सप्ताहांत पर व्यापार क्यों

बैंक हड़ताल: कर्मचारियों ने की कार्य दिवसों में बदलाव की मांग, 27 जून को नौ बैंक कर्मचारी संघ करेंगे हड़ताल
Bank Strike In June 2022: 27 जून को नौ बैंक कर्मचारी संघों ने हड़ताल का आह्वान किया है. संघ 2015 से ही हफ्ते में पांच दिन काम करने की मांग कर रहा है. इसके पहले एक समझौता सप्ताहांत पर व्यापार क्यों किया गया था, जिसमें वैकल्पिक शनिवार को छुट्टी करने की मांग मानी गई थी.
Updated: June 15, 2022 9:52 AM IST
Bank strike in June 2022: भारत में हजारों बैंक कर्मचारी पांच-दिवसीय कार्य सप्ताह की मांग कर रहे हैं, जबकि दुनिया चार-दिवसीय कार्य सप्ताह के लाभों और कमियों पर बहस कर रही है. 27 जून को कम से कम नौ बैंक कर्मचारी संघ अपनी मांगों को लेकर एक दिन की हड़ताल पर रहेंगे. वे शनिवार और रविवार की छुट्टी चाहते हैं, यह दावा करते हुए कि बैंकों के लिए उपलब्ध तकनीक पांच-दिवसीय कार्य सप्ताह में आसानी से संक्रमण की अनुमति देगी.
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बैंक के कर्मचारियों ने सात साल पहले वैकल्पिक रूप से शनिवार को काम करना शुरू किया था. 2015 के बाद से, बैंक यूनियन सभी शनिवार और रविवार को छुट्टी के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के अनुसार, एनसीबीई और एआईबीईए सहित नौ राष्ट्रीय स्तर की बैंक यूनियनों की एक छतरी संस्था, आईबीए ने आरबीआई और सरकार के अनुमोदन के बाद 2015 में सहमति व्यक्त की कि दूसरे और चौथे शनिवार को 10वें द्विपक्षीय निपटान में अवकाश होगा.
फोरम के अनुसार उस समय इस बात पर सहमति बनी थी कि पांच दिवसीय बैंकिंग सप्ताह की स्थापना का अध्ययन किया जाएगा. बयान के अनुसार, 11वीं द्विपक्षीय समझौता वार्ता में समस्या को उठाया गया था, लेकिन इसे हल नहीं किया जा सका.
बता दें, 6 जून से, यूके की 70 कंपनियों के कर्मचारियों ने सप्ताह में चार दिन काम करना शुरू किया. छह महीने के पायलट परीक्षण को अपने सप्ताहांत पर व्यापार क्यों प्रकार का सबसे बड़ा माना जा रहा है, जिसमें वित्तीय सेवाओं और होटलों सहित विभिन्न उद्योगों के संगठन भाग ले रहे हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा लगता है कि कार्य संस्कृति में विश्वास की एक बड़ी छलांग 100 प्रतिशत उत्पादन बनाए रखने के बदले में अपने काम के 80 प्रतिशत घंटे काम करने के लिए 100 प्रतिशत पारिश्रमिक प्राप्त करना है. मानव संसाधन विशेषज्ञों और रोजगार संगठनों के अनुसार भारत इस तरह के प्रयोग के लिए तैयार नहीं हो सकता है.
उनका दावा है कि इतने बड़े श्रम बाजार में ऐसी व्यवस्था लागू करना असंभव होगा. कंपनियां उत्पादकता, भूमिकाएं, उद्योग और भौगोलिक स्थान इन चार दृष्टिकोणों से समस्या की जांच करती हैं.
टैलेंट मैनेजर्स के अनुसार, कुछ उद्योगों में जो कुछ हासिल किया जा सकता है वह दूसरों में लगभग असंभव है. कुछ लोगों का तर्क है कि भारतीय नियोक्ता मनोविज्ञान पांच-दिवसीय कार्य नीति के लिए तैयार है, और यह कि चार-दिवसीय कार्य सप्ताह में संक्रमण के लिए व्यावसायिक सोच में एक आदर्श बदलाव की आवश्यकता है.
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National Nutrition Week 2022 : जानिए क्यों मनाया जाता है नेशनल न्यूट्रीशन वीक, इसका इतिहास, थीम और महत्व
भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय का खाद्य और पोषण बोर्ड हर साल 1 सितंबर से लेकर 7 सितंबर के बीच राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का आयोजन करता है.
क्यों मनाया जाता है नेशनल न्यूट्रीशन वीक, जानें इसका इतिहास, थीम और महत्व (India.com)
आज के समय में लोग अपने खानपान को लेकर बहुत लापरवाह हो चुके हैं. खानपान में लापरवाही बरतने से उनके शरीर को जरूरी पोषक तत्व नहीं मिल पाते, जिसका सीधा असर उनकी सेहत पर नजर आता है. हेल्थ और खानपान को लेकर जागरुक करने के उद्देश्य से भारत सरकार की ओर से हर साल 1 सितंबर सप्ताहांत पर व्यापार क्यों से लेकर 7 सितंबर के बीच राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week) मनाया जाता है. हर साल इसके लिए थीम निर्धारित की जाती है. आज से नेशनल न्यूट्रीशन वीक शुरू हो चुका है. इस मौके पर यहां जानिए इस दिन का इतिहास, महत्व और इस साल की थीम.
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का इतिहास
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की शुरुआत अमेरिकन डायटेटिक एसोसिएशन ने मार्च 1975 में की थी. एडीए को अब - न्यूट्रिशन और डाइट साइंस अकैडमी के नाम से जाना जाता है. इसका मकसद लोगों को सप्ताहांत पर व्यापार क्यों उनके खानपान और सेहत के लिए जागरुक करना था. 1980 तक आते-आते इस अभियान को लेकर लोगों का इतना जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला कि इसे एक सप्ताह के बजाय पूरे महीने मनाया गया. इसके बाद 1982 में भारत सरकार ने लोगों को पोषण के प्रति जागरुक करने और हेल्दी लाइफस्टाइल के लिए प्रेरित करने के मकसद से राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की शुरुआत की.
ये है इस साल की थीम
हर साल भारत सरकार राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की एक थीम निर्धारित करती है. साल 2022 में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह की थीम 'सेलिब्रेट वर्ल्ड ऑफ फ्लेवर' रखी गई है. इसके जरिए लोगों को पोषक तत्वों से भरपूर नई-नई चीजों को आजमाने के लिए प्रेरित किया गया है. आप दुनियाभर में मौजूद नए फल, नई सब्जियों के अलावा उन सारी चीजों को आजमाएं, जिससे आपके शरीर को न्यूट्रीशन मिल सके. इससे आपको स्वाद को लेकर बोरियत भी नहीं होगी और शरीर को पोषण भी मिलेगा.
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का महत्व
कहा जाता है कि स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है. यही बात समझाने के लिए भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय का खाद्य और पोषण बोर्ड हर साल राष्ट्रीय पोषण सप्ताह का आयोजन करता है. इस दौरान लोगों को अपने खानपान में उन चीजों को शामिल करने के लिए जागरुक किया जाता है, जिनके जरिए उनके शरीर को पोषण मिल सके, इम्युनिटी मजबूत हो सके और शरीर लंबे समय तक सेहतमंद रहे.
खाने की जरूरी चीजों पर 5% GST लगाने के फैसले से व्यापारी परेशान, सरकार के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन की तैयारी
देश के व्यापारिक समुदाय, खाद्यान्न और एपीएमसी एसोसिएशनों सप्ताहांत पर व्यापार क्यों ने प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले की कड़ी आलोचना की है.
सुमन कुमार चौधरी | Edited By: सुनील चौरसिया
Updated on: Jul 11, 2022 | 9:50 AM
प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले का विरोध होना शुरू हो गया है. देश के व्यापारिक समुदाय, खाद्यान्न और एपीएमसी एसोसिएशनों ने जीएसटी काउंसिल द्वारा लिए गए इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि इस फैसले से व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा. इस फैसले से प्रभावित व्यापारिक सेक्टर के व्यापारी, देश के हर राज्य में जोरदार प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं. लिहाजा, आने वाले समय में खाद्यान्न व्यापार के भारत बंद की संभावनाएं बढ़ गई हैं.
फैसले के खिलाफ संपर्क में हैं देशभर के व्यापारी संगठन
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी काउंसिल, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों से ये फैसला वापस लेने की अपील की है. कैट की मांग है कि जब तक जीएसटी काउंसिल में यह निर्णय अंतिम रूप से वापस नहीं हो जाता, तब तक इस निर्णय को स्थगित रखा जाए. देशभर के खाद्यान्न व्यापारी संगठनों के व्यापारी नेता इस मुद्दे पर एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगातार बातचीत कर रहे हैं.
फैसले के लिए कैट ने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ठहराया जिम्मेदार
कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी. सी. भरतिया और राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने काउंसिल के इस निर्णय की कड़ी निंदा करते हुए, इस तरह के अतार्किक निर्णय के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया है. उनका कहना है कि काउंसिल में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया और सभी राज्यों के वित्त मंत्री काउंसिल के सदस्य हैं. इस निर्णय का देश के खाद्यान्न व्यापार पर अनुचित प्रभाव पड़ेगा और देश के लोगों पर आवश्यक वस्तुओं को खरीदने पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा.
व्यापारियों के साथ-साथ किसानों पर भी पड़ेगा बुरा असर
दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से भारत में पहली बार आवश्यक खाद्यान्नों को टैक्स के दायरे के तहत लिया गया है, जिसका न केवल व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा बल्कि कृषि क्षेत्र पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इस फैसले से छोटे निर्माताओं और व्यापारियों की कीमत पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा.
जीएसटी कलेक्शन बढ़ने के बावजूद क्यों लगाया जा रहा है टैक्स
प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि विरोध के पीछे तर्क यह है कि सरकार कुछ वस्तुओं पर केवल 28 प्रतिशत जीएसटी वसूल रही है ताकि कृषि उपज को जीएसटी से बाहर रखने के बदले राजस्व नुकसान की भरपाई की जा सके. अगर जीएसटी काउंसिल गैर-ब्रांडेड दालों और अन्य कृषि वस्तुओं पर टैक्स लगाना चाहती है तो सबसे पहले 28 फीसदी जीएसटी स्लैब को समाप्त सप्ताहांत पर व्यापार क्यों करना होगा. इसके अलावा ऐसे समय में जब हर महीने जीएसटी कलेक्शन बढ़ रहा है तो खाद्य पदार्थों को जीएसटी के तहत 5 प्रतिशत के टैक्स स्लैब के तहत लाने की क्या जरूरत है? बताते चलें कि ये आइटम अभी तक किसी भी टैक्स स्लैब के तहत नहीं थे.
देश के तमाम राज्यों में होगी बैठक
दोनों नेताओं ने कहा कि अब तक दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा में राज्य स्तरीय बैठक हो चुकी हैं और अगले सप्ताह पश्चिम बंगाल, केरल, गुजरात में व्यापार जगत के नेता मिलेंगे. इसके अलावा पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में भी बैठकें होंगी. कैट ने कहा, ”ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्यों के वित्त मंत्री, खाद्यान्न और अन्य वस्तुओं में काम करने वाले छोटे निर्माताओं और व्यापारियों के हितों की रक्षा करने में विफल रहे हैं.”
निजी रूप से ब्याज पर रुपए उधार देना क्या किसी तरह का अपराध है? जानिए इससे संबंधित कानून
आज के समय में खर्च अधिक और आय कम होने के कारण व्यक्ति को किसी न किसी समय कर्ज लेना पड़ता है। आज अनेक वित्तीय संस्थाएं लोगों को व्यापारिक तौर से कर्ज बांट रही हैं। यह वित्तीय संस्थाएं बैंक या कोई अन्य संस्था होती सप्ताहांत पर व्यापार क्यों है, ये ब्याज का धंधा करती हैं, लोगों को कर्ज़ देती हैं और उस पर ब्याज के रूप में कोई राशि लेती हैं, जो उनकी कमाई होती है।
इन संस्थाओं को सरकार ने यह व्यापार को करने के लिए लाइसेंस दे रखा है, लेकिन इन संस्थाओं से अलग कुछ लोग निजी रूप से भी छोटे स्तर पर ब्याज पर रुपए उधार देने जैसा काम करते हैं।
कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बैंक द्वारा लोन नहीं दिया जाता, क्योंकि बैंक लोन लेने के लिए जिन शर्तों को लगाती है, वे लोग इन शर्त को पूरी नहीं कर पाते हैं।
बैंक उन्हें लोन लेने का पात्र नहीं मानती है। बैंक की ऐसी शर्त की पूर्ति नहीं करने के कारण व्यक्ति कर्ज़ लेने के लिए निजी लोगों के पास जाता है।
बगैर लाइसेंस के नहीं किया जा सकता ब्याज का धंधा ब्याज़ से संबंधित कोई भी काम करने के सप्ताहांत पर व्यापार क्यों लिए मनी लेंडिंग एक्ट के अंतर्गत सरकार द्वारा स्थापित संस्था से लाइसेंस लेना होता है। अलग-अलग प्रदेशों में साहूकार अधिनियम भी होता है। इस साहूकार अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए प्राधिकरण ब्याज पर रुपए देने के व्यापार करने के लिए लाइसेंस देते हैं।
इस प्रकार का लाइसेंस लेने की एक प्रक्रिया होती है, जितने भी लोगों को यह लाइसेंस दिया जाता है, उन लोगों को एक निश्चित दर पर ब्याज लेने का आदेश किया जाता है। वे लोग उस निश्चित दर से अधिक पर ब्याज नहीं ले सकते हैं। उन्हें अपने सभी कार्यों का लेखा-जोखा रखना होता है। ऐसे लेखों को उन्हें प्रतिवर्ष प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।
इस प्रकार कोई व्यक्ति निजी रूप सप्ताहांत पर व्यापार क्यों से भी छोटे स्तर पर ब्याज का व्यापार कर सकता है। अधिक मामलों में देखने को यह मिलता है कि नगर के गुंडे बदमाश ब्याज पर रुपए उधार देने का काम करते हैं। इन लोगों के पास किसी भी सरकारी संस्था का कोई भी लाइसेंस नहीं होता है। ये अपनी मनमर्जी से लगाई हुई ब्याज दर से सप्ताहांत पर व्यापार क्यों लोगों को ब्याज पर रुपए उधार देते हैं। इनका ब्याज एक चक्रव्यूह की भांति चलता है। कोई भी व्यक्ति इसमे फंसता ही चला जाता है, क्योंकि लोग प्रतिमाह ब्याज अदा कर देते हैं और मूलधन की राशि वहीं की वहीं रहती है। इस तरह से लोग ब्याज माफियाओं के फंदे में फंसते ही चले जाते हैं।
यह स्पष्ट रूप से एक अपराध है। पहली बात तो यह है कि बगैर लाइसेंस के कोई भी ब्याज़ का व्यापार नहीं किया जा सकता। दूसरी बात यह है कि अगर बगैर लाइसेंस के भी काम किया जा रहा है तब मनमर्जी से कोई भी ब्याज दर नहीं लगाई जा सकती, बल्कि वही ब्याज दर ली जा सकती है जिसे सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है।
जैसे कि सरकार ने प्रतिवर्ष 13% ब्याज लगाने को कहा है तब कोई भी साहूकार इस दर से ही ब्याज की वसूली कर सकता है। अगर उसने इस दर से अधिक दर पर ब्याज वसूलने का प्रयास किया तो यह कानूनन अवैध होगा।
कोरे स्टाम्प पर हस्ताक्षर और ब्लैंक चेक
इस तरह के ब्याज माफिया जब कभी भी लोगों को कोई भी राशि ब्याज पर देते हैं, तब उनसे एक ब्लैंक स्टाम्प पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं, साथ ही एक ब्लैंक चेक पर हस्ताक्षर करवा लेते हैं। इन दोनों ही चीजों के आधार पर यह ब्याज माफिया लोगों को धमकियां देते हैं और उनसे अधिक से अधिक ब्याज वसूलते हैं, जबकि इन दोनों ही चीजों की कोई भी कानूनी मान्यता नहीं रहती है।
अगर किसी व्यक्ति ने किसी ब्लैंक स्टाम्प पर हस्ताक्षर कर भी दिए हैं तब भी उसका कोई कानूनी वजूद नहीं होता क्योंकि उस पर किसी भी नोटरी वकील की तस्दीक नहीं होती है। बगैर तस्दीक के हस्ताक्षर कर देने से कोई भी कानूनी बाध्यता नहीं आती है।
एक एग्रीमेंट ज़रूरी
ऐसे ब्याज माफिया से किसी भी तरह का कर्ज नहीं लेना चाहिए, लेकिन अगर कोई व्यक्ति निजी रूप से किसी को किसी तरह का कर्ज़ दे रहा है तब उसे कोरा स्टाम्प हस्ताक्षर करके नहीं देना चाहिए। साथ ही किसी भी तरह का ब्लैंक चेक भी नहीं देना चाहिए, बल्कि कर्ज लेने वाले को सप्ताहांत पर व्यापार क्यों एक एग्रीमेंट करना चाहिए।
उस एग्रीमेंट में कर्ज की राशि लिखी जानी चाहिए, इसी के साथ जो चेक दिए जा रहे हैं उन चेक की सभी डिटेल लिखी जानी चाहिए। साथ ही यह भी लिखा जाना चाहिए चेक एक सिक्योरिटी के लिए दिए जा रहे हैं न कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए।
जब कभी हम कोई चेक सिक्योरिटी के रूप में देते हैं, तब उन चेक के आधार पर नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 का मुकदमा नहीं लगाया जा सकता। कर्ज लेने वाले को एक एग्रीमेंट जरूर कर लेना चाहिए।
कर्ज की वसूली के लिए मारपीट
कुछ मामले ऐसे भी देखने को मिलते हैं जहां ब्याज माफिया कर्ज की वसूली के लिए लोगों के साथ मारपीट तक कर देते हैं। उन लोगों के घर का सामान तक उठा ले जाते हैं, उनके घर आकर गाली-गलौज करते हैं।
लोगों को यह लगता है कि वह किसी डिफॉल्ट में है और कर्ज की वसूली करने वाला इस तरह से सरेआम गालियां बकने का अधिकारी है और उसके साथ मारपीट करने का भी अधिकारी है।
यह बात पूरी तरह निराधार है, अगर किसी भी व्यक्ति को किसी व्यक्ति से किसी भी तरह के कर्ज की वसूली करना है तब वह व्यक्ति कोर्ट में कर्ज की वसूली के लिए एक सिविल मुकदमा लगा सकता है या फिर किसी अधिवक्ता के माध्यम से लीगल नोटिस भेजकर वसूली की मांग कर सकता है। लेकिन किसी भी सूरत में जिस व्यक्ति को कर्ज़ दिया गया है, उस व्यक्ति के साथ मारपीट नहीं कर सकता और उस व्यक्ति को गाली नहीं दे सकता।
अगर कर्ज़ देने वाला इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहा है तब वह एक अपराध कर रहा है और इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं में पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
जब भी कर्ज़ की वसूली करने वाला इस तरह का अपराध करें तब तत्काल संबंधित थाना क्षेत्र के पुलिस अधिकारी को इस बात का संज्ञान दना चाहिए और पीड़ित को अपराधी के विरुद्ध एक एफआईआर दर्ज करवानी चाहिए।
इसी के साथ अगर कर्ज की वसूली के लिए कोई भी कर्ज़ देने वाला व्यक्ति किसी व्यक्ति के घर का सामान उठाकर लेकर जा रहा है तब भी पुलिस थाने में इस बात की जानकारी दी जा सकती है और ऐसा सामान लेकर जाने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई जा सकती है।
भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं में इस आधार पर एफआईआर दर्ज की जा सकती है, इसलिए यह भी बात याद रखना चाहिए कि कर्ज की वसूली के लिए कोई दूसरा सामान उठाकर नहीं लाया जा सकता, क्योंकि कर्ज़ लेने वाले ने उस दूसरे सामान को किसी भी गिरवी नहीं रखा है।
अगर गिरवी रखा जाता और उसके बारे में किसी तरह का कोई एग्रीमेंट होता तब उस सामान को ज़ब्त किया जा सकता था, लेकिन यदि कोई सामान गिरवी नहीं रखा गया है तब उसे अपनी मनमर्जी से उठाकर नहीं लाया जा सकता।
अगर कर्ज़ देने वाला किसी भी तरह से चक्रव्यू की भांति चलने वाला ब्याज वसूल सप्ताहांत पर व्यापार क्यों रहा है। बहुत अधिक ब्याज दर पर अपने कर्ज की वसूली कर रहा है, तब इस स्थिति में पीड़ित पुलिस थाने पर संज्ञान लेकर ऐसे अवैध व्यापार को चलाने वाले माफिया की शिकायत कर सकता है।
इस तरह से मनमर्जी से किसी भी ब्याज दर की वसूली नहीं की जा सकती। अगर ऐसी ब्याजदर की वसूली की जा रही है, तब यह एक संगीन जुर्म है। अगर माफिया बगैर किसी लाइसेंस के लिए काम चला रहा है तब उस माफिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है।