शेयर मार्केट में invest कैसे करे?

इक्विटी में नए हैं, तो कुछ ऐसे कर सकते है निवेश
कई निवेशक जो इक्विटी में नए हैं, अक्सर समझ नहीं पाते कि सही निवेश पथ पर कैसे आरंभ किया जाए। इक्विटी के प्रति रुचि आमतौर पर लंबी अवधि में मुद्रास्फीति से ऊपर रिटर्न बनाने की संभावना से बनती है। हमारे लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कुछ इक्विटी एक्सपोजर की आवश्यकता होती है, चाहे वह म्युचुअल फंड, प्रत्यक्ष स्टॉक या इन दोनों के संयोजन के माध्यम से हो। लेकिन अगर आप इक्विटी में नए हैं और सीधे स्टॉक से शुरुआत करना चाहते हैं, तो निवेश करने के लिए सही कंपनी का चयन करना आसान नहीं है।आपको किसी कंपनी की वित्तीय स्थिति, व्यावसायिक संभावनाओं, उद्योग मूल्यांकन, बाजार की स्थितियों आदि को समझने की आवश्यकता है। अगर यह आपको मुश्किल लगता है, तो निफ्टी 50 ईटीएफ आपके लिए उपयुक्त विकल्प है।
लेखक : करुणेश देव
ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड) क्या है: ईटीएफ शेयर्स का एक समूह है जो विशिष्ट इंडेक्स को ट्रैक करता है, एक्सचेंजों पर शेयरों की तरह कारोबार करता है लेकिन म्यूचुअल फंड हाउस द्वारा पेश किया जाता है। आप बाज़ार के समय के दौरान एक्सचेंजों से ईटीएफ की इकाइयां खरीद और बेच सकते हैं।
निफ्टी 50 ईटीएफ क्या है: निफ्टी 50 ईटीएफ पहली बार स्टॉक निवेशकों के लिए और सामान्य रूप से अपनी इक्विटी यात्रा शुरू करने वालों के लिए सबसे अच्छे शुरुआती विकल्पों में से एक है। यह इंडेक्स के सबसे बड़ी 50 कंपनियों या ब्लू-चिप शेयरों का विविध संग्रह है।
इसके कुछ ख़ास लाभ हैं
विविधता: निफ्टी 50 इंडेक्स में बाजार पूंजीकरण के मामले में सबसे बड़ी भारतीय कंपनियां शामिल हैं। इसलिए निफ्टी 50 ईटीएफ एक निवेशक के लिए शेयरों और क्षेत्रों में उत्कृष्ट विविधीकरण प्रदान करता है।
कम जोखिम: डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो निवेशक के लिए जोखिम को कम करता है, जो कि एक स्टॉक में निवेश करने के मामले में नहीं हैए जहां बाजार में उतार-चढ़ाव कंपनियों की ईटीएफ की तुलना में स्टॉक की कीमत पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। इसके अलावाए निफ्टी 50 ईटीएफ में निवेश से मिलने वाला रिटर्न अंतर्निहित सूचकांक में उतार-चढ़ाव की नकल करेगा।
कम लागत: निफ्टी 50 ईटीएफ में शेयर मार्केट में invest कैसे करे? निवेश अपेक्षाकृत सस्ता है। ईटीएफ एक सक्रिय उत्पाद नहीं है। यह केवल निफ्टी 50 इंडेक्स को ट्रैक करता है। चूंकि इसमें कोई रिप्लेसमेंट कॉस्ट या निर्णय लेने की लागत शामिल नहीं है, इसलिए कुल शुल्क कम हैं। एक्सपेंस रेश्यो, या दूसरे शब्दों मेंए फंड चार्ज सिर्फ 2.5 आधार अंक (0.02.0.05) है, जो अन्य निवेशों की तुलना में नगण्य है।
छोटे निवेश के लिए उपयुक्त: इक्विटी और स्टॉक में एक नए निवेशक के रूप मेंए आपको कुछ कंपनियों के शेयरों की कीमतें काफी महंगी लग सकती हैं। निफ्टी में ऐसे शेयर हैं जो 15,000 रुपए से 90,000 रुपए प्रति शेयर पर कारोबार कर रहे हैं। यदि आप अपने विश्लेषण पर निवेश कर रहे हैं तो आपको इन कंपनियों में निवेश करने के लिए पर्याप्त राशि की आवश्यकता होगी। नए निवेशकों के लिएए विशेष रूप से उनके करियर के शुरुआती दौर में यह राशि बहुत बड़ी और पहुंच से बाहर हो सकती है।
बाजार की समझ: निफ्टी 50 ईटीएफ में निवेश करके, आप शुरू में बहुत अधिक जोखिम उठाए बिना बाजार की गतिशीलता को समझना शुरू कर सकते हैं। जब आप बाजारों को चलाने वाले विभिन्न कारकों से खुद को परिचित करते हैं, तो आप अपनी जोखिम लेने की क्षमता, लक्ष्य, समय सीमा और निवेश योग्य राशि के आधार पर छोटे और मिड कैप स्टॉक या म्यूचुअल फंड का पता लगा सकते हैं।
चलते-चलतेनिवेश करना कठिन नहीं है, लेकिन इसके लिए निश्चित रूप से धैर्य, समझ और समय की जरूरत होती है।
आपको रिंग में उतरना पड़ेगा, केवल दर्शक होने से यहां परिणाम नहीं मिलते हैं।
नोट : यहां दी गई जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य से दी गई है। किसी भी निवेश से पहले उसकी पूरी जानकारी अवश्य लें।
अमेरिकी शेयर बाजार में कैसे करें निवेश, क्या ये सही समय है?
एक वित्तीय वर्ष में 2,50,000 डॉलर यानी करीब 1 करोड़ 80 लाख रुपये भारतीय सीमा के बाहर निवेश कर सकते हैं.
जबरदस्त रिटर्न के लिए अच्छी और मुनाफा बनाने वाली कंपनी की तलाश हर निवेशक को होती है. हो सकता है ऐसे में आपका मन टेस्ला, अमेजन या नेटफ्लिक्स जैसी कंपनी पर आया हो जो भारतीय बाजार नहीं बल्कि US के बाजार में निवेश के लिए मौजूद है. आइए ऐसे में समझते हैं एक भारतीय निवेशक के लिए अमेरिकी बाजार में निवेश से जुड़े विभिन्न पहलुओं को-
अमेरिका में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर पैकेज के ऐलान के बाद S&P 500 इंडेक्स अप्रैल में पहली बार 4,000 का स्तर पार कर गया.
कितना बड़ा है US स्टॉक मार्केट?
अमेरिकी शेयर बाजार दुनिया का सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट है. US के दो बड़े स्टॉक एक्सचेंज, न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज और नैस्डैक में अमेजन, टेस्ला, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, इत्यादि विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों के शेयर लिस्टेड हैं. अमेरिकी बाजार से जुड़े विभिन्न इंडेक्स जैसे S&P 500 इंडेक्स, डाउ जोंस इंडस्ट्रियल एवरेज और नैस्डैक कंपोजिट इंडेक्सों का इस्तेमाल निवेशकों की दृष्टि से US और विश्व की अर्थव्यस्था को समझने के लिए किया जाता है. साथ ही दुनिया के दूसरे बाजारों पर भी इनकी दिशा का बड़ा असर होता है. दूसरे देशों की कंपनियां भी विभिन्न वजहों से अपनी लिस्टिंग US बाजार में करवाती है.
निवेश के क्या हो सकते हैं फायदे?
निवेशक हमेशा रिस्क को कम करने के लिए अपने पोर्टफोलियो में विभिन्न सेक्टर और अलग अलग तरह के स्टॉक्स रखना चाहते हैं. इस दृष्टि से किसी भी बाहरी बाजार में निवेश नए विकल्पों को खोल देता है. US बाजार में कई दूसरे देशों की कंपनियों भी खुद को लिस्ट करवाती है.
बीते वर्षों में अमेरिकी बाजार में भारतीय बाजार की तुलना में कम वोलैटिलिटी देखी गई है. काफी बार रिटर्न के मामले में भी US के बाजार का प्रदर्शन भारतीय बाजार से बेहतर रहा है. रुपये के डॉलर की तुलना में कमजोर होने का भी निवेशकों को फायदा मिल सकता है.
स्टार्टअप हब होने के कारण US में अच्छी क्षमता वाली कंपनियों में शुरुआत में निवेश का मौका होता है. इसी तरह भारत या अन्य बाजारों में कई बड़ी कंपनियों की सब्सिडियरी लिस्ट होती है जबकि US बाजार में सीधे निवेश से ज्यादातर ऐसी कंपनियों में आसानी से निवेश कर सकते हैं.
कैसे कर सकते हैं निवेश शुरु?
US बाजार में निवेश के दो रास्ते हैं.
पहला तरीका सीधे निवेश का है. इसमें निवेशक भारतीय बाजार की शेयर मार्केट में invest कैसे करे? तरह ही ब्रोकर के साथ रजिस्ट्रेशन कर स्टॉक्स में खरीद बिक्री कर सकता है. आजकल भारतीय ब्रोकरेज कंपनियां भी अमेरिकी ब्रोकरेज हाउस के साथ करार कर निवेशकों को आसान निवेश की सुविधा देती हैं. निवेशक जरूरी पैन कार्ड, घर के पते को सत्यापित करने वाले ID के साथ सीधे अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी के साथ भी बाजार में व्यापार के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं.
दूसरा तरीका म्यूचुअल फंड के रास्ते निवेश का हो सकता है. भारत में अनेकों म्यूचुअल फंड US बाजार आधारित फंड चलाते हैं. ऐसे फंड या तो सीधा अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड शेयरों में निवेश करते हैं या ऐसे बाजारों से जुड़े दूसरे म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं. इस प्रक्रिया में किसी अलग तरह के रजिस्ट्रेशन और बाजार के गहरी समझ की जरूरत नहीं है.
पैसों के लेनदेन की क्या है प्रक्रिया?
अमेरिकी बाजार में निवेश के लिए भारतीय करेंसी को US डॉलर में बदलना होता है. फॉरेन एक्सचेंज संबंधी गतिविधि होने के कारण यहां RBI के लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) के नियमों का पालन जरूरी है. नियमों के तहत एक व्यक्ति बिना विशेष अनुमति के एक वित्तीय वर्ष में 2,50,000 डॉलर यानी करीब 1 करोड़ 80 लाख रूपये भारतीय सीमा के बाहर निवेश कर सकता है.
किसी भी बाजार में निवेश से बनाए पैसे पर भारत सरकार टैक्स लगाती है. नियमों के अनुसार अवधि के मुताबिक शार्ट या लांग टर्म कैपिटल गेंस टैक्स लगाया जा सकता है. हालांकि डिविडेंड पर टैक्स US गवर्नमेंट लगाती है.
निवेश से पहले किन बातों को समझना जरूरी?
US या अन्य विदेशी बाजारों में निवेश से पहले इन्वेस्टमेंट से जुड़े विभिन्न तरह की फीस और चार्ज को समझना काफी जरूरी है. रुपये को डॉलर में कन्वर्ट करने की प्रक्रिया से लेकर म्यूचुअल फंड द्वारा चार्ज की जाने वाली एक्स्ट्रा फीस कमाई पर असर डाल सकती है. ब्रोकरेज कंपनियां भी स्पेशल दरों पर ब्रोकरेज चार्ज करती है. ऐसे में बेहतर है कि शार्ट टर्म के लिए और ज्यादा समझ के बिना निवेश ना करें. लंबे समय के निवेश ज्यादा रिटर्न दिला सकता है. ज्यादा रिस्क से बचने के लिए इंटरनेशनल म्यूचुअल फंड में निवेश बेहतर हो सकता है.
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काम की खबर: नजारा का IPO तो खुला, लेकिन शेयर मार्केट में invest कैसे करे? जानिए कैसे करें IPO में निवेश, डीमैट अकाउंट है जरूरी
हमारे देश में बचत के पैसे लगाने यानी निवेश करने के कई तरीके हैं। इन्ही में से एक है 'इनीशियल पब्लिक ऑफर' यानि IPO। निवेश का ये तरीका आज कल ट्रेंड में है। अगर आप भी IPO में निवेश करने का प्लान बना रहे हैं या करना चाहते हैं तो सबसे पहले ये समझ लीजिए कि IPO क्या होता है? दरअसल, जब कोई कंपनी अपने स्टॉक या शेयर्स छोटे-बड़े निवेशकों के लिए जारी करती है तो उसका जरिया IPO होता है। इसके बाद कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट होती है।
IPO होता क्या है?
जब कोई कंपनी पहली बार अपनी कंपनी के शेयर्स को लोगों को ऑफर करती है तो इसे IPO कहते हैं। कंपनियों द्वारा ये IPO इसलिए जारी किया जाता है जिससे वह शेयर बाजार में आ सके। शेयर बाजार में उतरने के बाद कंपनी के शेयरों की खरीदारी और बिकवाली शेयर बाजार में हो सकेगी। यदि एक बार कंपनी के शेयरों की ट्रेडिंग की इजाजत मिल जाए तो फिर इन्हें खरीदा और बेचा जा सकता है। इसके बाद शेयर को खरीदने और बेचने से होने वाले फायदे और नुकसान में भागीदारी निवेशकों की होती है।
कंपनी IPO क्यों जारी करती है?
जब किसी कंपनी को अपना काम बढ़ाने के लिए पैसों की जरूरत होती है तो वह IPO जारी करती है। ये IPO कंपनी उस वक्त भी जारी कर सकती है जब उसके पास धन की कमी हो वह बाजार से कर्ज लेने के बजाय IPO से पैसा जुटाना चाहती हैं। शेयर बाजार में लिस्टेड होने के बाद कंपनी अपने शेयरों को बेचकर पैसा जुटाती है। बदले में IPO खरीदने वाले लोगों को कंपनी में हिस्सेदारी मिल जाती है। मतलब जब आप किसी कंपनी के शेयर खरीदते हैं तो आप उस कंपनी के खरीदे गए हिस्से के मालिक होते हैं।
क्या इसमें निवेश करने में रिस्क हो सकता है?
इसमें कंपनी के शेयरों की परफॉर्मेंस के बारे में कोई आंकड़े या जानकारी लोगों के पास नहीं होती है, इसलिए इसे थोड़ा रिस्की तो माना ही जाता है। लेकिन जो व्यक्ति पहली बार शेयर बाजार में निवेश करता है उसके लिए IPO बेहतर विकल्प है।
IPO में निवेश कैसे करें?
अगर आप IPO में इन्वेस्ट करना चाहते है तो उसके लिए आपको डीमैट या ट्रेडिंग अकाउंट खोलना होता है। ये अकाउंट एचडीएफसी सिक्योरिटीज, आईसीआईसीआई डायरेक्ट और एक्सिस डायरेक्ट जैसे किसी भी ब्रोकरेज के पास जाकर खोला जा सकता है। इसके बाद आपको जिस कंपनी में निवेश करना है उसमें आवेदन करें। निवेश के लिए जरूरी रकम आपके डीमैड एकाउंट से लिंक्ड एकाउंट में होनी चाहिए। निवेश की रकम तब तक आपके एकाउंट से नहीं कटती जब तक आपको शेयर अलॉट नहीं हो जाता।
जब भी कोई कंपनी IPO निकालती है उससे पहले इसका एक समय किया जाता है जो 3-5 दिन का होता है। उसी समय में उस कंपनी का IPO ओपन रहता है। जैसे शेयर मार्केट से हम एक, दो या अपने चुनाव से शेयर खरीदते है यहां ऐसा नहीं होता। यहां आपको कंपनी द्वारा तय किए गए लॉट में शेयर खरीदना होता है। ये शेयर की कीमत के हिसाब से 10, 20, 50, 100, 150, 200 या अधिक भी हो सकता है। वहां आपको 1 शेयर की कीमत भी दिखाई देती है।
IPO की कीमत कैसे तय होती है?
IPO की कीमत दो तरह से तय होती है। इसमें पहला होता है प्राइस बैंड और दूसरा फिक्स्ड प्राइस इश्यू ।
प्राइस बैंड कैसे?
शेयर की कीमत को फेस वैल्यू कहा जाता है। जिन कंपनियों को आईपीओ लाने की इजाजत होती है वे अपने शेयर्स की कीमत तय कर सकती हैं। लेकिन इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य क्षेत्रों की कंपनियों को सेबी और बैंकों को रिजर्व बैंक से अनुमति लेनी होती है। कंपनी का बोर्ड ऑफ डायरेक्टर बुक-रनर के साथ मिलकर प्राइस बैंड तय करता है। भारत में 20% प्राइस बैंड की इजाजत है। इसका मतलब है कि बैंड की अधिकतम सीमा फ्लोर प्राइस से 20% से ज्यादा नहीं हो सकती है। फ्लोर प्राइस वह न्यूनतम कीमत है, जिस पर बोली लगाई जा सकती है। प्राइस बैंड उस दायरे को कहते हैं जिसके अंदर शेयर जारी किए जाते हैं। मान लीजिए प्राइस बैंड 100 से 105 का है और इश्यू बंद होने पर शेयर की कीमत 105 तय होती है तो 105 रुपए को कट ऑफ प्राइस कहा जाता है। अमूमन प्राइस बैंड की ऊपरी कीमत ही कट ऑफ होती है।
आखिरी कीमत
स्टॉक मार्केट एक्सपर्ट अविनाश गोरक्षकर के अनुसार बैंड प्राइस तय होने के बाद निवेशक किसी भी कीमत के लिए बोली लगा सकता है। बोली लगाने वाला कटऑफ बोली भी लगा सकता है। इसका मतलब है कि अंतिम रूप से कोई भी कीमत तय हो, वह उस पर इतने शेयर खरीदेगा। बोली के बाद कंपनी ऐसी कीमत तय करती है, जहां उसे लगता है कि उसके सारे शेयर बिक जाएंगे।
अगर IPO में कंपनी के शेयर नहीं बिकते हैं तो क्या होगा?
अगर कोई कंपनी अपना IPO लाती है और निवेशक शेयर नहीं खरीदता है तो कंपनी अपना IPO वापस ले सकती है। हालांकि कितने प्रतिशत शेयर बिकने चाहिए इसको लेकर कोई अलग नियम नहीं है।
ज्यादा मांग आने पर क्या होगा?
मान लीजिए कोई कंपनी IPO में अपने 100 शेयर लेकर आई है लेकिन 200 शेयरों की मांग आ जाती है तो कंपनी सेबी द्वारा तय फॉर्मूले के हिसाब से शेयर अलॉट होते हैं। कंप्यूटराइज्ड लॉटरी के जरिए आई हुई अर्जियों का चयन होता है। इसके अनुसार जैसे किसी निवेशक ने 10 शेयर मांगे हैं तो उस 5 शेयर भी मिल सकते हैं या किसी निवेशक को शेयर नहीं मिलना भी संभव होता है।
म्यूच्यूअल फंड में निवेश के नुकसान – Disadvantages of Investing in Mutual Funds
म्यूच्यूअल फंड में निवेश के नुकसान , Disadvantages of Investing in Mutual Funds – म्यूच्यूअल फंड के क्या क्या नुकसान हो सकते हैं? आपने म्यूच्यूअल फंड के नाम के बारे में सुना ही होगा। आपको इसके फायदों के बारे में पता ही होगा कि यह कैसे पैसे दोगुना करता है। लेकिन इनके कुछ नुकसान भी है। जिनकी चर्चा हम करने वाले हैं।
आज हम इस के बारे में जानेंगे? यदि आप इस विषय मे पूर्ण जानकारी चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही वेबसाइट पर आए हैं।
आज हम इस के बारे मे पूरे विस्तार से चर्चा करने वाले है। यहाँ इस वेबसाइट पर आपको यथासंभव जानकारी मिल जाएगी। और हमें पूर्ण उम्मीद है कि इस लेख को पढ़ने के बाद आपके मन की सारी जिज्ञासाएँ शांत होने वाली है।
म्यूचुअल फंड में जानकर करें निवेश :- Investing in Mutual Funds
अब हम आपको म्यूचुअल फंड के नुकसान के बारे में पूरी जानकारी देंगे जिससे आप सभी चीजों को अच्छी तरह समझ परख कर ही म्युचुअल फंड में इन्वेस्ट करें तथा जिससे आपको किसी भी जोखिम का सामना ना करना पड़ सके ।
आज के इस आर्टिकल में जानेंगे कि म्यूच्यूअल फंड के कोई नुकसान है भी या नहीं?हमने म्यूचुअल फंड के सभी फायदों के बारे में अच्छे तरीके से तो जान लिया है कि कैसे आप mutual fund के माध्यम से अपने पैसे को दोगुना कर सकते है तथा बहुत अच्छे पैसे कमा सकते हैं।
म्यूच्यूअल फंड में निवेश के नुकसान :- Disadvantages of Investing in Mutual Funds
जिस प्रकार म्यूचुअल फंड में निवेश के लाभ है की इसके माध्यम से हमारे पैसे दुगने होते हैं उसी प्रकार इसके कई शेयर मार्केट में invest कैसे करे? नुकसान भी हदों के निम्नलिखित हैं:-
1.रिटर्न की गारंटी नहीं:-
बाजार में स्थिति ऑप्शन होते हैं कि फंड रिटर्न हो सकता है लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं होता है। क्योंकि म्यूच्यूअल फंड का फायदा सीधे तरीके से स्टॉक मार्केट के उतार-चढ़ाव से जुड़ा हुआ होता है। तथा स्टॉक मार्केट में हमेशा रिस्क ही बना रहता है। जिसके कारण म्यूचुअल फंड के फायदे में भी उतार-चढ़ाव बना रहता है।
हम बहुत ही कम टाइम में म्यूचुअल फंड से बहुत अधिक मुनाफा प्राप्त कर लेंगे तो ये हमारी गलतफहमी होती है। क्योंकि बहुत कम समय के अंतर्गत म्यूचुअल फंड के अंतर्गत हमें बहुत अधिक मुनाफा नहीं हो सकता।
2.म्यूच्यूअल फंड की लागत:-
म्यूच्यूअल फंड को संभालने हेतु आपके द्वारा जो निवेश किया गया फंड है उसमे से कुछ पैसा expense ratio के रूप में फंड हाउस को दे दिया जाता है। यदि हम कम अवधि हेतु निवेश करते हैं तो ये जो खर्च है वो हमारा कम लगेगा लेकिन वही जब हम लंबे समय हेतु निवेश करते हैं तो ये बहुत ज्यादा हो जाता है।
3.एग्जिट लोड (Exit Load) लेना:-
यदि हम म्यूचुअल फंड के निवेश को 1 वर्ष के अंतर्गत ही निकाल कर ले आते हैं तो हमें उस पर 1% Exit Load देना पड़ेगा। ये NAV का बहुत ही छोटा सा हिस्सा होता है। Exit Load को लगाने का एक ही मकसद है कि निवेशक बाहर न जा पाए क्योकिं कई लोग जो होते है वो स्कीम्स मे ही एंट्री तथा एग्जिट करते रहते है। यह उन लोगो के लिए बेकार होता है जो कि म्यूच्यूअल फंड में से अपना पैसा जल्दी से निकालना चाहते है।
4.लॉक इन अवधि:-
लॉक इन अवधि का मतलब यह होता है कि हमें हमारा निवेश किया गया पैसा एक निश्चित समय हेतु जमा करना होगा तथा उस दौरान हम उस जमा पैसे को निकाल नहीं सकते है। लेकिन अगर हम उस पैसे को निकालते हैं तो हमें अपने निवेश पर नुकसान उठाना पड़ सकता है।
5.म्यूच्यूअल फंड रिटर्न पर टैक्स:-
म्यूच्यूअल फंड स्कीम पर भी हमकों टैक्स देना पड़ता है जिससे कि हमारे मुनाफे का कुछ प्रतिशत कम हो ही जाता है। यदि हम 12 महीने से कम समय के लिए इक्विटी में निवेश करते है तो हमें short term capital gain के रूप में 15% टैक्स देना होगा।
6.नियंत्रण की कमी:-
जैसा की हम सभी जानते है कि म्यूचुअल फंड में हम जो पैसा निवेश करते है उस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं रह पाता है, क्योंकि उसे फंड मैनेजर के द्वारा नियंत्रित शेयर मार्केट में invest कैसे करे? किया जाता है। यह मेनेजर अपनी इच्छानुसार हमारे निवेश को स्टॉक मार्केट या अन्य बाजार में लगाता रहता है।
7.डायरेक्ट निवेश से हानि :-
निवेश करने से पहले आवश्यक जानकारियों के बारे में जान लेना चाहिए क्योंकि अगर हमे इन बातों की जानकारी नहीं होगी तो डायरेक्ट निवेश करने में हमारे द्वारा गलतियों की संभावना रहती है। अधिक रिटर्न पाने के लिए डायरेक्ट निवेश बेहतर विकल्प होता है लेकिन बिना समझ के ये करना बेवकूफी भरा कदम हो सकता है।
8.स्कीम चुनने में गलती:-
हमारे द्वारा म्यूचुअल फंड में एक सही स्कीम का चयन करना आसान बात नहीं होती है। अधिकतर निवेशक भविष्य के प्रदर्शन को ध्यान में न रखकर पूर्व प्रदर्शन को देखकर ही स्कीम का चुनाव कर लेते हैं।
इस तरह से वह संभावित रिटर्न पाने से वंचित रह जाते हैं जिसे हम किसी दूसरे स्कीम में निवेश करके प्राप्त कर सकते थे इसलिए इस बात का अच्छे तरीके से ख्याल रखना चाहिये कि हम बेहतरीन रिटर्न वाले म्यूच्यूअल फण्ड मे निवेश करे जिससे कि हमे उसका फायदा मिल सके।
9.विविधीकरण:-
म्यूचुअल फंड में विविधीकरण से फायदा भी हो सकता है परंतु कई बार इससे हमें नुकसान भी हो सकता है।
जब किसी स्टॉक का दाम दोगुनी रकम हो जाता है इसके पश्चात् भी म्यूच्यूअल फंड में निवेश शेयर मार्केट में invest कैसे करे? की कीमत दोगुनी नहीं हो पाती है, क्योंकि हमारा निवेश फंड मैनेजर के द्वारा अलग-अलग शेयर में किया जाता रहता है।
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निष्कर्ष:-
आज के इस आर्टिकल में हमने जाना कि जिस प्रकार म्युचुअल फंड के फायदे होते हैं उसी प्रकार उसके अपने अपने अन्य प्रकार के नुकसान भी होते हैं इसलिए म्यूचुअल फंड में निवेश करने से पहले सभी आवश्यक शर्तों के बारे में जान लेना चाहिए।
मुझे शेयर मार्केट में invest कैसे करे? पूर्ण उम्मीद है कि इन सभी पॉइंट्स को पढ़ने के बाद आपके मन की सारी आशंका दूर हो गयी होगी। यदि आपको इसके बारे मे और भी अधिक जानकारी चाहिए तो आप हमें कॉमेंट के माध्यम से बता सकते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल ( FAQs )
1. म्यूचुअल फंड में नुकसान कब होता है?
Ans. जब हम बिना ध्यान दिए उस में निवेश करते हैं तथा आवश्यक शर्तों के बारे में नहीं पड़ते हैं।
2. क्या म्यूचुअल फंड के अपने फायदे हैं?
Ans. म्यूच्यूअल फंड के अपने फायदे भी हैं और नुकसान भी है।
3. क्या म्यूच्यूअल फंड मैं पैसे लगाने से पैसे डूब जाते हैं?
Ans. जी नहीं, पैसे डूबते नहीं है। लेकिन हा आपके युनिट के दाम में उतार चढाव के कारण आपके निवेश की रकम का मुल्य कम भी हो सकता है।
4. म्यूच्यूअल फंड से पैसे कब निकाल सकते हैं?
Ans. जब हमें लगे कि यह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है तो हम म्यूच्यूअल फंड से पैसे निकाल सकते हैं।