बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है?

क्रिप्टो करेंसी Goods है या Services, इस सवाल ने टैक्स अधिकारियों के पसीने क्यों छुड़ा रखे हैं?
अगर आप इस सरकारी बहस से ऊब गए हों कि क्रिप्टो करेंसी एसेट है या करेंसी, तो अब एक नई बहस आपका इंतजार कर रही है. हाल ही में बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राओं का व्यापार कराने वाले क्रिप्टो एक्सचेंजों पर पड़ी जीएसटी रेड के बाद टैक्स विभाग और क्रिप्टो इंडस्ट्री में रस्साकशी शुरू हो गई है कि क्रिप्टो करेंसी 'गुड्स' (Goods) है या 'सर्विसेज' (Services). एक ऐसी आभासी मुद्रा जिसे न कोई देख सकता है, न छू सकता है और न ही जब्त कर सकता है. न इसके मालिक का पता होता है और न ही इसकी खरीद-बिक्री यानी सप्लाई चेन ट्रेस हो सकती है. ऐसे में जब तक क्रिप्टो करेंसी पर बैन या रेग्युलेशन नहीं आ जाता, विभागों के लिए एक बड़ी चुनौती इससे टैक्स वसूलने की भी है.
डायरेक्टरेट जनरल ऑफ जीएसटी इंटेलिजेंस (DGGI) ने हाल ही में देश के कई क्रिप्टो एक्सचेंजों पर छापा मारा था. फिलहाल इनकी फीस और मार्जिन को कमाई का आधार बनाकर लाइबिलिटी तय की गई है और टैक्स जमा कराने को कहा गया है. जानकारों की मानें तो आम कमोडिटी एक्सचेंजों की तर्ज पर फीस और मार्जिन से टैक्स वसूलने का मतलब है कि बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? सरकार क्रिप्टो एजेंसियों के काम को 'सर्विसेज' मानकर चल रही है, जिस पर 18 पर्सेंट जीएसटी लगता है. लेकिन कुछ क्रिप्टो एजेंसियां इस पर कानूनी सफाई मांग रही हैं. चूंकि किसी भी कानून में क्रिप्टो करेंसी का कहीं जिक्र नहीं है और बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? न ही इसका व्यापार किसी तरह के मौजूदा ट्रेड से मेल खाता है, ऐसे में अब यह मसला जीएसटी काउंसिल या सरकार के शीर्ष स्तरों तक जाता दिख रहा है.
क्रिप्टो पर टैक्स का पेच?
क्रिप्टो करेंसी की खूबी इसका प्राइवेट वेल्थ बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? होना है. इसे कोई दूसरा न देख सकता और न जब्त कर सकता है. फिलहाल सरकार के लिए यह पता करना भी मुश्किल है कि यह किन-किन हाथों से गुजरी है. इनकम टैक्स कानून के तहत असेसमेंट, जब्ती या रिकवरी तब तक संभव नहीं, जब तक करेंसी मालिक खुद डिक्लेयर न करे कि उसने कितना इनवेस्ट किया है या विभाग उपलब्ध साक्ष्यों से यह साबित न कर दे. ऐसे में शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन भी तय नहीं हो सकता.
जहां तक जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों की बात है, अगर क्रिप्टो करेंसी को गुड्स मानकर चलें तो इसका वैल्युएशन संभव नहीं है. अभी ज्यादा से ज्यादा सिर्फ ऑपरेटर्स यानी एक्सचेंजों तक ही पहुंचा जा सकता है. उनकी फीस और मार्जिन को सर्विसेज बताकर 18 पर्सेंट जीएसटी तो लगा दिया गया है, लेकिन यहां भी कई पेच हैं. ट्रांजैक्शन फीस सेंडर्स यानी किसी को करेंसी बेचने वाले की तरफ से चुकाई जाती है. लेकिन रेसिपिएंट का पता नहीं चलने से सप्लाई ऑफ सर्विसेज का निर्धारण सही नहीं हो सकता. सबसे बड़ी समस्या यह है कि अगर कोई रेसिपिएंट या कोई क्रिप्टो एक्सचेंज देश के बाहर है, तो मौजूदा कानूनों के तहत यहां टैक्सेशन और भी मुश्किल हो जाएगा.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
जाने-माने जीएसटी कंसल्टेंट और पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (PHDCCI) की इनडायरेक्ट टैक्स कमिटी के चेयरमैन बिमल जैन ने 'दी लल्लनटॉप' को बताया-
"एक डिजिटल करेंसी, जो ब्लॉकचेन इनक्रिप्शन यानी कोडेड तकनीक से संचालित होती है. जहां यही तय नहीं है कि इसे गुड्स मानें या सर्विसेज. ट्रेड वैल्यू और प्लेस ऑफ सप्लाई जैसी मूलभूत सूचनाएं नदारद हैं. यानी कौन, कितना, किससे खरीद रहा है और किसको, कहां बेच रहा है, कुछ भी पता नहीं. ऐसे में टैक्सेबिलिटी अंधेरे में तीर मारना जैसा ही है. आप शेयर ट्रेडिंग करते हैं. सिक्योरिटीज टैक्सेबल भले न हों, लेकिन एक्सचेंज और ब्रोकरेज हाउस के डेटा के जरिए प्रोसेसिंग या ट्रांजैक्शन फीस और टैक्स तो लगता ही है. यह सब होता है, क्योंकि शेयर मार्केट रेग्युलेटेड है. जब तक क्रिप्टो करेंसी का रेग्युलेशन नहीं होगा. उससे वाजिब टैक्स वसूली संभव नहीं है."
बिमल जैन ने क्रिप्टो करेंसी के व्यापार की तुलना फर्जी चिटफंड और पिरामिड स्कीमों से की. जहां एक आदमी दूसरे से और दूसरा तीसरे से पैसा वसूलता रहता है, इस भरोसे के साथ कि आगे बहुत रिटर्न मिलेगा. लेकिन एक दिन उसका मुखिया या कंपनी ही भाग जाती है. उन्होंने बताया कि अगर सरकार ने इसे बैन या रेग्युलेट नहीं किया तो सबसे बड़ा खतरा युवा पीढ़ी के फंसने का है. नई जेनरेशन रातोंरात रिटर्न कमाने के चक्कर में क्रिप्टो में निवेश कर रही है. इसकी कोई गारंटी नहीं कि आगे वाला अपनी वित्तीय लाइबिलिटी पूरी करता रहेगा.
जीएसटी की सांकेतिक तस्वीर
बिजनेस मॉडल पर सवाल
क्रिप्टो करेंसी का व्यापार एक ऐसे कंप्यूटर नेटवर्क पर आधारित है, जहां हर टर्मिनल अपने आप में सर्वर का काम करता है. इसे पीयर टु पीयर (Peer to peer) प्लैटफॉर्म भी कहते हैं. DGGI ने क्रिप्टो एक्सचेंज WazirX से टैक्स और पेनल्टी के तौर पर 50 करोड़ की वसूली की है. लेकिन जांच के दायरे में आए Unocoin जैसे एक्सचेंजों को अभी टैक्स और पेनल्टी का फाइनल नोटिस नहीं दिया जा सका है.
इन एक्सचेंजों की शिकायत है कि सरकार यह तय नहीं कर पाई है कि उन्हें किस बिजनेस मॉडल के तहत ट्रीट किया जाए. किसी पर ई-कॉमर्स मार्केट प्लेस वाले रूल लगाए जा रहे हैं तो किसी को ब्रोकरेज रेग्युलेशन के तहत चार्ज किया जा रहा है. लेकिन जीएसटी अधिकारियों के हवाले से आई रिपोर्टों में कहा गया है कि खुद इन एक्सचेंजों का बिजनेस मॉडल एक जैसा नहीं है. मसलन, वजीरएक्स जैसे एक्सचेंज पीयर टु पीयर (Peer to peer) डील कराते हैं और इसके एवज में कमीशन चार्ज करते हैं. उन्होंने इसी को अपनी इनकम बताई है. लेकिन यूनोक्वॉइन (Unocoin) और क्वॉइनस्विच कुबेर (Coinswitch Kuber) जैसे एक्सचेंज ब्रोकर या एग्रीगेटर्स के तौर पर काम कर रहे हैं. ये यूजर्स से उनके मुनाफे पर एक तय रकम चार्ज करते हैं.
अधिकारियों के मुताबिक इस मॉडल की जांच और रेग्युलेशन की ज्यादा जरूरत है. चूंकि जीएसटी कारोबार के वैल्यू एडिशन पर लगता है, ऐसे में यह हर उस स्टेप पर लगना चाहिए जहां मुनाफा कमाया गया है. यह तब संभव है, जब करेंसी को एक टैक्सेबल गुड्स या कमोडिटी माना जाए. वह भी तब, जब सरकार इसे मान्यता दे या रेग्युलेट करे.
कैसे होता है क्रिप्टो कारोबार?
क्रिप्टो करेंसी को आप मोटे तौर पर किसी छोले-भटूरे की दुकान वाला टोकन समझ लीजिए या थोक बाजारों में व्यापारियों और आढ़तियों के बीच चलने वाली हुंडी. यानी एक कागज की पर्ची, जिसका यों तो कोई मोल नहीं, पर लेने और देने वाले की नजर में यह सैकड़ों, हजारों या लाखों की हो सकती है. हुंडी की सबसे बड़ी ताकत यह है कि इसे न तो कोई चोर लूट सकता है, न पुलिस पकड़ सकती है और न कोई अथॉरिटी टैक्स लगा सकती है. हुंडी की कीमत दो लोगों के बीच ही समझी जाती थी. लेकिन क्रिप्टो करेंसी के लेनदार और देनदार बेशुमार होते हैं. जो चीज इसे सबसे ज्यादा अलग बनाती है, वह है इसके चलन की तकनीक.
तकनीकी भाषा में कहें तो यह ब्लॉकचेन आधारित नेटवर्क से प्रसारित होने वाला एक डिजिटल डॉक्युमेंट है, जिस पर हर लेन-देन का सिग्नेचर होता है. हर ट्रांजैक्शन अपने आप में एक ब्लॉक होता है. असल में ब्लॉकचेन एक सॉफ्टवेयर प्रोटोकॉल है. ठीक वैसे ही जैसे हमारे ईमेल के बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? लिए SMTP (Simple Mail Transfer Protocol) होता है. यह चेन बताती है कि कब करेंसी किसके हाथ से निकलकर किसके पास गई. ब्लॉकचेन फाइल किसी एक कंप्यूटर के बजाय पूरे नेटवर्क में रहती है. इस चेन में एक नया ब्लॉक जोड़ना ही, क्रिप्टो माइनिंग कहलाता है.
क्रिप्टो करेंसी खरीदने-बेचने के लिए आपको इस नेटवर्क से जुड़ना होगा. यहीं आपकी मदद करते हैं, क्रिप्टो एक्सचेंज. यहां आप ठीक वैसे ही एक खाता खुलवाते हैं, जैसे शेयरों के लिए डिमैट या ट्रेडिंग अकाउंट. फर्क सिर्फ इतना है कि ये एक्सचेंज सेल्फ रेग्युलेटेड हैं. यानी सरकारी नियम-कानूनों से परे. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं कि कैसे इन एक्सचेंजों का बिजनेस मॉडल अलग-अलग है. ऐसे में इनकी फीस भी मोटे तौर पर तीन तरह की होती है- एक्सचेंज फीस, नेटवर्क फीस और वॉलेट फीस. फिलहाल टैक्स एजेंसियां इसी फीस को कमाई मानकर इनकी टैक्स लाइबिलिटी तय कर रही हैं.
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बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है?
Stroyinvestleeasing LLC (www.sil.by) 2002 में स्थापित एक मल्टी-प्रोफाइल लीज़िंग कंपनी है और लीज़िंग ऑर्गनाईज़ेशन नम्बर. 29 तिथि 03.11.2014, आयडेंटिफ़िकेशन कोड 10029 के रजिस्टर में शामिल किए जाने पर बेलारूस गणराज्य के नेशनल बैंक के सर्टिफिकेट के आधार पर बेलारूस गणराज्य के फाइनेंशियल सेवा बाज़ार में काम कर रही है.
कंपनी के मुख्य व्यवसाय क्षेत्रों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कई सारी चीज़ों (जैसे मशीनरी, ट्रांसपोर्ट, उपकरण, रियल एस्टेट, आदि) के फाइनेंशियल और ऑपरेटिंग लीज़िंग पर;
- रिडेमपशन के अधिकार के साथ-साथ चल और अचल संपत्ति को लीज़िंग पर देना;
- पेचीदा तकनीकी सामानों की खरीद और बिक्री, जिनमें डेफर्ड पेमेंट मौजूद हैं.
Stroyinvestleasing LLC अंदरूनी और बाहरी (आयात, निर्यात) बाज़ारों, दोनों में, पर काम करता है. 17 साल के काम के लिए कंपनी ने 750 से ज़्यादा व्यावसायिक परियोजनाओं को लागू किया है. 500 से ज़्यादा लीज़िग पार्टनर्स को 1900 से अधिक लीज़िग ऑब्जेक्ट मिले हैं.
टोकन खरीदकर निवेशकों को आकर्षित करने का सबसे पहला मकसद कंपनी की वर्तमान लीज़िग कामकाज को फाइनैन्स करना है.
टोकन मालिकों को उनके लेनदेन के समय के आखिर में फंड की वापसी का मुख्य स्रोत लीसीज़ से मिले लीज़ समझौतों के तहत लीज़ पर पेमेंट हैं.
Stroyinvestleasing LLC वाइटपेपर dd. 31.12.2019 के मुताबिक
बनाए गए टोकन इथेरियम ब्लॉकचेन (ERC 20 मानक) पर आधारित हैं.
टोकन का नाम | SIL_25.1/EUR |
---|---|
करेंसी टोकन | EUR.cx |
प्रति टोकन की नॉमिनल कीमत «SIL_25.1/EUR» | 100 EUR.cx |
भुगतान की फ्रीक्वेनसी | तिमाहिक |
पहले ब्याज पेमेंट की तारीख | 01.04.2020 |
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अगले ब्याज पेमेंट की तारीख | 01.07.2020 |
शुरुआती पेशकश के जारी होने की तारीख | 15.01.2020 |
टोकन सरक्यूलेशन अवधि | 15.01.2020 – 14.01.2025 |
टोकन को प्रभाव में लाने की अवधि (टोकन की रीपेमेंट): | 14.01.2025 - 28.01.2025 |
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शुरुआती कारोबार में 30 शेयरों वाला सूचकांक 1,बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? 028.61 अंक या 1.80 फीसदी की गिरावट के साथ 55,983.13 पर था।
बिटकॉइन 1400 डॉलर के रिकॉर्ड हाई पर, जानिए इससे जुड़ी छोटी बड़ी हर बात
नई दिल्ली (जेएनएन)। मंगलवार के कारोबार में बिटकॉइन ने 1400 डॉलर का अपना ऑल टाइम हाई छुआ। इसकी वैल्यू बीते वर्ष के दौरान करीब तीन गुना हो गई। इस तेजी के पीछे जापान की ओर से बढ़ती डिमांड है। जापान एक ऐसा देश है जहां पर डिजिटल करंसी को भुगतान का वैध माध्यम माना गया है। डेटा वेबसाइट क्रिप्टोकम्पेयर वैश्विक स्तर पर बिटकॉइन ट्रेडिंग का विश्लेषण करती है। वेबसाइट ने बताया कि करीब 50 फीसद ट्रेडिंग वॉल्यूम बीते 24 घंटों में बिटकॉइन में हुई।
क्या है बिटकॉइन:
बिटकॉइन एक वर्चुअल करेंसी (क्रिप्टो करेंसी) जैसी है जिसे एक ऑनलाइन एक्सचेंज के माध्यम से कोई भी खरीद सकता है। इसकी खरीद-फरोख्त से फायदा लेने के अलावा भुगतान के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। फिलहाल भारत में एक बिटकॉइन की कीमत करीब 65 हजार रुपये है।
- पूरे विश्व में कुल 1.5 करोड़ बिटकॉइन चलन में होने का अनुमान
- इस गुप्त करेंसी पर सरकारी नियंत्रण नहीं होता। इसे छिपाकर इस्तेमाल किया जा सकता है।
- इसे दुनिया में कहीं भी सीधा खरीदा या बेचा जा सकता है।
- इन्हें रखने के लिए बिटकॉइन वॉलेट उपलब्ध होते हैं।
- इन्हें आधिकारिक मुद्रा से भी बदला जाता है। इसे न तो जब्त किया जा सकता है और न ही नष्ट।
- यह किसी देश की आधिकारिक मुद्रा नहीं है। ऐसे में इस पर किसी प्रकार का टैक्स नहीं लगता है।
कैसे है पोंजी स्कीम:
विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक तरह की पोंजी स्कीम है जिसमें निवेशकों के साथ धोखा हो सकता है।
शुरुआत हुई 2009 में:
2008 में पहली बार बिटकॉइन के संबंध में एक लेख प्रकाशित हुआ। इस्तेमाल के लिए यह 2009 में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के रूप में उपलब्ध हुई। इसे अज्ञात कंप्यूटर प्रोग्रामर या इनके समूह ने सातोशी नाकामोटो के नाम से बनाया।
रघुराम राजन का बिटकॉइन पर ध्रुवीकरण वाला रुख
यह बढ़ रहा है और लोग इस बेशुमार बढ़त के दौर में कुछ फायदा उठाने के लिए क्रिप्टोकरेंसी की ओर भाग रहे हैं और इस बढ़त का इस बार कोई अंत नजर नहीं आ रहा है। पिछले साल बिटकॉइन गिरकर 10,000 डॉलर पर आ गया और दिसम्बर 2020 में यह 40,000 डॉलर पर पहुँच गया। इस प्रक्रिया में कई खुदरा निवेशक भी इस ब्लॉकचेन दुनिया में अन्य ऑल्टकॉइन के साथ पैसे बनाने आ गये। हालांकि भारत के मशहूर अर्थशास्त्री रघुराम राजन जिन्होंने 2008 के वित्तीय संकट की ठीक-ठीक भविष्यवाणी की थी, वह न बिटकॉइन से प्रभावित हैं और न ही बिटकॉइन में इस बढ़त को वृद्धि की रूपरेखा मानते हैं। सो इस शीर्ष अर्थशास्त्री की बिटकॉइन पर क्या राय है?
इससे पहले बिटकॉइन अर्थव्यवस्था और क्रिप्टोकरेंसी की दुनिया में इसकी भूमिका पर एक निगाह डालते हैं। बिटकॉइन या बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? अन्य कोई भी अन्य क्रिप्टोकरेंसी मुख्य रूप से मूल्य के लेन-देन का डिजिटल माध्यम है। दरअसल यदि आपके पास एक बिटकॉइन है तो आपके पास कोई वस्तु नहीं है, या ऐसी चीज़ नहीं है जो वास्तविक दुनिया की किसी चीज़ का प्रतिनिधित्व करती हो। हालांकि, आप अपने बिटकॉइन को किसी और को बेच सकते हैं और इसके बदले में डॉलर या रुपये वसूल सकते हैं। यहीं पर बिटकॉइन के साथ परेशानी खड़ी होती है।
बिटकॉइन अभी आपको कितने डॉलर देगा, और साल भर बाद कितना इसमें बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? काफी फर्क हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अपेक्षाकृत स्थिर वास्तविक दुनिया की मुद्राओं के मुकाबले बिटकॉइन की कीमत बहुत उतार-चढ़ाव होता है। और इससे हमारा मतलब है, बेहद उतार-चढ़ाव। इतना अधिक कि कुछ लोग जिन्होंने 2009 में पांच सौ रुपये में दस बिटकॉइन खरीदे थे और 2017 तक या पिछले साल तक रखा हुआ था, वे अब तक करोड़पति हो गए होंगे। और ऐसे लोग हैं - सबसे उल्लेखनीय है विंकलवॉस ट्विन्स, जिन्हें इंटरनेट पर बिटकॉइन अरबपतियों के रूप में जाना जाता बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? है। तो बिटकॉइन इतना महंगा क्यों हो गया, और रघुराम राजन इससे नाखुश क्यों हैं?
जब बिटकॉइन चलन में आये थे तो वे निश्चित संख्या में ही बनाए गए थे। हमेशा केवल कुछ मिलियन बिटकॉइन ही होंगे, और आखिरी बिटकॉइन 2140 के आसपास बनेगा। हाँ, बिटकॉइन का खनन होता है - सोने की तरह, और यही वजह है कि कुछ अर्थशास्त्रियों ने बिटकॉइन को सोने के बराबर रखा है। दरअसल, कुछ का मानना है कि बिटकॉइन 21 वीं सदी में सोने के बराबर है - फर्क सिर्फ इतना है कि आप इससे कहीं से भी जुड़ सकते हैं और जब चाहे इसकी कीमत भुना सकते हैं। बिटकॉइन खनन समय के साथ और अधिक महंगा होता जा रहा है - क्योंकि कुछ बिटकॉइन के खनन के लिए, आपको बेहद मुश्किल गणितीय समस्याओं को हल करना होगा, जिसमें भारी मात्रा में कंप्यूटिंग शक्ति की ज़रुरत होती है। बिटकॉइन खनन कम्प्यूटेशन और बिजली के लिहाज़ से इतना महंगा होता है, कि बिटकॉइन खनन से दुनिया भर में कार्बन फुटप्रिंट में काफी बढ़ोतरी होती है।
पिछले साल, सिटीबैंक के एक विश्लेषक ने भविष्यवाणी की थी कि 2021 में बिटकॉइन एक लाख डॉलर के स्तर को पार कर जाएगा, और क्रिप्टोकरेंसी में रूचि रखने वाले कई अन्य लोगों ने बहुत बड़ी संख्या का पूर्वानुमान लगाया है। बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? लेकिन रघुराम राजन का मानना है कि बिटकॉइन में मौजूदा उछाल बुलबुले का सटीक उदाहरण है। उनके अनुसार, टेस्ला इंक, जो एस एंड पी 500 पर कारोबार करती है, की कीमत भी उसके वास्तविक मूल्य से बहुत अधिक है, जबकि टोयोटा और फोर्ड जैसी प्रतिद्वंद्वी कंपनियाँ टेस्ला के मुकाबले अपने वास्तविक आर्थिक उत्पादन से बहुत नीचे कारोबार कर रही हैं। इसलिए यदि बिटकॉइन में तेज़ी बुलबुला है, तो इसका मूल्य कहां से आता है?
इस साल की शुरुआत में, ईलॉन मस्क की वाहन कंपनी टेस्ला ने घोषणा की कि उसके पास 1.5 बिलियन डॉलर मूल्य के बिटकॉइन हैं - जिसके बाद, बिटकॉइन ने अपना रिकॉर्ड तोड़ दिया और 47,000 डॉलर पर कारोबार करने लगा। टेस्ला ने अपनी कारों के बदले में क्रिप्टोक्यूरेंसी भुगतान स्वीकार करने के इरादे से बिटकॉइन खरीदे - इसलिए यदि आपके पास बिटकॉइन हों आप आराम से उनसे टेस्ला कार खरीद सकते हैं। यहीं से चीजें दिलचस्प होने लगती हैं। रघुराम राजन के अनुसार, बिटकॉइन तकलीफदेह है क्योंकि इसके ज़रिये भुगतान स्वीकार करना किसी और के द्वारा अदा की जाने वाली वास्तविक धन राशि और दूसरी पार्टी द्वारा प्राप्त की गई राशि के बीच काफी असमानता पैदा कर सकता है। कल्पना कीजिये, अगर आप भारतीय रुपए में मोटरसाइकिल खरीद रहे हैं, और अचानक डीलरशिप ने आपको बताता है कि अब आपके वाहन की कीमत कल बताई गई कीमत से दोगुनी होगी क्योंकि अब, रुपए की खरीद शक्ति कल के मुकाबले आधी रह गई है। अच्छा नहीं लगता।
तो बिटकॉइन की कीमत में बेतहाशा उतार-चढ़ाव होता रहता है - अब क्या? और क्यों कुछ लोग अब भी इसके पीछे पागल हो रहे हैं? मूल रूप से, किसी को ऐसी मुद्रा में भुगतान करना जिसका वह उपयोग नहीं करता है, यह महंगा सौदा हो सकता है। आप इसे पेपाल के ज़रिये आसानी से कर सकते हैं, कंपनियां और देश हर साल सीमा पार भुगतान के लिए लेनदेन शुल्क के तौर पर अरबों डॉलर खर्च करते हैं। बिटकॉइन इन भुगतानों को सरल बनाने का पहला तरीका था। इतना आसान कि जैसे यूपीआई के ज़रिये 10 रुपये बिटकॉइन पर कैसे टैक्स लगता है? की चाय का भुगतान करना। यही कारण है कि कुछ विश्लेषकों को बिटकॉइन में मूल्य दीखता है।
वहीं अन्य विश्लेषक आम तौर पर ब्लॉकचैन के आइडिया पर दांव लगा रहे हैं। मूल रूप से, भुगतान मूल्य विनिमय का जरिया है, और इस मूल्य के विनिमय में स्थिरता बनाए रखने के लिए विश्वास की ज़रुरत होती है। कैसे? इसलिए जब आप अपने चायवाले को दस रुपये का भुगतान करते हैं, तो भारत सरकार यह सुनिश्चित करती है कि उन दस रुपये का मूल्य कुछ होगा - दूसरे शब्दों में, यह दोनों पक्षों के बीच विश्वास के माध्यम का काम करता है। बिटकॉइन में, और ब्लॉकचैन में, विशवास की यह अवधारणा एक खुले बहीखाता से तैयार की जाती है - जहां लेनदेन उन हजारों लोगों द्वारा सत्यापित किए जाते हैं जो बिटकॉइन का उपयोग कर रहे हैं। नतीजतन, यह खुला स्रोत है, और ब्लॉकचेन के साथ विश्वास कायम करना आसान है।
कोई फर्क नहीं पड़ता कि बिटकॉइन का वास्तविक मूल्य कहाँ स्थित है, मांग और आपूर्ति का अर्थशास्त्र लगातार इसके मूल्य को दहाई प्रतिशत में ऊपर और नीचे ले जाता है। रघुराम राजन को लगता है कि यह बिटकॉइन के लिए एक और बुलबुला है, और इसलिए इलॉन मस्क जैसे बिटकॉइन, ब्लॉकचेन और प्रोद्योगिकी के दीवानों के बारे में उनकी राय बिल्कुल उलट है। यह लेख जब लिखा जा रहा था तब बिटकॉइन में एक दिन में 57,000 डॉलर के उच्चतम स्तर छूने के बाद 14 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ हुई। क्या आपको लगता है कि यह एक और बुलबुला जो फूटने की प्रतीक्षा में है?