रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार

2000 के पहले दशक में यह विदेशी मुद्रा भंडार इतना हो गया कि 16 महीने से भी ज़्यादा के आयात का भुगतान किया जा सका था। अप्रैल 2020 में तो यह 28.1 महीने तक पहुँच गया। लेकिन उसके बाद से यह लगातार कम होता गया।
RBI बैठक और विधानसभा चुनाव नतीजों पर रहेगी बाजार की नजर
RBI, 04 दिसंबर (वार्ता): अमेरिकी फेड रिजर्व के ब्याज दर में बढ़ोतरी की गति धीमी रखने के संकेत और चीन में विरोध के बाद कोविड प्रतिबंधों में ढील दिये जाने की उम्मीद में 63 हजार अंक के नये शिखर पर पहुंचा घरेलू शेयर बाजार मुनाफावसूली का शिकार होने के बावजूद बीते सप्ताह 0.92 प्रतिशत की तेजी हासिल रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार करने में कामयाब रहा और अगले सप्ताह रिजर्व बैंक (RBI) की मौद्रिक नीति समीक्षा के साथ ही विधानसभा चुनाव के नतीजों पर उसकी नजर रहेगी।
बीते सप्ताह बीएसई का तीस शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 574.86 अंक यानी 0.92 प्रतिशत की तेजी लेकर सप्ताहांत पर 62868.50 अंक और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 183.35 रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार अंक अर्थात 0.99 प्रतिशत की छलांग लगाकर 18696.10 अंक पर रहा। समीक्षाधीन सप्ताह बीएसई की दिग्गज कंपनियों से कहीं अधिक मझौली और छोटी कंपनियों में तेजी रही, जिससे बाजार को बल मिला।
विदेशी मुद्रा भंडार घटा, भुगतान संतुलन का संकट तो नहीं?
दुनिया भर के देशों के सामने आ रहे आर्थिक संकट के बीच अब भारत की आर्थिक स्थिति को लेकर आख़िर चिंताएँ क्यों उठने लगी हैं? क्या विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ रहा है इसलिए?
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विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। डॉलर के मुक़ाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। भुगतान संतुलन में भी कुछ गड़बड़ी दिख रही है। तो क्या ये किसी आर्थिक संकट की ओर इशारा करते हैं?
भुगतान संतुलन को किसी देश की आर्थिक स्थिति को पता लगाने की अहम नब्ज माना जा सकता है। अब यदि इस आधार रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार पर देखें तो भारत की आर्थिक स्थिति कितनी ख़राब या कितनी बढ़िया दिखती है? इस हालात को समझने से पहले यह समझ लें कि भुगतान संतुलन क्या है। तकनीकी भाषा में कहें तो किसी देश के भुगतान संतुलन उसके शेष विश्व के साथ एक समय की अवधि में किये जाने वाले मौद्रिक लेन-देन का विवरण है। लेकिन मोटा-मोटी समझें तो भुगतान संतुलन का मतलब है कि किसी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में अपने आयात के बिल को चुकाने की क्षमता कितनी है।
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार
(प्रारंभिक परीक्षा के लिए – विदेशी मुद्रा भंडार, विशेष आहरण अधिकार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच)
(मुख्य परीक्षा के लिए, सामान्य अध्यन पेपर 3 - भारतीय अर्थव्यवस्था, मौद्रिक नीति)
चर्चा में क्यों ?
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 30 सितंबर को 532.66 अरब डॉलर हो गया, जो जुलाई 2020 के बाद से अब तक का सबसे निम्नतम स्तर है।
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार नौवें सप्ताह गिरावट दर्ज की गई।
किसके निर्यात से भारत अधिकतम विदेशी मुद्रा अर्जित करता है?
Key Points
- विदेशी मुद्रा :
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, देश का विदेशी मुद्रा (विदेशी मुद्रा) भंडार 16 अक्टूबर 2020 को समाप्त सप्ताह में 3.615 अरब अमरीकी डालर की वृद्धि के बाद 555.12 अरब अमरीकी डालर के उच्चतम स्तर को छू गया।
- कुल भंडार में वृद्धि विदेशी मुद्रा आस्तियों (FCA) में तेज वृद्धि के कारण हुई , जो समग्र भंडार का एक प्रमुख घटक है ।
- FCA 3.53 अरब अमरीकी डॉलर से बढ़कर 512.322 अरब अमरीकी डॉलर हो गई ।
- विदेशी मुद्रा भंडार विदेशी मुद्रा में एक केंद्रीय बैंक द्वारा आरक्षित पर रखी गई संपत्ति है , जिसमें बांड, ट्रेजरी बिल और अन्य सरकारी प्रतिभूतियां शामिल हो सकती हैं ।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अधिकांश विदेशी मुद्रा भंडार अमेरिकी डॉलर में आरक्षित किए जाते हैं ।
इन सवाल-जवाब में रुपए के कमजोर होने से जुड़ा वो सबकुछ जो आप जानना चाहते हैं
डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य मुद्रा का मूल्य घटे तो रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार इसे उस मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रीशिएशन। ऐसा ही कुछ तीन दिन पहले 28 जून को रुपए के साथ हुआ है। डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा अब तक के सबसे निचले स्तर पर जा पहुंची। एक डॉलर का मूल्य 69.10 रुपए हो गया। पहली बार डॉलर का भाव 69 रुपए से अधिक हुआ। वैसे, रुपए ने इससे पहले अपना सबसे निचला स्तर नवंबर 2016 में देखा था। तब डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य 68.80 हो गया था।
आखिर कौन तय करता है रुपए का मूल्य?
हर देश के पास विदेशी मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वह अंतरराष्ट्रीय लेन-देन करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की चाल तय होती है। अगर भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर है तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। रुपये का मूल्य और विदेशी मुद्रा भंडार हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं, जिसे भारत ने 1975 से अपनाया है।