखेगा कि दिन में जो ट्रेड हुए उसमें मार्जिन कितने हैं. उसके आधार पर दो सबसे ज्यादा मार्जिन होगा उसका कैलकुलेशन करेगा. फिलहाल आपको उसका कम से कम 75 प्रतिशत मार्जिन रखना होगा. अगर आपने नहीं रखा तो आपको इसके एवज में पेनाल्टी लगेगी. यह नियम 1 जून 2021 से शुरू हो गया. अगस्त में ये 100 फीसदी हो जाएगा.
क्यों लागू किया ये नियम -बीते कुछ महीनों में कार्वी जैसे कई मामले सामने आए है. जिसमें आम निवेशकों के शेयर बिना बताए बेच दिए गए. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि सेबी ने सोच-समझकर यह नियम लागू किया ट्रेडिंग उदाहरण है. उदाहरण के तौर पर समझें तो मान लीजिए आप सोमवार को 100 शेयर बेचते हैं. ये शेयर आपको अकाउंट से बुधवार को डेबिट होंगे. लेकिन, अगर आप मंगलवार (डेबिट होने से पहले) को इन शेयरों को किसी दूसरे को ट्रांसफर कर देते हैं तो सेटलमेंट सिस्टम में जोखिम पैदा हो जाएगा. ब्रोकिंग कंपनियों के पास ऐसा होने से रोकने के लिए हथियार होते हैं. 95 फीसदी मामलों में ऐसा नहीं होता है. सेबी ने यह नियम इसलिए लागू किया है कि 5 फीसदी मामलों में भी ऐसा न हो.
सितंबर से लागू होगा 100 फीसदी का नियम-यह पीक मार्जिन का चौथा फेज है. पहला फेज दिसंबर 2020 में शुरू हुआ था, तब 25 प्रतिशत के पीक मार्जिन लगाए गए थे. मार्च से पीक मार्जिन दोगुना बढ़कर 50 फीसदी कर दिया गया. 1 जून से 75 फीसदी हो गया है. अब सितंबर में बढ़ाकर 100 फीसदी कर दिया जाएगा. एक्सपर्ट के मुताबिक, दिसंबर से पहले मार्जिन कैलकुलेशन दिन के आखिर में करते थे. इसके बाद कार्वी और दूसरे कई मामले हुए थे. मार्केट रेगुलेटर सेबी (SEBI) ने इसके बाद पीक मार्जिन को बाहर निकाला था.
Stock Market Trading Tips: स्टॉक ट्रेडिंग से चाहिए मुनाफा तो टेक्निकल एनालिसिस पर करें गौर, चुन सकेंगे सही शेयर
नई दिल्ली, समीत चव्हाण। शेयर बाजार के निवेशक निवेश करते समय आने वाली दिक्कतों को समझते हैं, खासकर जब अस्थिरताओं पर आवश्यक जानकारी नहीं मिल पाती। बाजार में उतार-चढ़ाव के समय अनिश्चितता और बढ़ जाती है, तब निवेशक मूल्य में उतार-चढ़ाव की भविष्यवाणी नहीं कर पाते। औसत निवेशक आमतौर पर अपने निवेश/पोर्टफोलियो मैनेजर की सलाह पर या विशेषज्ञों की भविष्यवाणियों पर दांव लगाते हैं। टेक्निकल एनालिसिस की मदद से निवेशक स्टॉक चार्ट को देखकर इनसाइट्स प्राप्त कर पाते हैं और उन्हें स्टॉक में निवेश से जुड़े कैलकुलेशंस और जोखिम की जानकारी देते हैं जिससे वे हायर रिटर्न्स प्राप्त कर पाते हैं।
एक निश्चित अंतराल में शेयरों की कीमत और वॉल्यूम वैरिएशंस का अध्ययन करते हुए भविष्य के लिए कीमत का पूर्वानुमान आसान हो जाता है। टेक्निकल एनालिसिस 100 प्रतिशत सटीकता के साथ परिणाम प्रदान नहीं करता, यह सच है लेकिन जब बाजार में सुस्ती छाई हो तो सही विकल्प चुनने में यह मूल्यवान मददगार होता है। निवेश करते समय लोगों को टेक्निकल एनालिसिस के निम्नलिखित फीचर्स को समझना आवश्यक है।
शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग
शॉर्ट टर्म ट्रेडर्स टेक्निकल एनालिसिस का इस्तेमाल करते हैं और उनके लिए यह एक भरोसेमंद टूल है जो उन्हें स्टॉक के मौजूदा ट्रैजेक्टरी का अंदाज लगाने में मदद करता है। चूंकि, यह अपेक्षाकृत सीमित समयसीमा में शेयरों को खरीदने, बेचने या रखने के लिए एक रिस्की तरीका हो सकता है, पैटर्न और ट्रेंड्स का अध्ययन करने के लिए किसी विधि या कुछ टूल्स पर निर्भरता जोखिम को नियंत्रित रखने में मदद कर सकती है। इसके अलावा ट्रेडर्स इसका इस्तेमाल अनिश्चित निवेशकों को बाहर निकालने के लिए एक टूल के रूप में करते हैं। यह प्रॉमिसिंग स्टॉक्स पहचानने और सुविधाजनक निर्णय लेने का लाभ प्रदान करता है।
एंट्री और एक्जिट पॉइंट्स
स्टॉक चार्ट का एनालिसिस करके निवेशक शेयरों को खरीदने और बेचने के लिए अपने एंट्री और एक्जिट पॉइंट्स का समय निर्धारित कर पाते हैं। यह डिमांड और सप्लाई को समझने के साथ ही ट्रेंड्स को तोड़ने और अधिक से अधिक रिटर्न हासिल करने का समय तय करने में मदद करता है। स्टॉक के बारे में बहुत सारी जानकारी अक्सर लोगों को भ्रमित करती है और उनके निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करती है, ऐसे में टेक्निकल एनालिसिस महत्वपूर्ण इंडिकेटर्स को सरल बनाता है, निवेशकों के लिए ट्रेडिंग को सुव्यवस्थित करता है।
कीमत के पैटर्न्स का एनालिसिस
स्टॉक ट्रेडिंग में बुद्धिमानी से भरे निर्णय लेने के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक होने के नाते टेक्निकल एनालिसिस से प्राइस पैटर्न का एनालिसिस निवेशकों को बेस्ट प्राइस पर खरीदने या बेचने में काफी मदद कर सकता है। इससे उन्हें मूवमेंट और ओवर-वैल्यूएशन से बचने की अनुमति मिलती है क्योंकि बदलते मूल्यों की भविष्यवाणी आसान हो जाती है। वे संभावित टारगेट तय करने में भी उपयोगी हो सकते हैं, वहीं शुरुआती ट्रेंड रिवर्सल भी पहचाना जा सकता है। जैसे पैटर्न खुद को दोहराते हैं, निवेशकों को सूचित निर्णय लेने में मदद मिलती है। रोजमर्रा के कामों में टेक्निकल एनालिसिस लागू नहीं होते।
सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल
इस परिदृश्य में लंबी अवधि तक शेयरों की कीमत में एक सीमा में उतार-चढ़ाव दिखता है, जिससे स्टॉक की बिक्री और खरीद पर भविष्यवाणी करना और कॉल लेना मुश्किल हो जाता है। टेक्निकल एनालिसिस की सहायता से स्टॉक चार्ट के भीतर सपोर्ट और रेजिस्टेंस स्तरों की पहचान करने से निवेशक को खरीदने या बेचने के बारे में निर्णय लेने के लिए प्रासंगिक विकल्प मिल सकते हैं। यदि कोई विशेष स्टॉक सपोर्ट और रेजिस्टेंस सीमा को पार करता है, तो यह ट्रेडिंग करने योग्य होता है जो उसके अच्छे स्वास्थ्य और मांग को दर्शाता है।
ट्रेंड्स का एनालिसिस
चाहे वह टेक्निकल एनालिसिस टूल के इस्तेमाल की बात हो या न हो, शेयर बाजारों के मौजूदा ट्रेंड्स को समझना किसी भी निवेशक के लिए सिस्टम में प्रवेश करने से पहले की एक बुनियादी आवश्यकता है। व्यावहारिक निर्णय लेने के लिए वर्तमान और व्यापक डिग्री में बाजार के ट्रेंड्स को समझना आवश्यक है। टेक्निकल एनालिसिस किसी स्टॉक के ऐतिहासिक, वर्तमान, समग्र प्रदर्शन और स्वास्थ्य को सामने लाता है। फिर चाहे वह अपट्रेंड्स, डाउनट्रेंड्स या हॉरिजोन्टल ट्रेंड्स में रहें, निवेशक उसकी खरीद-बिक्री का फैसला बेहतर तरीके से ले सकेंगे।
मूल्य और वॉल्यूम एनालिसिस का कॉम्बिनेशन
अंत में, एक कॉम्बिनेशन के रूप में प्राइस मूवमेंट और वॉल्यूम का एनालिसिस अक्सर निवेशकों को किसी भी चाल की वास्तविकता का पता लगाने में मदद करता है। डिमांड और सप्लाई साइकिल दोनों पहलुओं में बदलाव को प्रभावित करती है। टेक्निकल एनालिसिस ट्रेड के वॉल्यूम के इतिहास के अवलोकन की अनुमति देता है। इससे स्टॉक्स के ट्रेंड्स को समझने में मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, जब स्टॉक का मूल्य बढ़ता है और परिणामी रूप से वॉल्यूम भी बढ़ता तो यह एक पॉजिटिव ट्रेंड की पहचान होती है। यदि ट्रेड का वॉल्यूम में मामूली वृद्धि है, तो इसे रिवर्स ट्रेंड के रूप में पहचाना जाता है। इस वजह से दो पहलुओं की कम्बाइंड स्टडी निवेशकों को पैटर्न बेहतर ढंग से समझने की अनुमति देता है।
इस वजह से, सही रणनीति के साथ निवेश करने के लिए, स्टॉक चार्ट्स के ओवरऑल असेसमेंट और उस समय के अनुसार ट्रेडिंग विकल्पों की उपलब्धता के लिए टेक्निकल एनालिसिस टूल फायदेमंद हो सकते हैं।
(लेखक एंजेल ब्रोकिंग लिमिटेड के टेक्निकल एंड डेरिवेटिव्स के चीफ एनालिस्ट हैं। प्रकाशित विचार उनके निजी हैं।)
कम जोखिम में ज्यादा फायदा पाने का आसान तरीका है ऑप्शन ट्रेडिंग से निवेश, ले सकते हैं बीमा
यूटिलिटी डेस्क. हेजिंग की सुविधा पाते हुए अगर आप मार्केट में इनवेस्टमेंट करना चाहते हैं तो फ्यूचर ट्रेडिंग के मुकाबले ऑप्शन ट्रेडिंग सही चुनाव होगा। ऑप्शन में ट्रेड करने पर आपको शेयर का पूरा मूल्य दिए बिना शेयर के मूल्य से लाभ उठाने का मौका मिलता है। ऑप्शन में ट्रेड करने पर आप पूर्ण रूप से शेयर खरीदने के लिए आवश्यक पैसों की तुलना में बेहद कम पैसों से स्टॉक के शेयर पर सीमित नियंत्रण पा सकते हैं।
break even point- क्या होता है ब्रेकइवन प्वॉइंट
क्या होता है ब्रेकइवन प्वॉइंट (बीईपी)?
ब्रेकइवन प्वॉइंट (Break Even Point), उत्पादन का वह स्तर होता है जिसमें उत्पादन की लागत किसी उत्पाद के लिए रेवेन्यू के बराबर होती है। अकाउंटिंग में ब्रेकइवन प्वॉइंट की गणना उत्पादन की परिवर्तनीय लागत को छोड़ कर प्रति यूनिट मूल्य द्वारा उत्पादन की फिक्स्ड लागतों को विभाजित करने के द्वारा की जाती है। निवेश करने में ब्रेकइवन प्वॉइंट अर्जित करना वह होता है, जब किसी एसेट का बाजार मूल्य उसकी मूल लागत के बराबर हो। दूसरे तरीके से कहें तो ब्रेकइवन प्वॉइंट वह उत्पादन स्तर होता है, जिसमें किसी उत्पाद का कुल रेवेन्यू कुल खर्च के बराबर होता है। ऑप्शंस ट्रेडिंग में ब्रेकइवन प्वॉइंट तब होता है जब किसी आधारभूत एसेट का बाजार मूल्य उस स्तर पर पहुंच जाता है, जिसमें खरीदार को कोई नुकसान न हो। ब्रेकइवन प्वॉइंट का उपयोग बिजनेस और फाइनेंस के विविध क्षेत्रों में होता है।
ब्रेकइवन प्वॉइंट की गणना
सामान्यतः व्यवसाय में ब्रेकइवन प्वॉइंट की गणना करने के लिए फिक्स्ड लागतों को सकल प्रॉफिट मार्जिन से भाग दिया जाता है। स्टॉक के मामले में, अगर किसी ट्रेडर ने 200 डॉलर में कोई स्टॉक खरीदा और 9 महीनों के बाद अगर यह 250 डॉलर से गिर कर फिर से 200 डॉलर पर आ गया तो इसका अर्थ हुआ कि यह ब्रेकइवन प्वॉइंट पर पहुंच गया होगा। ऑप्शन ट्रेडिंग में ब्रेकइवन प्वॉइंट की गणना के लिए इस उदाहरण पर विचार करें कि अगर एक निवेशक ने किसी स्टॉक काल ऑप्शन के लिए 10 डॉलर प्रीमियम का भुगतान किया और स्ट्राइक मूल्य 100 डॉलर है तो ब्रेकइवन प्वॉइंट 10 डॉलर प्रीमियम प्लस 100 डॉलर स्ट्राइक मूल्य या 110 डॉलर होगा।
दूसरी तरफ, अगर इसे किसी पुट ऑप्शन पर लागू किया जाए तो ब्रेकइवन प्वॉइंट की गणना 100 डॉलर स्ट्राइक मूल्य माइनस अदा किया गया 10 डाॅलर प्रीमियम अर्थात 90 डाॅलर होगी। स्टाॅक मार्केट के ब्रेकइवन प्वॉइंट को ऐसे समझा जा सकता है कि मान लीजिए किसी निवेशक ने माइक्रोसॉफ्ट स्टॉक 110 डॉलर में खरीदा। यह व्यापार का उनका ब्रेकइवन प्वॉइंट है। अगर इसकी कीमत 110 डॉलर से अधिक होगी तो निवेशक लाभ कमाएगा और अगर इसकी कीमत 110 डॉलर से नीचे है तो वह नुकसान में रहेगा।