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क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं

क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं
कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान भारत सहित पूरी दुनिया में क्रूड ऑयल की खपत कम हुई, जिसकी वजह से कोरोना काल में क्रूड ऑयल के दाम औसतन 30 से 40डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहे। जिसकी वजह से भारत का क्रूड ऑयल इंपोर्ट बिल काफी कम हो गया। जानकारों की मानें तो जब क्रूड ऑयल के दाम में एक डॉलर कम होता है तो भारत के क्रूड ऑयल इंपोर्ट बिल में 2900 करोड़ रुपए की कटौती हो जाती है। इस दौरान क्रूड ऑयल के दाम औसतन 50 फीसदी से ज्यादा कम हुए। ऑयल मिनिस्ट्री के प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की रिपोर्ट की मानें तो भारत का इस साल का ऑयल इंपोर्ट बिल आधा रह सकता है।

ऑल टाइम हाई पर पहुंचा विदेशी मुद्रा भंडार, जानिए देश के खजाने में जमा हुए कितने डॉलर

नई दिल्ली। पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। यह आयात को समर्थन देने के लिए आर्थिक संकट की स्थिति में अर्थव्यवस्था को बहुत आवश्यक मदद उपलब्ध कराता है। छह अगस्त 2021 को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 88.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 621.464 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।

इसलिए आई बढ़त : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, 30 जुलाई 2021 को समाप्त सप्ताह में इसमें 9.427 अरब डॉलर की तेजी आई थी और यह 620.576 अरब डॉलर रह गया था। विदेशी मुद्रा संपत्तियों (एफसीए) में आई वृद्धि से विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी आई है। एफसीए 1.508 अरब डॉलर बढ़कर 577.732 अरब डॉलर रह गया। विदेशी मुद्रा संपत्तियों में विदेशी मुद्रा भंडार में रखी यूरो, पाउंड और येन जैसी दूसरी विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि या कमी का प्रभाव भी शामिल होता है।

स्वर्ण भंडार में कमी : इस दौरान देश का स्वर्ण भंडार 58.8 करोड़ डॉलर कम हुआ और 37.057 अरब डॉलर पर पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास मौजूद देश का विदेशी मुद्रा भंडार 3.1 करोड़ डॉलर घटकर 5.125 अरब डॉलर रह गया और विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) 10 लाख डॉलर घटकर 1.551 अरब डॉलर रह गया।

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जानें क्या है विदेशी मुद्रा भंडार : विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग जरूरत पड़ने पर देनदारियों का भुगतान करने में किया जाता है। इसमें आईएमएफ में विदेशी मुद्रा असेट्स, स्वर्ण भंडार और अन्य रिजर्व शामिल होते हैं, क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं जिनमें से विदेशी मुद्रा असेट्स सोने के बाद सबसे बड़ा हिस्सा रखते हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार के फायदे : साल 1991 में देश को पैसा जुटाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था। तब सिर्फ 40 करोड़ डॉलर के लिए भारत क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं को 47 टन सोना इंग्लैंड के पास गिरवी रखना पड़ा था। लेकिन मौजूदा स्तर पर, भारत के पास एक वर्ष से अधिक के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त मुद्रा भंडार है। यानी इससे एक साल से अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से की जा सकती है, जो इसका सबसे बड़ा फायदा है।

अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार आरक्षित रखने वाला देश विदेशी व्यापार का अच्छा हिस्सा आकर्षित करता है और व्यापारिक साझेदारों का विश्वास अर्जित करता है। इससे वैश्विक निवेशक देश में और अधिक निवेश के लिए प्रोत्साहित हो सकते हैं। सरकार जरूरी सैन्य सामान की तत्काल खरीद का निर्णय भी ले सकती है क्योंकि भुगतान के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

भारतीय वैश्विक परिषद

अपनी वर्तमान विदेशी मुद्रा संकट के बीच श्रीलंका ने अगस्त 2021 में देश में आपातकाल की घोषणा की थी। श्रीलंका के ज्यादातर बैंक आवश्यक वस्तुओं के आयात के लिए धन मुहैया कराने हेतु विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहे हैं। देश के राजस्व में करीब 80 अरब अमेरिकी डॉलर की कमी आई है। [i] सेंट्रल बैंक ने एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 200 रुपये से अधिक की दर से वायदा कारोबार और रुपये के स्पॉट ट्रेडिंग (हाज़िर कारोबार) पर प्रतिबंध लगा दिया है [ii] । इसके कारण इस द्वीपीय राष्ट्र में विदेशी मुद्रा संकट और गंभीर हो गया है। हालांकि, यह स्थिति रातोंरात नहीं बनी है। इसके कई कारण हैं जैसे 2019 में ईस्टर बम हमले, कोविड-19 महामारी का फैलना और कई राजनीतिक फैसले जिन्होंने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए। आसन्न संकट को भांपते हुए सरकार ने इस साल की शुरुआत में ही वाहनों, खाद्य तेलों और कुछ अन्य वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगाकर इसे टालने की कोशिश की लेकिन इससे कुछ विशेष लाभ नहीं हुआ। इस संकट की ओर ले जाने वाले कई महत्वपूर्ण कारकों में से कुछ महत्वपूर्ण कारकों का विश्लेषण इस लेख में किया क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं गया है।

2019 में कोलंबो में हुए सीरियल बम विस्फोट के बाद से देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में लगभग 10% का योगदान करने वाला पर्यटन उद्योग बुरे दौर से गुजर रहा है। 21 अप्रैल 2019, ईस्टर रविवार को, आत्मघाती हमलावरों ने कोलंबो के तीन चर्च और तीन आलिशान होटलों को अपना निशाना बनाया था। हमले के बाद से काफी समय तक श्रीलंका में पर्यटकों का आना कम रहा। पर्यटन के क्षेत्र में 70% तक की गिरावट दर्ज की गई और इसके कारण श्रीलंका की अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। पर्यटकों की कमी के कारण विदेशी मुद्रा संकट पैदा हो गया, जुलाई 2020 के आखिर में विदेशी मुद्रा भंडार कम हो कर 2.8 अरब अमेरिकी डॉलर रह गया जबकि पिछले क्या विदेशी मुद्रा में पैसे खर्च होते हैं वर्ष की तुलना में अर्थव्यवस्था में 3.6% [iii] की कमी दर्ज की गई।

इससे पहले की स्थिति सामान्य होती और पर्यटन उद्योग रफ्तार पकड़ता, कोविड -19 ने श्रीलंका समेत पूरे विश्व को प्रभावित कर दिया। हालांकि पहली दो लहरों ने श्रीलंका में कम बर्बादी मचाई लेकिन तीसरी लहर ने तो पूरे द्वीप को बर्बाद ही कर दिया। हालांकि कोविड महामारी के शुरुआती लहरों के दौरान श्रीलंका की स्थिति अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत अच्छी रही, लेकिन चीन और यूरोपीय संघ के देशों जैसे इसके प्रमुख निर्यात गंतव्य स्वास्थ्य संबंधी गंभीर आपात स्थितियों से जूझ रहे थे। इसलिए, इन देशों में श्रीलंका से किया जाना वाला निर्यात स्वाभाविक रूप से प्रभावित हुआ। परिधान के कई कारखाने, जो निर्यात की एक प्रमुख वस्तु और श्रीलंका के लिए विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत हैं, महीनों तक बंद पड़े रहे।

निर्माण क्षेत्र को छोड़कर, बीते कुछ वर्षों में श्रीलंकाई उद्योगों को शायद ही कोई प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मिला हो। इसके अलावा, मार्च 2020 में, कोलंबो स्टॉक एक्सचेंज (सीएसई/ CSE) में विदेशी फंडों के बहिर्वाह के कारण एक दिन में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई। विदेशी निवेशकों द्वारा रखी गई सरकारी हुंडी और सरकारी बॉन्ड में 9.03% (8.236 अरब रुपये) की जबरदस्त कमी हुई, इसके कारण इसी माह के पहले दो सप्ताहों में 19.6 अरब रुपयों का कुल विदेशी मुद्रा बहिर्वाह हुआ [iv] । स्टॉक एक्सचेंज में हुई गिरावट निश्चित रूप से कोविड-19 का नतीजा था। साल 2020 के दौरान विदेशी प्रेषण में 2.7 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट के साथ समस्या बढ़ गई थी क्योंकि विदेशों में काम करने वाले श्रीलंकाई महामारी से बुरी तरह प्रभावित थे [v] ।

अब तक श्रीलंका पहले से ही मुद्रा संकट के कठिन दौर से गुजर रहा था। नकदी की कमी से निपटने के लिए श्रीलंका के सेंट्रल बैंक ने बीते 18 महीनों में 800 अरब रुपए छापे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ रही है [vi] । पैसे के इस प्रवाह ने आपूर्ति को स्थिर बनाए रखते हुए मांग में वृद्धि की है। इसके कारण उच्च मुद्रास्फीति की बुनियादी आर्थिक समस्या पैदा हुई जिसके परिणामस्वरूप मुद्रा का अवमूल्यन हुआ, आयात महंगा हो गया और विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव बहुत बढ़ गया। मार्च 2020 के पहले सप्ताह से ज्यादातर प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले श्रीलंकाई रुपये का अवमूल्यन शुरु हो गया। विशेष रूप से, यह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुआ और 198.46 रुपये (30 मई 2021 को) के स्तर पर पहुँच गया, यह इतिहास में अब तक के सबसे बड़े अवमूल्यन में से एक था [vii] । रुपये के वर्तमान अवमूल्यन ने अनिवार्य रूप से देश के आयात खर्च में वृद्धि की और परिणामस्वरूप इसका विदेशी ऋण बोझ बढ़ गया।

इस विदेशी मुद्रा संकट का एक अन्य कारण देश का अपनी आवश्यक वस्तुओं के लिए आयात पर अत्यधिक निर्भरता भी है। श्रीलंका दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं जैसे चीनी, दालें, अनाज और दवाओं के लिए लगभग पूरी तरह से आयात पर निर्भर है और इस स्थिति में देश अपने आयात बिलों का भुगतान करने के लिए विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा है, भोजन की कमी भी है। सरकार द्वारा जैविक खेती करने और रसायानिक उर्वरकों के प्रयोग पर रोक लगाने के अचानक किए गए फैसले से घरेलू खाद्य उत्पादन में भारी गिरावट आई और खाद्य मूल्य में बहुत अधिक वृद्धि हुई।

उपरोक्त सभी कारकों ने श्रीलंका को गंभीर विदेशी मुद्रा संकट में डाल दिया है। अब वह ऐसी स्थिति में है जहां सरकार के लिए आपातस्थिति से बाहर निकलने के लिए दूसरे देशों से मदद लेना अनिवार्य हो गया है। देखना यह होगा कि अब श्रीलंका की सरकार क्या कदम उठाती है।

*डॉ. राहुल नाथ चौधरी, रिसर्च फेलो, इंडियन काउंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स।
अस्वीकरण: व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।

डिस्क्लेमर: इस अनुवादित लेख में यदि किसी प्रकार की त्रुटी पाई जाती है तो पाठक अंग्रेजी में लिखे मूल लेख को ही मान्य माने ।

[i] Central Bank of Sri Lanka.

[iv] Deyshappriya, N R Ravindra. (17 Jul, 2021). Covid 19 and the Sri Lankan Economy. Engage-Economic and Political Weekly. Vol. 56, Issue No. 29

[v] Gunadasa, S (2020): Sri Lankan Government Responds to COVID-19 by Mobilising the Military and Helping the Financial Elite. World Socialist Website, Available at: https://www.wsws.org/en/articles/2020/03/18/sril-m18.html. Accessed on10.9.2021

[vi] Nirupama Subramanian (Sep. 9,2021) Explained: The perfect storm that has led to Sri Lanka’s national ‘food emergency’. Indian Express. Available at: https://indianexpress.com/article/explained/sri-lanka-food-emergency-debt-burden-7496044/ Accessed on: 10.9.2021

[vii] Deyshappriya, N R Ravindra. (17 Jul, 2021). Covid 19 and the Sri Lankan Economy. Engage-Economic and Political Weekly. Vol. 56, Issue No. 29

गिरावट की मुद्रा

एक बार फिर डालर के मुकाबले रुपए की कीमत में चिंताजनक गिरावट दर्ज हुई है। इससे स्वाभाविक ही भारत को महंगाई के मोर्चे पर लड़ने में कठिनाई पैदा हो गई है।

गिरावट की मुद्रा

सांकेतिक फोटो :Pixabay

विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में एक डालर की कीमत इक्यासी रुपए नौ पैसे आंकी गई, जो कि अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपए के अवमूल्यन के पीछे बड़ी वजह अमेरिकी फेडरल बैंक की ब्याज दरों में सख्ती, डालर का मजबूत होना और भारत में निवेशकों का भरोसा कमजोर होना माना जा रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए अपनी मौद्रिक नीति में सख्ती का रुख अपनाए हुए है, जिसका कुछ सकारात्मक परिणाम भी नजर आया है।

मगर रुपए की कीमत में गिरावट महंगाई से पार पाने और निवेश आकर्षित करने की दिशा में चुनौतियां पेश करेगी। भारत पेट्रोलियम पदार्थों और खाद्य तेलों के मामले में बड़े पैमाने पर दूसरे देशों पर निर्भर है।

जब रुपए का अवमूल्यन होता है तो वस्तुओं के आयात पर अधिक खर्च करना पड़ता है, जिसका अर्थ है कि उन वस्तुओं की कीमतें घरेलू बाजार में बढ़ जाती हैं। रुपए के अवमूल्यन से पार पाने के लिए आयात के मुकाबले निर्यात बढ़ाने की रणनीति अपनानी पड़ती है। मगर निर्यात के मामले में भारत अपेक्षित गति से नहीं बढ़ पा रहा।

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रुपए के अवमूल्यन का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ता है। भारतीय शेयर बाजार का रुख कमजोर बना हुआ है, विदेशी निवेशकों में उत्साह नजर नहीं आ रहा। इसके चलते लगातार विदेशी मुद्रा भंडार घट रहा है। फिर सबसे बड़ी चुनौती चालू खाता घाटे से पार पाने का होता है।

भारत का चालू खाता घाटा पहले ही चिंताजनक स्तर पर है, रुपए के अवमूल्यन से इसके और बढ़ने की आशंका है। सकल घरेलू उत्पाद में औद्योगिक विकास दर की भागीदारी काफी नीचे चल रही है। सरकार उसे रफ्तार देने और निवेश आकर्षित करने के लिए करों में कटौती, कर्ज माफी, उद्योग-धंधे लगाने संबंधी नियम-कायदों और श्रम कानूनों को लचीला बनाने का प्रयास करती रही है।

मगर इसका असर नजर नहीं आ रहा। ऐसे में रुपए के अवमूल्यन से एक बार फिर कच्चे तेल की खरीद और अंतत: पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि होगी। इसका असर उद्योगों की लागत पर पड़ेगा। इससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी। अभी रिजर्व बैंक ने माना है कि अगर महंगाई छह फीसद तक रहती है, तो अर्थव्यवस्था में बेहतरी की उम्मीद बलवती होगी, मगर खुदरा महंगाई इस स्तर पर भी नहीं पहुंच पा रही।

आगे के दिनों में महंगाई पर काबू पाने की संभावना भी धुंधली बनी हुई है, क्योंकि इस बार बरसात पर निर्भर फसलों का उत्पादन लक्ष्य से काफी कम होने की उम्मीद जताई जा रही है। असमान वर्षा ने आगामी फसलों के लिए भी परेशानी पैदा कर दी है। ऐसे में रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं की कीमतों पर काबू पाना भी कठिन हो सकता है।

पहले ही सरकार कुछ जिन्सों के निर्यात पर रोक और कुछ पर आयात शुल्क घटा कर महंगाई को काबू में करने का प्रयास कर चुकी है। मगर यह तरीका लंबे समय तक नहीं आजमाया जा सकता।

सरकार दावा तो करती है कि कोरोना काल के बाद निर्यात में तेजी आई है और लक्ष्य से अधिक निर्यात हुआ है, मगर हकीकत सामने है कि रुपए का अवमूल्यन हो रहा है। इसे रोकने के लिए जरूरी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय उत्पाद के लिए अधिक से अधिक जगह घेरने का प्रयास किया जाए।

जानना जरूरी है: 2021 में एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा बनी भारतीय रुपया, जानिए देश पर इसका क्या असर होगा?

indian rupee

नई दिल्ली। भारत के लिए साल 2021 कुछ अच्छा नहीं रहा। क्योंकि पहले GDP में गिरावट और अब साल के अंत तक भारतीय रूपया एशिया का सबसे कमजोर करंसी बन गया है। दरअसल, कोरोना के चलते विदेशी फंड देश के शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं, जिसका बुरा असर साफतौर पर भारतीय मुद्रा पर पड़ा है।

विदेशियों ने 4 अरब डॉलर निकाल लिए

अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में भारतीय करेंसी में 2.2 फीसदी की गिरावाट दर्ज की गई है। जानकार बता रहे हैं कि वैश्विक फंडों ने देश के शेयर बाजार से कुल 4 अरब डॉलर निकाल लिए। जो आसपास के क्षेत्रीय बाजारों में सबसे अधिक राशि है। इसका असर ये हुआ कि एशिया के सबसे कमजोर करंसी में भारतीय रूपया शामिल हो गया।

कोरोना के कारण मार्केट में दहशत का महौल

दरअसल, कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉम के आने और भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान हुए नुकसान को देखते हुए वैश्विक बाजार में अफरा तफरी का महौल है। विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों में से काफी बड़ी संख्या में पैसे निकाल रहे हैं। उन्हें डर है कि नए वैरिएंट के आने से कहीं उन्हें ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।

इस वर्ष रूपये में 4 प्रतिशत की गिरावट

गोल्डमैन सैक्स ग्रुप इंक और नोमुरा होल्डिंग्स इंक ने भारतीय बाजार के लिए हाल ही में अपने आउटलुक को कम कर दिया है। इसके लिए उन्होंने उंचे मूल्यांकरन का हवाला भी दिया। रिकॉर्ड हाई व्यापार घाटा और फेडरल रिजर्व के साथ केंद्रीय बैंक की अलग नीति ने भी रूपये की कैरी अपील को प्रभावित किया। ब्लूमबर्ग के ट्रेडर्स और एनालिस्टों के सर्वे के मुताबिक, रूपया 76.50 पर पहुंच सकता है। यानी इस रूपये में 4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।

इस वर्ष रूपया कमजोर हो गया, इस बात को सुनकर आपके मन में भी ये सवाल आया होगा कि आखिर इससे देश को क्या नुकसान होगा, तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि रूपये के कमजोर होने या मजबूत होने से देश को क्या फायदा या क्या नुकसान होगा।

इस कारण से रूपया कमजोर या मजबूत होता है

सबसे पहले जानते हैं रूपया कमजोर या मजबूत क्यों होता है? बता दें कि रूपये की कीमत पूरी तरह इसकी मांग एवं आपूर्ति पर निर्भर करती है। इस पर आयात और निर्यात का भी असर पड़ता है। हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेने करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। रिजर्व बैंक समय-समय पर इसके आंकड़े जारी करता है। विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है। साल 2021 में इसी विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आई है। यानी निवेशकों ने यहां से अपने पैसे निकाल लिए हैं।

ऐसे पता चलता है, रूपया कमजोर है या मजबूत

मालूम हो कि अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रूतबा हासिल है। इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है। यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रूपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर। अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए भी माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं। दुनिया के ज्यादातर देशों में आसानी से इसे स्वीकार्य किया जाता है।

भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में ही होते हैं

अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में ही होते हैं। यानी अगर देश को अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड ऑयल), खाद्य पदार्थ, इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम आदि विदेश से मंगवाना है तो उसे डॉलर में इसे खरीदना होता है। ऐसे में अगर विदेशी मुद्रा भंडार कम है तो रूपये के मुकाबले डॉलर और कही ज्यादा मजबूत हो जाता है। इसका असर ये होता है कि हमें सामान खरीदने के लिए और अधिक पैसे खर्च करने पड़ते हैं। अधिक पैसे खर्च करने का मतलब है भारत में सामान का दाम बढ़ जाना। जिसका सीधा असर आम नागरिक की जेब पर पड़ता है।

डॉलर के भाव में 1 रूपये की तेजी से इतना पड़ता है भार

बता दें कि भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है। ऐसे में रूपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाता है और इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा देती हैं। एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रूपये की वृद्धि से तेल कंपनयों पर 8 हजार करोड़ रूपये का बोझ पड़ता है।

कोरोना काल में इन पांच कारणों से बढ़ी भारत की विदेशी दौलत, आखिर क्या है इसका राज

नई दिल्ली। दुनिया की किसी भी इकोनॉमी में विदेशी मुद्रा भंडार एक अहम स्थान होता है। इस दौलत से किसी भी देश को विदेशों से सामान मंगाने में काफी आसानी होती है। साथ ही आप अच्छी इकोनॉमी में गिने जाते हैं। अगर बात भारत की करें तो मौजूदा समय में विदेशी मुद्रा भंडार अपने चरम पर है। वो भी तब जब देश कोरोना वायरस के मामले में दूसरे नंबर है। जीडीपी के आंकड़े माइनस में है। ताजा आंकड़ों के अनुसार देश के पास मौजूदा समय में 575 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। जिसमें लगातार दो महीनों से इजाफा हो रहा है, लेकिन इसकी शुरुआत जून से ही शुरू हो गई थी, जब देश के इस भंडार ने 500 अरब डॉलर का आंकड़ा छुआ था। खास बात तो ये है कि मौजूदा वित्त वर्ष में यह इजाफा 163 बिलियन डॉलर का हो चुका है। सवाल ये है कि आखिर ऐसे कौन से कारण हैं, जिनकी वजह से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार कोरोना काल में आसमान पर पहुंच गया। आइए आपको भी बताते हैं।

India's foreign wealth increased due to 5 reasons in Corona period

पहले बात करते हैं विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़ों की
- देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार आठवें सप्ताह तेजी दर्ज की गई।
- 20 नवंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.52 अरब डॉलर बढ़कर रिकॉर्ड 575.29 अरब डॉलर हो गया।
- मौजूदा वित्त वर्ष में विदेशी मुद्रा भंडार में 163 अरब डॉलर का इजाफा हो चुका है।
- जून के महीने में विदेशी मुद्रा भंडार 500 अरब डॉलर के पार कर दुनिया में तीसरे नंबर पहुंचा था।
- विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 2.83 अरब डॉलर की वृद्धि के साथ 533.10 अरब डॉलर पर पहुंचा।
- स्वर्ण भंडार हालांकि 33.90 करोड़ डॉलर घटकर 36.01 अरब डॉलर हो गया।
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास आरक्षित निधि 1.90 करोड़ डॉलर बढ़कर 4.68 अरब डॉलर हो गई।
- विशेष आहरण अधिकार 40 लाख डॉलर बढ़कर 1.49 अरब डॉलर पर पहुंच गया।

अक्टूबर से लगातार हो रहा है विदेश मुद्रा भंडार में इजाफा

समाप्त सप्ताह की तारीख इजाफा ( अरब डॉलर में ) कुल विदेशी मुद्रा भंडार ( अरब डॉलर में )
20 नवंबर 2.52 575.29
13 नवंबर 4.28 572.77
06 नवंबर 8 568.49
30 अक्टूबर 18.3 560.71
23 अक्टूबर 5.41 560.53
16 अक्टूबर 3.61 555.12
09 अक्टूबर 5.87 551.51
02 अक्टूबर 3.62 545.64

इन कारणों से बढ़ा विदेशी मुद्रा भंडार
सवाल ये है कि आखिर देश में कोरोना काल के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ा कैसे? जब इस बारे में ऐनालिसिस किया गया तो समझ आया कि लॉकडाउन के बीच भारत का क्रूड ऑयल इंपोर्ट बिल, गोल्ड इंपोर्ट बिल, इडिबल इंपोर्ट बिल, मई से लेकर अब तक विदेशी निवेशकों का भारत में रुझान और सबसे अहम बात रिलायंस की विदेशियों कंपनियों के साथ करीब दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की डील जैसे कारण रहे जिन्होंने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को सपोर्ट किया।

1. भारत का कम हुआ क्रूड ऑयल इंपोर्ट बिल

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कोरोना वायरस लॉकडाउन के दौरान भारत सहित पूरी दुनिया में क्रूड ऑयल की खपत कम हुई, जिसकी वजह से कोरोना काल में क्रूड ऑयल के दाम औसतन 30 से 40डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहे। जिसकी वजह से भारत का क्रूड ऑयल इंपोर्ट बिल काफी कम हो गया। जानकारों की मानें तो जब क्रूड ऑयल के दाम में एक डॉलर कम होता है तो भारत के क्रूड ऑयल इंपोर्ट बिल में 2900 करोड़ रुपए की कटौती हो जाती है। इस दौरान क्रूड ऑयल के दाम औसतन 50 फीसदी से ज्यादा कम हुए। ऑयल मिनिस्ट्री के प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल की रिपोर्ट की मानें तो भारत का इस साल का ऑयल इंपोर्ट बिल आधा रह सकता है।

Gold and silver : सोने व चांदी में ऐतिहासिक तेजी

यह बात किसी से छिपी नहीं कि भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़े आयातक देशों में से एक है। इसके लिए भारत करोड़ों की विदेशी मुद्रा भंडार खर्च करता है। लेकिन कोरोना काल में सोने के दाम में इजाफा, गोल्ड ज्वेलरी की डिमांड कम होना और गोल्ड इंवेस्टमेंट कम होने से भारत ने कम आयात किया। आंकड़ों की मानें तो वल्र्ड गोल्ड काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार 1995 के बाद भारत में गोल्ड गोल्ड की डिमांड सबसे कम है। जिसकी वजह से अप्रैल के महीने में भारत का गोल्ड इंपोर्ट 50 किलो था, जबकि पिछले साल समान महीने में 101 टन से ज्यादा था। वैसे मौजूदा समय में गोल्ड इंपोर्ट में हल्का सुधार देखने को मिला है।

3. इडिबल ऑयल इंपोर्ट हुआ कम

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वहीं भारत सिर्फ क्रूड ऑयल और सोने का ही बाहर से आयात नहीं करता है, बल्कि खाने का तेल, जिसे इडिबल ऑयल कहते हैं उसका इंपोर्ट भी काफी होता है। लेकिन बीते 9 महीने से भारत द्वारा इसका आयात काफी कम कर रहा है। पहला कारण तो भारत सरकार द्वारा इस पर लगातार इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ी रही। वहीं लॉकडाउन के कारण भारत बाहर के देशों से कुछ नहीं मंगा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 में इडिबल ऑयल इंपोर्ट में 32 फीसदी से ज्यादा की गिरावट देखने को मिली थी। जिसकी वजह से भी भारत के विदेशी मुद्रा भंडार की बचत हुई है। वैसे बीते सप्ताह सरकार की ओर क्रूड पाल्म ऑयल से इंपोर्ट ड्यूटी को 10 फीसदी कम किया गया है।

4. विदेशी निवेशकों का बढ़ा रुझान

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वहीं दूसरी ओर मौजूदा वित्त वर्ष में विदेशी निवेशकों का रुझान भारतीय शेयर बाजार में बढ़ा है। अगर बात नवंबर के महीने की करें तो 20 नवंबर तक विदेशी निवेशकों की ओर से 50 हजार करोड़ रुपए का विदेशी निवेश किया है। जिसने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने का प्रयास किया। वहीं दूसरी ओर मौजूदा वित्त वर्ष में विदेशी निवेशकों का 30.40 बिलियन डॉलर लग चुका है। जिसने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने का प्रयास किया है।

5. रिलायंस जियो और रिटेल डील भी बना अहम कारण

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भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में अहम योगदान जियो प्लेटफॉर्म्स और रिलायंस रिटेल में विदेशी निवेश का भी काफी हाथ रहा है। दोनों ही सब्सिडीयरीज में रिलायंस को 2 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा मिले हैं। जियो में जहां फेसबुक, सिल्वर लेक, केकेआर अटलांटिक, मुबाडला, विस्टा जैसी बड़ी कंपनियों ने हिस्सेदारी खरीदी है। वहीं रिटेल वेंचर में भी दुनिया की बड़ी कंपनियों की ओर से करीब 50 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा रुपाया लगाया है। जिसका असर भी विदेशी मुद्रा भंडार में देखने को मिला है।

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