शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान

निवेश व ट्रेडिंग का लांग और शॉर्ट
शेयर बाज़ार में निवेश/ट्रेडिंग के दो ही अंदाज़ हैं – लांग टर्म और शॉर्ट टर्म। यह अलग बात है कि लांग टर्म इधर छोटा और शॉर्ट टर्म लंबा होता गया है। इसमें से लांग टर्म या लंबी अवधि का निवेश/ट्रेडिंग अपेक्षाकृत बहुत सरल है। इसके लिए हर दिन बहुत कम समय देना पड़ता है और इसमें न्यूनतम मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ता है। खासकर तब जब आप इसे फुरसत के वक्त में करते है। इसके लिए किसी जटिल सिस्टम की जरूरत भी नहीं पड़ती। कंपनी और उसके उद्योग का आगापीछा देखा। फंडामेंटल एनालिसिस का सहारा लिया और कर दिया कई सालों के लिए निवेश।
जो लोग इसका सही तरीका अपनाते हैं वे बार-बार पौधे को उखाड़कर देखने की ज़रूरत नहीं समझते कि जड़ कितनी गहरी हो गईं। हां, इतना ज़रूर है कि कंपनी से जुड़ी खबरों व नतीज़ों पर बराबर ध्यान रखना पड़ता है और एमसीएक्स, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीज़ या गीतांजलि जेम्स जैसी नकारात्मक मार के गहराने से पहले ही कम से कम घाटा काटकर निकल लेना पड़ता है। लेकिन हकीकत यही है कि लांग टर्म निवेश में ज़रा-सी सावधानी और बहुत सरल सिस्टम की बदौलत आप आसानी से काफी धन बना सकते हैं।
लांग टर्म निवेश या ट्रेडिंग का बड़ा फायदा यह है कि इसमें बाज़ार में ली गई हर पोजिशन पर असीमित मुनाफा कमाने का मौका मिलता है। कम से कम सैद्धांतिक रूप से तो ऐसा कहा ही जा सकता है। दुनिया में वॉरेन बफेट या भारत में राकेश झुनझुनवाला जैसे तमाम सुपर कामयाब निवेशकों का रहस्य यह है कि उन्होंने सोच-समझकर स्टॉक्स खरीदे और उन्हें लंबे समय तक रखा। इनमें कुछ स्टॉक्स सोने की खान साबित होते हैं और आपका चंद हज़ार रुपए दस-बीस सालों में लाखों में बदल जाते हैं।
लेकिन लांग टर्म निवेश या ट्रेडिंग का बुनियादी नुकसान यह है कि आपको बड़ा तगड़ा धैर्य रखना पड़ता है। आपको ऐसे निवेश के ज्यादा मौके नहीं मिलते। इसलिए आपको उनका इंतज़ार करना पड़ता है। फिर, आपने एक बार कोई पोजिशन पकड़ ली तो उस स्टॉक के भावों में तमाम उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आपका दिल ऊपर-नीचे होता रहता है। लेकिन इस हालत को आपको मुक्त मन से लेना पड़ता है। एक और नुकसान यह है कि ऐसे निवेश के लिए आपको ज्यादा धन की जरूरत पड़ती है। ज्यादा धन नहीं हुआ तो आप कायदे से मौके का लाभ नहीं उठा पाते। मान लीजिए कि आप ने 1000 रुपए लगाए। वो पांच साल में 400 प्रतिशत बढ़ गया तब भी आपकी रकम 5000 ही होगी। वहीं आपने एक लाख रुपए लगाए तो 400 प्रतिशत बढ़ने पर वो पांच लाख रुपए हो जाएगी।
अब शॉर्ट ट्रेडिंग की बात। ऐसी ट्रेडिंग एक दिन की इंट्रा-डे ट्रेडिंग भी हो सकती है और तीन से पांच दिन की स्विंग ट्रेडिंग, दस-पंद्रह दिन की मोमेंटम ट्रेडिंग या एक से तीन महीने की पोजिशन ट्रेडिंग भी हो सकती है। इनके अपने फायदे नुकसान हैं। इन पर आप कितना भी रिसर्च कर लें, कितना भी अच्छा सिस्टम हो, पर दुनिया भर में दिग्गजों की ट्रेडिंग का अनुभव बताता है कि आप 60 प्रतिशत से ज्यादा मौकों पर सही नहीं हो पाते। कभी-कभी इकलौता बड़ा नुकसान आपकी सारी कमाई और पूंजी साफ कर देता है। दो साल लगातार कमाते रहे। फिर अचानक एक दिन सारा कुछ साफ। यह शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग का सबसे बड़ा जोखिम है। इसलिए यहां जोखिम प्रंबधन और मनी मैनेजमेंट का कठोर अनुशासन ही ट्रेडर को बचा पाता है।
अगर आप शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग का फैसला करते हैं तो एक बात सबसे पहले समझ लीजिए कि इसमें लांग टर्म निवेश की तरह असीमित नहीं, बल्कि सीमित लाभ की गुंजाइश होती है। अमूमन दो से चार, बहुत हुआ तो पांच से दस फीसदी। वहीं इन सौदों की लागत ज्यादा होती है। बार-बार खरीदने-बेचने में बार-बार ब्रोकरेज व अन्य टैक्स देने पड़ते हैं। खबरें शॉर्ट टर्म में अच्छे से अच्छे सौदे को पलीता लगा देती हैं। बड़े निवेशक या म्यूचुअल फंड किसी वजह से निकलने लगे तो मजहूत स्टॉक भी एल एंड टी की तरह छोटी अवधि में धराशाई हो जाता है। ऊपर से मनोवैज्ञानिक दबाव जो मामूली-सी चूक को बड़े नुकसान में बदल देती है। फिर बार लय टूटी तो आप लगातार गलत फैसले लेते चले जाते हैं। नतीजतन, धन से लेकर मन तक टूट जाता है।
इसलिए आपको तय करना पड़ता है कि आपके व्यक्तित्व को लांग टर्म निवेश सुहाता है या शार्ट टर्म ट्रेडिंग उसके माफिक पड़ती है। इस टाइमफ्रेम को पहले से तय कर लेना बेहद ज़रूरी है। एक बार इसे तय कर लिया तब उस टाइमफ्रेम में ट्रेड या निवेश करने का सर्वोत्तम तरीका चुनना होता है। शेयर छांटने होते हैं। देखना होता है कि इन स्टॉक्स का खुद अपना व्यक्तित्व क्या है। अशांत स्वभाव के हैं या शांत स्वभाव के। सौ मीटर रेस के धावक हैं या मैराथन के। 50-100 शेयरों का सैम्पल भी लें और उनके भावों की गति को देखें, उनके उतार-चढ़ाव यानी वोलैटिलिटी को देखें और बाज़ार की चाल से साथ उन्हें मिलाएं तो हर स्टॉक का व्यक्तित्व आपको अलग-अलग नज़र आएगा।
इसके साथ-साथ आपको अपनी कमियों और खूबियों को सही-सही समझना पड़ता है। अपना ही अन्वेषण करना पड़ता है जो कतई आसान काम नहीं है। अपने मन और दिमाग का चरित्र पकड़ना पड़ता है। छोटी-छोटी चीजें तक देखनी पड़ती हैं। जैसे, कंप्यूटर पर कितनी कुशलता से काम कर पाते हैं। आपके पास कुल पूंजी कितनी है। इसमें भी कितनी पूंजी पर आप रिस्क ले सकते हैं। धन से ही धन पैदा होता है। पर्याप्त धन नहीं है तो आप सौदे का आकार सही नहीं रख सकते और आप शानदार मौके का भी भरपूर लाभ नहीं उठा पाएंगे। इन सारी चीजों से आपका व्यक्तित्व बनता है। उससे स्टॉक्स के व्यक्तित्व को मिलाइए। तभी दोस्ती अच्छी निभेगी। नहीं तो जानते ही हैं कि बेमेल जोड़े जिंदगी भर एक-दूसरे को तकलीफ ही देते रहते हैं।
Hot Stocks: बाजार ऑलटाइम हाई के लिए हो रहा तैयार, शॉर्ट टर्म में जोरदार कमाई के लिए इन शेयरों पर रहे नजर
ट्रेडर्स को सलाह है कि वे अपना जोश बनाए रखें और थीमैटिक मूव्स पर अपनी नजर बनाए रखे। जो इस हफ्ते के फर्स्ट हॉफ में सुखिर्यों में आ सकते हैं
बाजार अगली दौड़ लगाने के पहले थोड़ा सुस्ता रहा है। अब 17600-17500 पर निफ्टी के लिए सपोर्ट दिख रहा है। जब तक ये सपोर्ट बना रहता है तब तक चिंता करने की जरूरत नहीं है
- bse live
- nse live
SAMEET CHAVAN- Angel शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान One
आमतौर पर मुहूर्त ट्रेडिंग का दिन सुस्ती के लिए जाना जाता है। लेकिन इस बार के मुहूर्त ट्रेडिंग सेशन से संवत 2079 की जोरदार शुरुआत देखने को मिली। इसके साथ ही 24 अक्टूबर के मुहूर्त ट्रेडिंग पिछले हफ्ते की भी अच्छी शुरूआत हुई। दूसरे सालों की मुहूर्त ट्रेडिंग के विपरीत इस बार की मुहूर्त ट्रेडिंग की बढ़त टिकाऊ नजर आ रही है। बाजार अपनी संवत 2079 की अपनी शुरुआती बढ़त को बनाए रहा। अंत में पिछला हफ्ता साप्ताहिक आधार पर 1 फीसदी से ज्यादा की बढ़त के साथ बाजार के लिए रेंज बाउंड रहा। सप्ताहित आधार पर भले ही बाजार में बढ़त हुई हो लेकिन ट्रेडिंग एक्शन काफी कमजोर रहा था। पिछले हफ्ते बाजार अपनी अच्छी शुरुआत को भुनाने में कामयाब नहीं रहा और 17800 के आसपास संघर्ष करता दिखा।
दूसरी तरफ बुल्स 17600 के स्तर को बचाए रखने में कामयाब रहे। हमारा मानना है कि बाजार अगली दौड़ लगाने के पहले थोड़ा सुस्ता रहा है। अब 17600-17500 पर निफ्टी के लिए सपोर्ट दिख रहा है। जब तक ये सपोर्ट बना रहता है तब तक चिंता करने की जरूरत नहीं है। वहीं, निफ्टी हमें अब जल्द ही 17800 का स्तर पार करके एक बार फिर से 18000 का मनोवैज्ञानिक स्तर छूता दिख सकता है।
ITR Filing: कैपिटल मार्केट से होने वाली Income की जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देना जरूरी
अगर आपकी कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन है तो आपको 15 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि अगर आपकी कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन है तो 1 लाख से अधिक की रकम पर 10 फीसदी का टैक्स देना होगा.
Updated on: Jul 28, 2022 | 1:47 PM
शेयरों के लेन-देन शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान से दो तरह के कैपिटल गेन होते हैं, पहला है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन. एक साल से कम की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं और एक साल या उससे अधिक की अवधि में हुई कमाई को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं. 31 जुलाई को इनकम टैक्स रिटर्न भरने की मियाद खत्म होने जा रही है. इसलिए हम आपके लिए इससे जुड़ी काम की खबर लेकर आए हैं. मसलन, अगर आपकी कैपिटल मार्केट से इनकम होती है, तो इसकी जानकारी इनकम टैक्स रिटर्न में देनी जरूरी है.
वहीं, एक ट्रेडर के रूप में आपको लॉस हुआ है या प्रॉफिट, आपके लिए टैक्स भरना जरूरी है. ज्यादातर लोगों को लगता है कि उन्हें नुकसान हुआ है, इसलिए उनके लिए टैक्स भरना जरूरी नही है. ऐसा करने पर आपको आयकर विभाग से नोटिस मिल सकता है. ध्यान रखना चाहिए कि टैक्स पीएंडएल रिपोर्ट में स्पेकुलेटिव इक्विटी इंट्राडे ट्रेड्स, नॉन स्पेकुलेटिर एफएंडअ ट्रेड, डिलिवरी ट्रेड्स से कैपिटल गेन और चार्जेस, टैक्स आदि सब कुछ अलग-अलग होता है.
समझें शेयर बाजार की कमाई को
शेयर बाजार से हुई कमाई पर लगने वाले टैक्स से पहले से समझना जरूरी है कि शेयर बाजार से कितने तरह के फायदे होते हैं. शेयरों के लेन-देन से दो तरह के कैपिटल गेन होते हैं, पहला है शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन और दूसरा है लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन. 1 साल से कम की अवधि में हुई कमाई को शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहते हैं और एक साल या उससे अधिक की अवधि में हुई कमाई को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहते हैं.
अब इंट्रा-डे ट्रेडिंग के बारे में जान लेते हैं. जैसा कि नाम से ही साफ है कि ये कमाई एक ही दिन में होती है. यानी सुबह से शाम तक के वक्त में आप शेयर बाजार में पैसे लगाकर उसे बेच देते हैं और फायदा कमाते हैं, तो उसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहते हैं और इससे हुआ फायदा शॉर्ट टर्म कैटिपल गेन होता है. ऐसे में उन्हें अपने मुनाफे पर 15 फीसदी का इनकम टैक्स चुकाना होगा. ध्यान रहे कि इंट्रा-डे से हुई कमाई को स्पेक्युलेटिव बिजनेस के तौर पर देखा जाता है, इसलिए आईटीआर फाइल करते वक्त आपको आईटीआर-3 फॉर्म का इस्तेमाल करना होगा.
कब भरना होता है आईटीआर-2
वहीं, अगर आप शेयर बाजार में एक दिन से अधिक के लिए शेयर खरीदते हैं तो उससे हुई कमाई के लिए आपको आईटीआर-2 फॉर्म भरना होगा. अगर आपकी कमाई शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन है तो आपको 15 फीसदी टैक्स देना होगा, जबकि अगर आपकी कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन है तो 1 लाख से अधिक की रकम पर 10 फीसदी का टैक्स देना होगा. बता दें कि 1 लाख रुपये तक के लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर आयकर में छूट दिए जाने का प्रावधान है.
कैपिटल ऐसेट्स जैसे म्यूचुअल फंड, स्टॉक्स, सोने और अचल संपत्ति से मिलने वाला लाभ कैपिटल गेन होता है. टैक्सपेयर्स को आईटीआर फॉर्म के CG शेड्यूल में कैपिटल गेन्स को भरना होता है. टैक्स एक्सपर्ट बताते हैं कि ऐसे टैक्सपेयर्स जो टैक्स के दायरे में नहीं आते हैं लेकिन उन्हें लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन मिला है और उसकी सीमा छूट की लिमिट से ज्यादा है तो उन्हें आईटीआर जरूर भरना चाहिए.
कैपिटल गेन्स कैलकुलेट करने के लिए एसेट के खरीद मूल्य से इसके बिक्री मूल्य को घटाना होगा. हालांकि यह तरीका अलग-अलग ऐसेट्स के लिए अलग हो सकता है. कैपिटल गेन्स पर टैक्स का रेट इस बात पर भी निर्भर करता है कि लाभ कम अवधि के लिए है या फिर लंबी अवधि के लिए.
आप भी करते हैं ऑप्शन ट्रेडिंग, समझ लें इंट्रिन्सिक और टाइम वैल्यू का गणित
ऑप्शन मार्केट में ज्यादातर नए इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स सीमित जोखिम के साथ असीमित फायदे की वजह से कॉल या पुट खरीदना पसंद करते हैं.
- Money9 Hindi
- Publish Date - November 7, 2022 / 05:53 PM IST
ऑप्शन मार्केट में ज्यादातर नए इन्वेस्टर्स और ट्रेडर्स सीमित जोखिम के साथ असीमित फायदे की वजह से कॉल या पुट खरीदना पसंद करते हैं. शॉर्ट टर्म प्रॉफिट के लिए निवेशक ऑप्शन ट्रेडिंग का इस्तेमाल करते हैं. किसी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को खरीदने के लिए ट्रेडर प्रीमियम का भुगतान करता है और इसका इस्तेमाल प्रॉफिट बनाने के लिए किया जाता है. ऐसे में ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू और टाइम वैल्यू को समझना जरूरी है. यह आपको प्रोफेशनल ऑप्शन ट्रेडर बनने में मदद कर सकता है.
ऑप्शन ट्रेडिंग के बारे में अच्छे से जानने के लिए 5paisa.com (https://bit.ly/3RreGqO) पर विजिट करें. 5पैसा पर आप विभिन्न चार्ट फॉर्म्स और रिपोर्ट्स की मदद से स्टॉक्स और शेयरों का विश्लेषण कर सकते हैं, जो आपको निर्णय लेने और पेशेवर ऑप्शन ट्रेडर बनने में मदद कर सकता है.
टाइम वैल्यू को समझने से पहले हम बात करते हैं इंट्रिन्सिक वैल्यू की. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में इंट्रिन्सिक वैल्यू का मतलब आमतौर पर कॉन्ट्रैक्ट की मार्केट वैल्यू से होता है. इंट्रिन्सिक वैल्यू यह बताता है कि वर्तमान में कॉन्ट्रैक्ट में कितना ‘इन-द-मनी’ है. ‘इन द मनी’ से मतलब है कि अंडरलाइंग एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से ज्यादा हो. किसी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में अंडरलाइंग एसेट को खरीदने या बेचने के लिए जिस मूल्य पर दो पक्षों के लिए समझौता होता है, उसे स्ट्राइक प्राइस कहते हैं.
उदाहरण के लिए, अगर आपके पास 200 रुपए के स्ट्राइक प्राइस वाला एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट है, जिसका मौजूदा समय में दाम 300 रुपए है. इस कॉल ऑप्शन की इंट्रिन्सिक वैल्यू 100 रुपए (300-200) होगी. ध्यान रखने वाली बात यह है कि जब अंडरलाइंग एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस से कम होगी, तो इंट्रिन्सिक वैल्यू जीरो होगी, क्योंकि कोई भी खरीदार उस सौदे को पूरा नहीं करना चाहेगा, जब उसे नुकसान हो रहा हो.
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की टाइम वैल्यू क्या है?
टाइम वैल्यू वह अतिरिक्त रकम है, जो खरीदार को इंट्रिन्सिक वैल्यू के ऊपर कॉन्ट्रैक्ट की समाप्ति तक के लिए देनी होती है. यह रकम ऑप्शन विक्रेता को ऑप्शन या राइट देने के एवज में मिलती है. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की एक्सपायरी बढ़ने पर टाइम वैल्यू की रकम भी बढ़ती है. ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट अपने एक्सपायरी डेट से जितना दूर होगा, उसमें अंडरलाइंग एसेट की कीमत स्ट्राइक प्राइस के मुकाबले ज्यादा होने या खरीदार की पसंदीदा जगह पर जाने की संभावना अधिक होती है. उदाहरण के लिए, यदि एक ऑप्शन की एक्सपायरी में 3 महीने और दूसरे ऑप्शन की एक्सपायरी में 2 महीने हैं, तो पहले वाले ऑप्शन में टाइम वैल्यू अधिक होगी.
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का लाभ उठाने के लिए खरीदार विक्रेता को प्रीमियम देता है. प्रीमियम के दो कम्पोनेंट होते हैं- इंट्रिन्सिक वैल्यू और टाइम वैल्यू. टाइम वैल्यू की रकम निकालने के लिए ऑप्शन प्रीमियम में से इंट्रिन्सिक वैल्यू को घटाना होगा. उदाहरण के लिए, ऊपर दिए गए 200 रुपए वाले ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का प्रीमियम मान लीजिए 150 रुपए था, जबकि इंट्रिन्सिक वैल्यू 100 रुपए थी. ऐसे में टाइम वैल्यू 50 रुपए (150-100) होगी.
ऐसे जानिए ऑप्शन ट्रेडिंग से जुड़ी हर बात, होगा फायदा
पिछले कुछ सालों में हमने भारतीय डेरिवेटिव्स बाजार में ऑप्शन सेगमेंट की ट्रेडिंग गतिविधियों में तेज वृद्धि देखी है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) फ्यूचर और ऑप्शन (एफ एंड ओ) सेगमेंट में दैनिक कारोबार 4 लाख करोड़ को पार कर गई है और इस इंडेक्स में ऑप्शन का 80% से अधिक योगदान रहा है। यही कारोबार बैंक निफ्टी पर साप्ताहिक और मासिक समाप्ति के दिनों पर 10 लाख करोड़ से अधिक हो गया है। आजकल ऑप्शन सेगमेंट अपनी प्रोफ़ाइल के कारण अधिक लोकप्रिय हो गया है और यह 50 ओवर या टेस्ट सिरीज मैचों की तुलना में आईपीएल या टी-20 मैचों की लोकप्रियता की तरह ही लगता है। इस सेगमेंट में ट्रेडिंग गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं क्योंकि यह सभी प्रकार के बाजार सेंटिमेंट्स का लाभ पाने का अवसर प्रदान करती है चाहे वह बुलिश, बियरिश, रेंज बाउंड या अत्यधिक अस्थिर हो। आइए पहले समझें कि ऑप्शन है क्या जो सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है? नकद बाजार, जहाँ शेयर खरीदे या बेचे जाते हैं, के अलावा एक्सचेंज में एक ऐसा सेगमेंट भी होता है जहाँ इन शेयरों या इंडेक्स के भविष्य और विकल्प खरीदे या बेचे जाते हैं।
संक्षेप में यदि आप किसी भी स्टॉक या इंडेक्स का भविष्य अनुबंध खरीदते हैं या बेचते हैं और यदि यह आपकी अपेक्षित दिशा के विपरीत चल रहा है, तो इसका मतलब है कि आपकी जोखिम असीमित है, वहीं अगर आपने भविष्य के अनुबंध के स्थान पर एक विकल्प अनुबंध खरीदा है, जिसका मतलब है कि आपकी जोखिम रिटर्न भुगतान किए गए प्रीमियम के लिए सीमित है जबकि फेवरेबल मार्केट मूवमेंट तक विस्तार करने के लिए रिटर्न असीमित होता है। ऑप्शन खरीदारों को प्रीमियम का भुगतान करना पड़ता है ताकि उन्हें अधिकार तो प्राप्त हो लेकिन कोई दायित्व न हो, इसलिए बाजार में गिरावट होने पर जोखिम सीमित होती है, जबकि बाजार में बढ़ोत्तरी होने पर रिवॉर्ड असीमित होता है। दूसरी ओर, चूँकि ऑप्शन विक्रेताओं को प्रीमियम प्राप्त होता है, इसलिए उनकी जोखिम असीमित होती है, जबकि लाभ केवल इस प्रीमियम के अनुबंध तक सीमित होता है जो उन्हें इस ऑप्शन के अनुबंध के लिए मिलता है। कॉल खरीदार को खरीदने का अधिकार मिलता है जबकि पुट खरीदार को बेचने का अधिकार मिलता है, जबकि ऑप्शन विक्रेताओं को दायित्व हस्तांतरित होता है चाहे वे कॉल चुनें या पुट।
ऑप्शन खरीदारों के लिए लाभ
ऑप्शन खरीदारों को केवल प्रीमियम का भुगतान करने की आवश्यकता होती है, इसलिए अनुबंध प्राप्त करने के लिए बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है। जोखिम सीमित होती है जो कि अधिकतम प्रीमियम राशि तक ही रहती है, चाहे बाजार स्थितियाँ कितनी भी प्रतिकूल हों। सुरक्षात्मक पुट्स ले कर पोर्टफोलियो की प्रतिरक्षा (हेजिंग) की जा सकती है।
ऑप्शन विक्रेताओं के लिए लाभ
रेंज बाउण्ड मूव से लाभ जैसे कि जब शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग के फायदे और नुकसान यह सीमा में रहता है तो प्रीमियम में गिरावट आती है। घटते प्रीमियम का लाभ जैसे कि डीप ओटीएम स्ट्राइक में कुछ प्रीमियम शामिल होते हैं, और इस बात की संभावना काफी उच्च होती है कि ये प्रीमियम शून्य की ओर बढ़ेंगे।
मनी कॉल की बिक्री करके स्थिति की लागत को कम करना।
ऑप्शन और ऑप्शन व्यापार के मिथक तथा वास्तविकता
ऑप्शन जोखिम से भरा होता है : ऑप्शन केवल तभी जोखिम भरे होते हैं जब हम उनका उपयोग करना नहीं जानते। खरीदार के लिए जोखिम केवल प्रीमियम राशि तक सीमित होता है। नेकेड विक्रेता होने पर ही ऑप्शन में उच्च जोखिम की संभावना होती है। इसलिए इसमें उचित बाजारगत निर्णय या हेजिंग रणनीति की आवश्यकता होती है जो वास्तव में जोखिम को कम कर देता है और यही ऑप्शन सेगमेंट की खूबसूरती है।
ऑप्शन को समझना मुश्किल है: ऑप्शन की वास्तविकता को समझना कोई मुश्किल काम नहीं है। असल में, आपको एक निर्दिष्ट मूल्य पर अंतर्निहित स्टॉक खरीदने या बेचने का अधिकार प्राप्त होता है। इससे भी बेहतर, केवल दो ऑप्शन हैं :- कॉल और पुट; और आप या तो खरीद सकते हैं या बेच सकते हैं। यदि आप इस क्षेत्र में नये हैं, तो कॉलर, लेडर स्प्रेड, आयरन कोंडोर, स्ट्रिप, स्ट्रैप, बटरफ्लाई, कैलेंडर स्प्रेड, बॉक्स इत्यादि के बजाय अपेक्षाकृत सरल रणनीतियों के साथ रहना सबसे अच्छा है।
ऑप्शन बेचना मुफ्त पैसे प्राप्त करने जैसा है: एक गलत धारणा यह भी है कि ऑप्शन की बिक्री लगभग जोखिम मुक्त है। यद्यपि नकदी एकत्र करने के लिए ऑप्शन की बिक्री की जा सकती है, लेकिन नेकेड या असुरक्षित विकल्पों को बेचने पर यह जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि इसमें रिस्क असीमित है। ऑप्शन विक्रेता ज्यादातर समय फायदे में रह सकते हैं; लेकिन कभी-कभी आकस्मिक नुकसान भारी पड़ सकता है जब अनुभवहीन निवेशक नियम के अनुसार जोखिम का प्रबंधन न करे।
केवल ऑप्शन विक्रेता पैसे कमाते हैं: तथ्य यह है कि दोनों ही यानी ऑप्शन के खरीदार और विक्रेता ऑप्शन व्यापार से लाभ कमा सकते हैं। यदि केवल विक्रेता ही पैसा कमाएंगे तो कोई खरीदार नहीं होगा, कोई खरीदार नहीं होगा तो कोई बाजार नहीं होगा। कभी-कभी कई स्थितियों में विकल्प खरीदने में भी बढ़त मिलती है, खासकर उच्च अस्थिरता, ट्रेंडिंग या विनिर्दिष्ट बाजार के परिदृश्य में। कई बार ऐसा भी देखा गया है कि प्रीमियम कई गुना हो जाता है।
एक सामान्य मिथक यह है कि ऑप्शन व्यापार बहुत जोखिम भरा है। ऑप्शन जोखिम भरा हो सकता है, लेकिन हमेशा ऐसा होना जरूरी नहीं है। जोखिम की सहनशीलता के आधार पर कोई ऑप्शन कम या अधिक जोखिम भरा हो सकता है। इसका उपयोग अनुमान के लिए भी किया जा सकता है और हेजिंग, सुरक्षा और लेवरेज के लिए भी। ऑप्शन के साथ पैसे कमाने के एक से अधिक तरीके हैं और हम मानते हैं कि ऑप्शन की ऐसी खूबसूरती और अनुकूलित ऑप्शन की रणनीति भारतीय डेरिवेटिव्स बाजार में व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देगी।