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किसी देश की मुद्रा क्या है?

किसी देश की मुद्रा क्या है?
क्या है भारत का तर्क
भारत का तर्क यह है कि दुनिया के केंद्रीय बैंकों द्वारा जिस तरह से पूंजी का प्रवाह किया जा रहा है उसकी वजह से मुद्रा के प्रबंधन के लिए उसके लिए ऐसा हस्तक्षेप जरूरी था. रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने पिछले साल कहा था कि अमेरिका को किसी देश को 'मैनिपुलेटर' का तमगा देने की जगह उसके मुद्रा भंडार की जरूरत के बारे में बेहतर समझ रखनी चाहिए. उन्होंने तो यहां तक संकेत दे दिया था कि अमेरिका के ऐसे कदमों से भारत रिजर्व किसी देश की मुद्रा क्या है? करेंसी के रूप में डॉलर को अपनाने से दूर हो सकता है. जानकारों का मानना है कि अब रिजर्व बैंक को डॉलर की खरीद से वास्तव में बचना चाहिए क्योंकि 500 अरब डॉलर का मुद्रा भंडार ही किसी देश की मुद्रा क्या है? हमारी एक साल की आयात जरूरतों के लिए काफी है. इस साल भी इस पर भारत ने जवाब देते हुए कहा है कि इसका कोई भी तर्क समझ से परे है. भारत के वाणिज्य सचिव अनूप वाधवा ने किसी देश की मुद्रा क्या है? कहा, 'मुझे इसमें कोई आर्थिक तर्क समझ नहीं आता.' उन्होंने बताया कि भारत का रिजर्व बैंक एक ऐसी पॉलिसी को अनुमति देता है, जिसके अंतर्गत मार्केट फोर्सेज के अनुरूप मुद्रा का संग्रह किया जाता है.

गिरता रुपया, चढ़ता डॉलर

देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारामण के हाल के एक बयान ने खलबली मचा दी है। रिकॉर्ड स्तर पर गिरते जा रहे रुपए का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि रुपया कमजोर नहीं हो रहा है, बल्कि डॉलर मजबूत हो रहा है। रुपए के गिरने, रसोई गैस, पेट्रोल आदि के दाम बढऩे, महंगाई के किसी देश की मुद्रा क्या है? आसमान छूने जैसे मुद्दों पर कांग्रेस की खिल्ली उड़ाकर ही बीजेपी सत्ता में आयी थी। आज मियां की जूती, मियां के सर पड़ रही है। इस पर दूसरी प्रतिक्रिया आर्थिक विशेषज्ञों की है। वे खुले तौर पर या किसी देश की मुद्रा क्या है? फिर मजबूरी में बताते हैं कि मुद्रा या करेंसी का व्यापार हमेशा जोड़ी में होता है। यदि डॉलर ऊपर जाएगा तो उसके सामने जो भी मुद्रा होगी, वह नीचे आएगी ही। दुनिया भर की मुद्राएं अपने रिकॉर्ड स्तर पर नीचे जा पहुंची हैं, क्योंकि दुनिया में डॉलर की मांग बढ़ गई है। आलम यह है कि लोग दूसरी मुद्राएं बेच-बेचकर डॉलर खरीद रहे हैं। डॉलर-रुपए की इस उठापटक को देखने का एक और नज़रिया भी है- आम आदमी का नजरिया! दुनिया का आर्थिक कारोबार इतना जटिल हो गया है कि आम आदमी केवल लल्लू बनकर रह गया है। महंगाई हो, बेरोजगारी हो, शिक्षा हो या स्वास्थ्य, सामाजिक समरसता हो कि घर का बजट- इनमें से कुछ भी नहीं है जो आम आदमी के क़ाबू में हो। आप कहेंगे, आम आदमी में इतनी काबिलियत है क्या कि वह वैश्विक कारोबार की पेचीदगियां समझ पाए? लेकिन अगर मैं यह पूछूं किसी देश की मुद्रा क्या है? कि क्या आप आम आदमी मतलब समझते हैं, तो? यह आम आदमी दुनिया का 95 फीसदी है! दुनिया का किसी देश की मुद्रा क्या है? आर्थिक कारोबार यदि मात्र 3 से 5 फीसदी लोगों की समझ में ही आता है तो बात खतरनाक बन जाती है और उनके निहित स्वार्थ की बात भी खुल जाती है। जो खेल 3 से 5 फीसदी की मु_ी में बंद है तो कहानी ऐसी बन जाती है कि उनका मुनाफा हमारी जेब खाली करके पूरा होता है! सारी दुनिया के आम लोग उसकी कीमत चुकाते हैं, रोज-रोज चुका रहे हैं। महंगा पेट्रोल हो कि फर्टिलाइजर, इलाज हो कि शिक्षा, बेरोजग़ारी हो कि विस्थापन, सभी मुनाफा कमाने की उस अंधी, अनैतिक दौड़ पर आधारित लंगड़ी अर्थव्यवस्था की वह क़ीमत है जो दुनिया का हर आम आदमी चुकाता रहता है। दुनिया के सारे विशेषज्ञ सर के बल खड़े हो जाएं तो भी यही दिखेगा कि मु_ी भर लोगों के हाथों में, दुनिया के सभी संसाधन- जल, जंगल, ज़मीन, साफ हवा, पैसा, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि कैद हो गए हैं। बची अरबों-अरब की दुनिया रोटी के चंद टुकड़ों के लिए लड़ रही है। प्राकृतिक ढलानों पर संसार की सारी नदियां बहती हैं। आधुनिक वैश्विक समाज का ढलान प्राकृतिक नहीं है। 3 से 5 फीसदी लोगों ने अपनी सुविधा, अपने मुनाफे के लिए पूंजी के बहाव का रास्ता बनाया है। नहर, बांध, उद्योग या फिर शहरीकरण की तरफ ढलान बना रखा है तो पूंजी भी उधर ही बहेगी। कुछ समर्थ लोगों व सत्ताओं ने मिलीभगत से पूंजी को ऐसे ढलान पर डाल रखा है कि वह उसी तरफ बहे जिधर पहले से ही इफरात है। पूंजी बढ़ती है तो भी लौटती वहीं है जहां से वह चली थी। नतीजे में अमीर ज्यादा अमीर और गरीब ज्यादा गरीब होते जाते हैं। अब इस रोशनी में हम मुद्रा बाजार को देखें। दुनिया की मुद्राओं का बाजार कितना बड़ा है, इसका ठीक-ठीक अंदाज़ा किसी को नहीं है, क्योंकि इस बाजार पर कोई नियंत्रण नहीं है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद विजयी राष्ट्रों ने अपने लाभ का हिसाब लगाकर दुनिया का सारा कारोबार कुल छह मुद्राओं में नियंत्रित कर दिया था, जिन्हें आज रिज़र्व करेंसी के नाम से जाना जाता है। मतलब यह कि दो देशों के बीच कोई भी व्यापार केवल इन छह मुद्राओं में हो सकता है। विश्वयुद्ध से सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरे अमरीका ने अपने डॉलर को सबसे आगे रखा।

अवैधानिक मुद्रा में व्यापार

By Sandip Sen
Published: Thursday 15 March 2018

तारिक अजीज / सीएसई

वर्ष 2017 के शुरुआती दिनों में बिटक्वायंस और क्रिप्टो करेंसीज के बारे में लोग बहुत कम जानते थे। ये साल के अंत तक एक बड़ी घटना बन गई। 2017 तक एक बिटक्वायन का मूल्य 900 से 19,000 डॉलर तक हो गया और अब 40 प्रतिशत तक गिर गया है। यह 17 जनवरी को लक्समबर्ग-स्थित बिटस्टैम्प एक्सचेंज में 10,000 डॉलर के बराबर था। इसने तीव्र अस्थिरता दिखाई। हालांकि, इसे किसी भी देश द्वारा मान्यता नहीं दी गई है, फिर भी क्रिप्टो करेंसीज ने अनिवार्य मान्यता प्राप्त कर ली है और विश्व कमोडिटी बाजार में अपना रास्ता मजबूत कर लिया है। आप इससे सिनेमा टिकट से लेकर गैजेट्स और पेट्रोल तक खरीद सकते हैं।

अमेरिका की निगाह में भारत 'करेंसी मैनिपुलेटर'. जानें क्या है इसका मतलब

Indian Currency

नए राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) के नेतृत्व में अमेरिका ने पहले की तरह एक बार फिर भारत को तगड़ा झटका दिया है. उसने भारत (India) को 'करेंसी मैनिपुलेटर्स' (मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करने वाले देश) की निगरानी सूची में डाल दिया है. गौरतलब है कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जब अमेरिका ने भारत को लेकर ये कदम उठाया है. इससे पहले 2018 में भी भारत को सूची में डाला गया था लेकिन फिर 2019 में हटा दिया था. अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने भारत सहित कुल 10 देशों को इस सूची में शामिल किया है. इनमें सिंगापुर, चीन, थाईलैंड, मैक्सिको, जापान, कोरिया, जर्मनी, इटली और मलेशिया तक शामिल हैं. मंत्रालय ने कहा है कि इन देशों में मुद्रा संग्रहण और इससे जुड़े अन्य तरीकों पर करीबी नजर रखी जाएगी. अधिकारी ने बताया कि भारत का अमेरिका के साथ ट्रेड सरप्लस (Trade Surplus) साल 2020-21 में करीब पांच अरब डॉलर तक बढ़ गया है. यहां ट्रेड सरप्लस का मतलब है, किसी देश का निर्यात उसके आयात से अधिक हो जाना.

दो तरह की होगी CBDC

– Retail (CBDC-R): Retail CBDC संभवतः सभी को इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगी
– Wholesale (CBDC-W) : इसे सिर्फ चुनिंदा फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस के लिए डिजाइन किया गया है

पिछले दिनों RBI ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) का उद्देश्य मुद्रा के मौजूदा रूपों को बदलने के बजाय डिजिटल मुद्रा को उनका पूरक बनाना और उपयोगकर्ताओं को भुगतान के लिए एक अतिरिक्त विकल्प देना है। इसका मकसद किसी भी तरह से मौजूदा भुगतान प्रणालियों को बदलना किसी देश की मुद्रा क्या है? नहीं है.। यानी आपके लेन-देन पर इसका कोई असर नहीं होने वाला है।

RBI को सीबीडीसी की शुरूआत से कई तरह के लाभ मिलने की उम्मीद है, जैसे कि नकदी पर निर्भरता कम होना, मुद्रा प्रबंधन की कम लागत और निपटान जोखिम में कमी। यह आम जनता और व्यवसायों को सुरक्षा और तरलता के साथ केंद्रीय बैंक के पैसे का एक सुविधाजनक, इलेक्ट्रॉनिक रूप प्रदान कर सकता है और उद्यमियों को नए उत्पाद और सेवाएं बनाने के लिए एक मंच प्रदान कर सकता है।

डिजिटल करेंसी के फायदे

देश में आरबीआई की डिजिटल करेंसी (E-Rupee) आने के बाद आपको अपने पास कैश रखने की जरूरत नहीं होगी। डिजिटल करेंसी आने से सरकार के साथ आम लोगों और बिजनेस के लिए लेनदेन की लागत कम हो जाएगी। ये फायदे भी होंगे

बिजनेस में पैसों के लेनदेन का काम हो जाएगा आसान।

CBDC द्वारा मोबाइल वॉलेट की तरह सेकंडों में बिना इंटरनेट के ट्रांजैक्शन होगा

चेक, किसी देश की मुद्रा क्या है? बैंक अकाउंट से ट्रांजैक्शन का झंझट नहीं रहेगा।
नकली करेंसी की समस्या से छुटकारा मिलेगा।

पेपर नोट की प्रिंटिंग का खर्च बचेगा
एक डिजिटल मुद्रा की जीवन रेखा भौतिक नोटों की तुलना में अनिश्चित होगी

CBDC मुद्रा को फिजिकल तौर पर नष्ट करना, जलाया या फाड़ा नहीं जा सकता है

अन्य क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में डिजिटल रुपये का एक अन्य प्रमुख लाभ यह है कि इसे एक इकाई द्वारा विनियमित किया जाएगा, जिससे बिटकॉइन जैसी अन्य आभासी किसी देश की मुद्रा क्या है? मुद्राओं से जुड़े अस्थिरता जोखिम को कम किया जा सकेगा।

क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल रुपी में अंतर

क्रिप्टोकरेंसी पूरी तरह से प्राइवेट है। इसे कोई मॉनिटर नहीं करता और इस पर किसी सरकार या सेंट्रल बैंक का कंट्रोल नहीं होता। ऐसी करेंसी गैरकानूनी होती हैं। लेकिन, RBI की डिजिटल करेंसी पूरी तरह से रेगुलेटेड है, जिसके सरकार की मंजूरी होगी। डिजिटल रुपी में क्वांटिटी की भी कोई सीमा नहीं होगी। फिजिकल नोट वाले सारे फीचर डिजिटल रुपी में भी होंगे। लोगों को डिजिटल रुपी को फिजिकल में बदलने की सुविधा होगी। क्रिप्टोकरेंसी का भाव घटता-बढ़ता रहता है, लेकिन डिजिटल रुपी में ऐसा कुछ नहीं होगा।

भारत में मुद्रा का डिजिटलीकरण मौद्रिक इतिहास में अगला मील का पत्थर है। ट्रांजेक्शन कॉस्ट घटने के अलावा CBDC की सबसे खास बात है कि RBI का रेगुलेशन होने से मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग, फ्रॉड की आशंका नहीं होगी। इस डिजिटल करेंसी से सरकार की सभी अधिकृत नेटवर्क के भीतर होने वाले ट्रांजेक्शंस तक पहुंच हो जाएगी। सरकार का बेहतर नियंत्रण होगा कि पैसा कैसे देश में प्रवेश करता है और प्रवेश करता है, जो उन्हें भविष्य के लिए बेहतर बजट और आर्थिक योजनाओं के लिए जगह बनाने और कुल मिलाकर अधिक सुरक्षित वातावरण बनाने की अनुमति देगा।

प्राण मुद्रा योग : छोटी-मोटी बीमारियां चुटकियों में होती है ठीक, जानिए इसके फायदे

रायपुर. प्राण मुद्रा योग काफी कारगर योगासन है. इस मुद्रा से छोटी-मोटी बीमारी तो वैसे ही दूर हो जाती है. रोजाना 15 से 20 मिनट दो बार करें या एक ही बार 30 मिनट तक इस मुद्रा को किया जा सकता है. शुरुआती दिनों में दस मिनट से शुरुआत कर धीरे-धीरे टाइम पीरियड को बढ़ाया जा सकता है. प्राण मुद्रा की सबसे खास बात ये है कि इसे किसी देश की मुद्रा क्या है? किसी भी उम्र के लोग कर सकते हैं. गर्भवती महिला भी प्राण मुद्रा नियमित रूप से कर सकती हैं. अगर आप किसी बीमारी से भी पीड़ित हैं, तो भी प्राण मुद्रा कर सकते हैं. इससे शारीरिक नुकसान नहीं होगा.

हम छोटी-मोटी बीमारियों को योग मुद्रा से खुद ठीक कर सकते हैं. इस मुद्रा को हाथ की उंगुलियों से तब बनाते है जब शरीर थकान के कारण नीचे की ओर झुक रहा हो. इस मुद्रा से आंतरिक ऊर्जा और शरीर को रोगों से लड़ने के लिए ताकत मिलती है. इस आसन को करने का कोई सटीक समय नहीं है. हालांकि अकेले और शांत जगह में इस मुद्रा को करना एक बेहतर विकल्प हो सकता है. इस मुद्रा को शांत कमरे में करने से आपके शरीर में ऊर्जा का संचार होता है.

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