जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है

भास्कर एक्सप्लेनर: जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के उच्चतम स्तर पर, क्या है इसकी वजह और यह देश के लिए कितना फायदेमंद?
देश का विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त के आखिरी हफ्ते में 541.43 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है। एक सप्ताह में इसमें 3.88 बिलियन डॉलर (28.49 हजार करोड़ रुपए) की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले 21 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 537.548 बिलियन डॉलर (39.49 लाख करोड़ रुपए) था। जून में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 500 बिलियन डॉलर के आंकड़े को पार करते हुए 501.7 बिलियन डॉलर (36.85 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंचा था। 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इस समय पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर के करीब है।
इसलिए बढ़ रहा है विदेशी मुद्रा भंडार
- आर्थिक मंदी के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का सबसे बड़ा कारण भारतीय शेयर बाजारों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ना है।
- बीते कुछ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कई भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाई है।
- मार्च में भारत के डेट और इक्विटी सेगमेंट से एफपीआई ने करीब 1.20 लाख करोड़ रुपए की निकासी की थी, लेकिन इस साल के अंत तक अर्थव्यवस्था के वापस पुरानी स्थिति में लौटने की उम्मीद के कारण एफपीआई भारतीय बाजारों में वापस आ गए हैं।
- इसके अलावा क्रूड की कीमतों में गिरावट के कारण देश का आयात बिल कम हुआ है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार का बोझ घटा है। इसी तरह से विदेशों से रुपया भेजने और विदेश यात्राओं में कमी आई है। इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ कम हुआ है।
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर 2019 को कॉरपोरेट टैक्स की दरों में कटौती की घोषणा की थी। इसके बाद से विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना अच्छा संकेत
कोरोनावायरस महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में उदासी का माहौल है। इस कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून तिमाही) में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है। मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों और व्यापार में स्थिरता के कारण यह गिरावट आई है। ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है।
आज 1991 के विपरीत स्थिति
विदेशी मुद्रा भंडार की आज की यह स्थिति 1991 के बिलकुल विपरीत है। तब भारत ने प्रमुख वित्तीय संकट से बाहर निकलने के लिए गोल्ड रिजर्व को गिरवी रख दिया था। मार्च 1991 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 5.8 बिलियन डॉलर (42.59 हजार करोड़ रुपए) था। लेकिन आज विदेशी मुद्रा भंडार के दम पर देश किसी भी आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रमुख असेट्स
- फॉरेन करेंसी असेट्स (एफसीए)।
- गोल्ड रिजर्व।
- स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर)।
- इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) के साथ देश की रिजर्व स्थिति।
विदेशी मुद्रा भंडार का अर्थव्यवस्था के लिए महत्व
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी सरकार और आरबीआई को आर्थिक ग्रोथ में गिरावट के कारण पैदा हुए किसी भी बाहरी या अंदरुनी वित्तीय संकट से निपटने में मदद करती है।
- यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराती है।
- मौजूदा विदेशी भंडार देश के आयात बिल को एक साल तक संभालने के लिए काफी है।
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी से रुपए को डॉलर के मुकाबले स्थिति मजबूत करने में मदद मिलती है।
- मौजूदा समय में विदेशी मुद्रा भंडार जीडीपी अनुपात करीब 15 फीसदी है।
- विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक संकट के बाजार को यह भरोसा देता है कि देश बाहरी और घरेलू समस्याओं से निपटने में सक्षम है।
आरबीआई करता है विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन
- आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार के कस्टोडियन और मैनेजर के रूप में कार्य करता है। यह कार्य सरकार से साथ मिलकर तैयार किए गए पॉलिसी फ्रेमवर्क के अनुसार होता है।
- आरबीआई रुपए की स्थिति को सही रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करता है। जब रुपया कमजोर होता है तो आरबीआई डॉलर की बिक्री करता है। जब रुपया मजबूत होता है तब डॉलर की खरीदारी की जाती है। कई बार आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए बाजार से डॉलर की खरीदारी भी करता है।
- जब आरबीआई डॉलर में बढ़ोतरी करता है तो उतनी राशि के बराबर रुपया जारी करता है। इस अतिरिक्त लिक्विडिटी को आरबीआई बॉन्ड, सिक्योरिटी और एलएएफ ऑपरेशन के जरिए मैनेज करता है।
कहां रखा होता है विदेशी मुद्रा भंडार
- आरबीआई एक्ट 1934 विदेशी मुद्रा भंडार को रखने का कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
- देश का 64 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार विदेशों में ट्रेजरी बिल आदि के रूप में होता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका में रखा होता है।
- आरबीआई के डाटा के मुताबिक, मौजूदा समय में 28 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक और 7.4 फीसदी कमर्शियल बैंक में रखा है।
- मार्च 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार में 653.01 टन सोना था। इसमें से 360.71 टन सोना विदेश में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की सुरक्षित निगरानी में रखा है। बचा हुआ सोना देश में ही रखा है।
- डॉलर की वैल्यू में विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी सितंबर 2019 के 6.14 फीसदी से बढ़कर मार्च 2020 में 6.40 फीसदी पर पहुंच गई है।
2014 में 300 बिलियन डॉलर के करीब था विदेशी मुद्रा भंडार
आरबीआई के डाटा के मुताबिक, वित्त वर्ष 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इसी साल नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे। तब से लगातार विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी हो रही थी। 2018 में यह बढ़कर 424.5 बिलियन डॉलर (31.13 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया था। हालांकि, इसके अगले साल यानी 2019 में यह थोड़ा घटकर 412.87 बिलियन डॉलर (30.26 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया था। 28 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में यह बढ़कर 541.4 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है।
चीन का विदेशी मुद्रा जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है भंडार भारत से 484% ज्यादा
पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा है। अगस्त 2020 में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर था। वहीं, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 541.4 बिलियन डॉलर है। इस प्रकार चीन का विदेशी मुद्रा जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है भंडार भारत के मुकाबले 484 फीसदी ज्यादा है। 2014 में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 4 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया था। हालांकि, तब से अब तक इसमें गिरावट आ रही है।
इस साल 19.33 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा क्रूड
इस साल 1 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल थी। इसी सप्ताह 6 जनवरी को कीमतें बढ़कर 68.91 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। इसके बाद से क्रूड की कीमतें लगातार कम हो रही है। इस बीच मार्च के अंत में कोरोनावायरस महामारी पूरी दुनिया फैल गई। इससे क्रूड की मांग घट गई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि क्रूड की कीमत घटकर 19.33 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई। इस प्रकार क्रूड की कीमतों में इस साल अपने उच्चतम स्तर से 71 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। सोमवार 7 सितंबर को यह 42.05 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है।
अर्थात्ः दुनिया न माने
हालात तेजी से बदलते रहते हैं. जब तक हम समझ पाते तब तक अमेरिका ने भारत से आयात पर बाधाएं लगानी शुरू कर दीं. आइएमएफ बता रहा है कि आने वाले वर्षों में अमेरिका और यूरोपीय समुदाय में आयात घटेगा.
अंशुमान तिवारी/संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
- नई दिल्ली,
- 18 जून 2018,
- (अपडेटेड 18 जून 2018, 2:26 PM IST)
संकेतों, अन्यर्थों और वाक्पटुताओं से सजी-संवरी विदेश नीति की कामयाबी का कोई आंकड़ा या तथ्य भी हो सकता है?
यह चिरंतन सवाल ट्रंप और कोरियाई तानाशाह किम की गलबहियों के बाद वापस लौट आया है और भारत के हालिया भव्य कूटनीतिक अभियानों की दहलीज घेर कर बैठ गया है.
विदेश नीति की सफलता की शास्त्रीय मान्यताओं की तलाश हमें अमेरिका के तीसरे राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन (1743-1826) तक ले जाएगी, जिन्होंने अमेरिका की (ब्रिटेन से) स्वतंत्रता का घोषणापत्र तैयार किया. वे शांति, मित्रता और व्यापार को विदेश नीति का आधार मानते थे.
तब से दुनिया खूब बदली है लेकिन नीति का आधार नहीं बदला है. चूंकि किसी देश के लिए किम-ट्रंप शिखर बैठक जैसे मौके या अंतरराष्ट्रीय मंचों पर नेतृत्व के मौके बेहद दुर्लभ हैं, इसलिए कूटनीतिक कामयाबी की ठोस पैमाइश किसी अंतरराष्ट्रीय कारोबार से ही होती है.
विदेश नीति की अधिकांश कवायद बाजारों के लेन-देन यानी निर्यात की है जिससे आयात के वास्ते विदेशी मुद्रा आती है. भारत के जीडीपी में निर्यात का हिस्सा 19 फीसदी तक रहा है. निर्यात में भी 40 फीसदी हिस्सा छोटे उद्योगों का है यानी कि निर्यात बढ़े तो रोजगार बढ़े.
यकीनन मोदी सरकार के कूटनीतिक अभियान लीक से हटकर "आक्रामक'' थे लेकिन फिर विदेश व्यापार को कौन-सा ड्रैगन सूंघ गया?
-पिछले चार वर्षों में भारत का (मर्चेंडाइज) निर्यात बुरी तरह पिटा. 2013 से पहले दो वर्षों में 40 और 22 फीसदी की रफ्तार से बढऩे वाला निर्यात बाद के पांच वर्षों में नकारात्मक से लेकर पांच फीसदी ग्रोथ के बीच झूलता रहा. पिछले वित्त वर्ष में बमुश्किल दस फीसदी की विकास दर पिछले तीन साल में एशियाई प्रतिस्पर्धी देशों—थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया—की निर्यात वृद्धि से काफी कम है.
-पिछले दो वर्षों (2016-3.2%: 2017-3.7%) में दुनिया की विकास दर में तेजी नजर आई. मुद्रा कोष (आइएमएफ) का आकलन है कि 2018 में यह 3.9 फीसदी रहेगी.
-विश्व व्यापार भी बढ़ा. डब्ल्यूटीओ ने बताया कि लगभग एक दशक बाद विश्व व्यापार तीन फीसदी की औसत विकास दर को पार कर (2016 में 2.4%) 2017 में 4.7% की गति से बढ़ा. लेकिन भारत विश्व व्यापार में तेजी का कोई लाभ नहीं ले सका.
-पिछले पांच वर्षों में चीन ने सस्ता सामान मसलन कपड़े, जूते, खिलौने आदि का उत्पादन सीमित करते हुए मझोली व उच्च तकनीक के उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया. यह बाजार विएतनाम, बांग्लादेश जैसे छोटे देशों के पास जा रहा है.
-भारत निर्यात के उन क्षेत्रों में पिछड़ रहा है जहां पारंपरिक तौर पर बढ़त उसके पास थी. क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट बताती है, कच्चे माल में बढ़त होने के बावजूद परिधान और फुटवियर निर्यात में विएतनाम और बांग्लादेश ज्यादा प्रतिस्पर्धी हैं और बड़ा बाजार ले रहे हैं. ऑटो पुर्जे और इंजीनियरिंग निर्यात में भी बढ़ोतरी पिछले वर्षों से काफी जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है कम रही है.
-भारत में जिस समय निर्यात को नई ताकत की जरूरत थी ठीक उस समय नोटबंदी और जीएसटी थोप दिए गए, नतीजतन जीडीपी में निर्यात का हिस्सा 2017-18 में 15 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया. सबसे ज्यादा गिरावट आई कपड़ा, चमड़ा, आभूषण जैसे क्षेत्रों में, जहां सबसे ज्यादा रोजगार हैं.
-ध्यान रखना जरूरी है कि यह सब उस वक्त हुआ जब भारत में मेक इन इंडिया की मुहिम चल रही थी. शुक्र है कि भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश आ रहा था और तेल की कीमतें कम थीं, नहीं तो निर्यात के भरोसे तो विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर पसीना बहने लगता.
-अंकटाड की ताजा रिपोर्ट ने भारत में विदेशी निवेश घटने की चेतावनी दी है जबकि विदेशी निवेश के उदारीकरण में मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी.
विदेश व्यापार की उलटी गति को देखकर पिछले चार साल की विदेश नीति एक पहेली बन जाती है. दुनिया से जुडऩे की प्रधानमंत्री मोदी की ताबड़तोड़ कोशिशों के बावजूद भारत को नए बाजार क्यों नहीं मिले जबकि विश्व बाजार हमारी मदद को तैयार था?
हालात तेजी से बदलते रहते हैं. जब तक हम समझ पाते तब तक अमेरिका ने भारत से आयात पर बाधाएं लगानी शुरू कर दीं. आइएमएफ बता रहा है कि आने वाले वर्षों में अमेरिका और यूरोपीय समुदाय में आयात घटेगा. जिस तरह हमने सस्ते तेल के फायदे गंवा दिए ठीक उसी तरह निर्यात बढ़ाने व नए बाजार हासिल करने का अवसर भी खो दिया है.
क्या यही वजह है कि चार साल के स्वमूल्यांकन में सरकार ने विदेश नीति की सफलताओं पर बहुत रोशनी नहीं डाली है?
ये यूरो (यू.यू.यू.एस.डी.) के व्यापार के लिए सर्वश्रेष्ठ समय हैं। इन्व्हेस्टॉपिया
यूरो / अमरीकी डालर विदेशी मुद्रा जोड़ी क्या है और आप यह कैसे व्यापार कर सकते हैं? (नवंबर 2022)
विषयसूची:
जापानी येन (जेपीवाई) और ब्रिटिश पाउंड (जीबीपी) द्वारा पिछड़ गए वैश्विक तरलता के मामले में यू.एस. डॉलर (यूएसडी) के पीछे यूरो (यूरो) दूसरे स्थान पर है। विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने मुद्रा की जोड़ी के माध्यम से यूरो ताकत और कमजोरी पर अटकलें लगाई हैं, जो वास्तविक समय में तुलनात्मक मूल्य की स्थापना करते हैं। हालांकि दलालों से संबंधित क्रॉस के दर्जनों प्रस्ताव होते हैं, अधिकांश ग्राहक छह सबसे लोकप्रिय जोड़े पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं:
- यू स्विस फ़्रैंक (एसएचएफ) - यूरो / एसएचएफ
- जापानी येन (जेपीवाई) - यूरो // जेपीवाई
- ब्रिटिश पाउंड (जीबीपी) - यूरो / जीबीपी
- ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (AUD) - EUR / AUD
- कैनेडियन डॉलर (सीएडी) - EUR / CAD
कई विदेशी मुद्रा व्यापारी दुनिया भर में सबसे लोकप्रिय और तरल मुद्रा बाजार, EUR / USD क्रॉस पर अपना पूरा ध्यान केंद्रित करते हैं। क्रॉस पूरे 24-घंटे के चक्र में एक मजबूत फैलाव का रखरखाव करता है, जबकि कई इंट्रेडय उत्प्रेरक यह सुनिश्चित करते हैं कि मूल्य क्रिया दोनों दिशाओं में और सभी समय सीमाओं के साथ व्यापारिक रुझान स्थापित करेगा। लांग और शॉर्ट-टर्म स्विंग क्लासिक रेंज-बाउंड रणनीतियों के साथ बेहद अच्छी तरह से काम करते हैं, जिसमें स्विंग ट्रेडिंग और ट्रेडिंग चैनल शामिल हैं।
यूरो मूल्य उत्प्रेरक
यूरो का व्यापार करने का सबसे अच्छा समय आर्थिक डेटा की रिहाई के साथ मेल खाता है, साथ ही इक्विटी, विकल्प और वायदा एक्सचेंजों के खुले घंटे। इन डेटा रिलीज के लिए आगे की योजना के लिए दो तरफा शोध की आवश्यकता होती है क्योंकि स्थानीय (यूरोजोन) उत्प्रेरक लोकप्रिय जोड़े को उसी तीव्रता से स्थानांतरित कर सकते हैं क्योंकि प्रत्येक क्रॉस स्थल में उत्प्रेरक होते हैं। इसके अलावा, यू.एस. / यूएसडी जोड़ी के अतिव्यापी महत्व के कारण यू.एस. आर्थिक डेटा का सभी मुद्राओं पर सबसे बड़ा प्रभाव हो सकता है।
इसके अलावा, यूरो पार आर्थिक और राजनैतिक मैक्रो घटनाओं के लिए कमजोर हैं जो दुनिया भर के इक्विटी, मुद्राओं और बॉन्ड बाजारों में अत्यधिक सहसंबंधित मूल्य कार्यों को ट्रिगर करती हैं। अगस्त 2015 में चीन के युआन का अवमूल्यन एक आदर्श उदाहरण प्रदान करता है। यहां तक कि प्राकृतिक आपदाओं में इस तरह के समन्वित प्रतिक्रिया उत्पन्न करने की शक्ति है, जैसा कि 2011 के जापानी सूनामी के मुताबिक।
यूरोजोन मासिक आर्थिक डेटा आम तौर पर 2 ए पर जारी किया जाता है। मीटर। संयुक्त राज्य अमेरिका में पूर्वी समय (ईटी) इन रिलीज से 30 से 60 मिनट के समय खंड और एक से तीन घंटे बाद में यूरो जोड़े का व्यापार करने के लिए अत्यधिक लोकप्रिय अवधि पर प्रकाश डाला गया क्योंकि समाचार पांच सबसे लोकप्रिय क्रॉस के कम से कम तीन को प्रभावित करेगा।यह यू। एस। ट्रेडिंग दिवस में रन-अप को ओवरलैप करता है, अटलांटिक के दोनों तरफ से महत्वपूर्ण मात्रा में ड्राइंग
यू। एस। आर्थिक रिलीज 8: 30 ए के बीच जारी किए जाते हैं। मीटर। और 10 ए मीटर। ईटी और असाधारण EUR ट्रेडिंग वॉल्यूम भी उत्पन्न करती हैं, जिसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय जोड़े में मूल्य आंदोलन को मजबूती से प्रेरित करने के लिए उच्च बाधाएं हैं। जापानी डेटा रिलीज़ कम ध्यान देते हैं क्योंकि वे 4: 30 पी पर बाहर आते हैं। मीटर। और 10 पी मीटर। ईटी, जब यूरोज़ोन अपने नींद के चक्र के मध्य में है फिर भी, EUR / JPY और EUR / USD जोड़े के साथ व्यापारिक मात्रा इन समय क्षेत्रों के आसपास तेजी से बढ़ सकती है।
यूरो और इक्विटी एक्सचेंज के घंटे
कई यूरो व्यापारियों के कार्यक्रमों ने लगभग एक्सचेंज घंटों का पालन किया है, फ्रैंकफर्ट और न्यूयॉर्क इक्विटी मार्केट और शिकागो वायदा और विकल्प बाज़ार व्यापार के लिए खुले हैं। यह स्थानीयकरण यू.एस. ईस्ट कोस्ट पर आधी रात के आसपास व्यापारिक आवागमन में वृद्धि करता है, रात के माध्यम से जारी रहता है और अमेरिकन लंच के समय में, जब विदेशी मुद्रा व्यापार गतिविधि तेजी से गिरा सकती है
हालांकि, केंद्रीय बैंक एजेंडा इस गतिविधि चक्र को स्थानांतरित करते हैं, जब फेडरल रिजर्व (एफओएमसी) 2 प जारी करने के लिए निर्धारित है, तो दुनिया भर के विदेशी मुद्रा व्यापारियों के साथ उनके डेस्क पर रह रहे हैं मीटर। ईटी ब्याज दर निर्णय या पूर्व बैठक के मिनट। बैंक ऑफ इंग्लैंड (बीओई) 7 दरम पर अपने निर्णयों का मुकाबला करता है मीटर। ईटी, जबकि यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ईसीबी) 7: 45 ए पर चलता है। मीटर। ईटी, दोनों रिलीज उच्च मात्रा EUR गतिविधि के केंद्र में जगह लेने के साथ
छह लोकप्रिय मुद्रा जोड़े यूरो व्यापारियों को लघु और दीर्घकालिक अवसरों की एक विस्तृत विविधता प्रदान करते हैं इन उपकरणों का व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा समय 1: 30 ए पर महत्वपूर्ण आर्थिक रिलीज के साथ मेल खाता है। मीटर। , 2 ए मीटर। , 8: 30 ए मीटर। और 10 ए मीटर। यू एस ईस्टर्न टाइम, साथ ही आधी रात और दोपहर के बीच, जब यूरोपीय और अमेरिकी एक्सचेंज सभी क्रॉस मार्केट सक्रिय और तरल रख देते हैं।
ये ब्रिटिश पाउंड का व्यापार करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय हैं | निवेशपोडा
व्यापार करने के लिए सर्वश्रेष्ठ समय हैं ये यू.एस. डॉलर (USD) के व्यापार के लिए सर्वश्रेष्ठ समय हैं। इन्वेस्टोपेडिया
यू.एस. और क्रॉस-प्लेस में आर्थिक रिलीज से पहले और बाद में यूएसडी मुद्रा व्यापार करने के लिए सबसे अच्छा समय जोड़ा जाता है।
विदेशी मुद्रा व्यापार की रणनीति बनाने के लिए मैं डुअल कमोडिटी चैनल इंडेक्स (डीसीसीआई) का उपयोग कैसे करूं? | विदेशी मुद्रा बाजार के व्यापार के लिए एक अनूठी ब्रेकआउट ट्रेडिंग रणनीति बनाने के लिए इन्व्हेस्टॉपिया
दोहरी कमोडिटी चैनल इंडेक्स (डीसीआईआईआई) के वैकल्पिक व्याख्या का उपयोग करें।
भास्कर एक्सप्लेनर: जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के उच्चतम स्तर पर, क्या है इसकी वजह और यह देश के लिए कितना फायदेमंद?
देश का विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त के आखिरी हफ्ते में 541.43 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है। एक सप्ताह में इसमें 3.88 बिलियन डॉलर (28.49 हजार करोड़ रुपए) की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले 21 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 537.548 बिलियन डॉलर (39.49 लाख करोड़ रुपए) था। जून में पहली बार विदेशी मुद्रा भंडार 500 बिलियन डॉलर के आंकड़े को पार करते हुए 501.7 बिलियन डॉलर (36.85 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंचा था। 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इस समय पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर के करीब है।
इसलिए बढ़ रहा है विदेशी मुद्रा भंडार
- आर्थिक मंदी के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने का सबसे बड़ा कारण भारतीय शेयर बाजारों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ना है।
- बीते कुछ महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने कई भारतीय कंपनियों में हिस्सेदारी बढ़ाई है।
- मार्च में भारत के डेट और इक्विटी सेगमेंट से एफपीआई ने करीब 1.20 लाख करोड़ रुपए की निकासी की थी, लेकिन इस साल के अंत तक अर्थव्यवस्था के वापस पुरानी स्थिति में लौटने की उम्मीद के कारण एफपीआई भारतीय बाजारों में वापस आ गए हैं।
- इसके अलावा क्रूड की कीमतों में गिरावट के कारण देश का आयात बिल कम हुआ है। इससे विदेशी मुद्रा भंडार का बोझ घटा है। इसी तरह से विदेशों से रुपया भेजने और विदेश यात्राओं में कमी आई है। इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार पर बोझ कम हुआ है।
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 20 सितंबर 2019 को कॉरपोरेट टैक्स की दरों में कटौती की घोषणा की थी। इसके बाद से विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
जीडीपी में गिरावट के बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार का बढ़ना अच्छा संकेत
कोरोनावायरस महामारी के कारण वैश्विक स्तर पर अर्थव्यवस्था में उदासी का माहौल है। इस कारण चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून तिमाही) में देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 23.9 फीसदी की गिरावट आई है। मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों और व्यापार में स्थिरता के कारण यह गिरावट आई है। ऐसे में विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक अच्छा संकेत है।
आज 1991 के विपरीत स्थिति
विदेशी मुद्रा भंडार की आज की यह स्थिति 1991 के बिलकुल विपरीत है। तब भारत ने प्रमुख वित्तीय संकट से बाहर निकलने के लिए गोल्ड रिजर्व को गिरवी रख दिया था। मार्च 1991 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार केवल 5.8 बिलियन डॉलर (42.59 हजार करोड़ रुपए) था। लेकिन आज विदेशी मुद्रा भंडार के दम पर देश किसी भी आर्थिक संकट का सामना कर सकता है।
विदेशी मुद्रा भंडार के प्रमुख असेट्स
- फॉरेन करेंसी असेट्स (एफसीए)।
- गोल्ड रिजर्व।
- स्पेशल ड्रॉइंग राइट्स (एसडीआर)।
- इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (आईएमएफ) के साथ देश की रिजर्व स्थिति।
विदेशी मुद्रा भंडार का अर्थव्यवस्था के लिए महत्व
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी सरकार और आरबीआई को आर्थिक ग्रोथ में गिरावट के कारण पैदा हुए किसी भी बाहरी या अंदरुनी वित्तीय संकट से निपटने में मदद करती है।
- यह आर्थिक मोर्चे पर संकट के समय देश को आरामदायक स्थिति उपलब्ध कराती है।
- मौजूदा विदेशी भंडार देश के आयात बिल को एक साल तक संभालने के लिए काफी है।
- विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी से रुपए को डॉलर के मुकाबले स्थिति मजबूत करने में मदद मिलती है।
- मौजूदा समय में विदेशी मुद्रा भंडार जीडीपी अनुपात करीब 15 फीसदी है।
- विदेशी मुद्रा भंडार आर्थिक संकट के बाजार को यह भरोसा देता है कि देश बाहरी और घरेलू समस्याओं से निपटने में सक्षम है।
आरबीआई करता है विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन
- आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार के कस्टोडियन और मैनेजर के रूप में कार्य करता है। यह कार्य सरकार से साथ मिलकर तैयार किए गए पॉलिसी फ्रेमवर्क के अनुसार होता है।
- आरबीआई रुपए की स्थिति को सही रखने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करता है। जब रुपया कमजोर होता है तो आरबीआई डॉलर की बिक्री करता है। जब रुपया मजबूत होता है तब डॉलर की खरीदारी की जाती है। कई बार आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिए बाजार से डॉलर की खरीदारी भी करता है।
- जब आरबीआई डॉलर में बढ़ोतरी करता है तो उतनी राशि के बराबर रुपया जारी करता है। इस अतिरिक्त लिक्विडिटी को आरबीआई बॉन्ड, सिक्योरिटी और एलएएफ ऑपरेशन के जरिए मैनेज करता है।
कहां रखा होता है विदेशी मुद्रा भंडार
- आरबीआई एक्ट 1934 विदेशी मुद्रा भंडार को रखने का कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
- देश का 64 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार विदेशों में ट्रेजरी बिल आदि के रूप में होता है। यह मुख्य रूप से अमेरिका में रखा होता है।
- आरबीआई के डाटा के मुताबिक, मौजूदा समय में 28 फीसदी विदेशी मुद्रा भंडार दूसरे देशों के केंद्रीय बैंक और 7.4 फीसदी कमर्शियल बैंक में रखा है।
- मार्च 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार में 653.01 टन सोना था। इसमें से 360.71 टन सोना विदेश में बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स की सुरक्षित निगरानी में रखा है। बचा हुआ सोना देश में ही रखा है।
- डॉलर की वैल्यू में विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की हिस्सेदारी सितंबर 2019 के 6.14 फीसदी से बढ़कर मार्च 2020 में 6.40 फीसदी पर पहुंच गई है।
2014 में 300 बिलियन डॉलर के करीब था विदेशी मुद्रा भंडार
आरबीआई के डाटा के मुताबिक, वित्त वर्ष 2014 में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 304.22 बिलियन डॉलर (22.34 लाख करोड़ रुपए) था। इसी साल नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने थे। तब से लगातार विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी हो रही थी। 2018 में यह बढ़कर 424.5 बिलियन डॉलर (31.13 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया था। हालांकि, इसके अगले साल यानी 2019 में यह थोड़ा घटकर 412.87 बिलियन डॉलर (30.26 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया था। 28 अगस्त को समाप्त हुए सप्ताह में यह बढ़कर 541.4 बिलियन डॉलर (39.77 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया है।
चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत से 484% ज्यादा
पड़ोसी देश चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा है। अगस्त 2020 में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.165 ट्रिलियन डॉलर था। वहीं, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 541.4 बिलियन डॉलर है। इस प्रकार चीन का विदेशी मुद्रा भंडार भारत के मुकाबले 484 फीसदी ज्यादा है। 2014 में चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 4 ट्रिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया था। हालांकि, तब से अब तक इसमें गिरावट आ रही है।
इस साल 19.33 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा क्रूड
इस साल 1 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय बाजार में ब्रेंट क्रूड की कीमत 66 डॉलर प्रति बैरल थी। इसी सप्ताह 6 जनवरी को कीमतें बढ़कर 68.91 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थीं। इसके बाद से क्रूड की कीमतें लगातार कम हो रही है। इस बीच मार्च के अंत में कोरोनावायरस महामारी पूरी दुनिया फैल गई। इससे क्रूड की मांग घट गई थी। इसका नतीजा यह हुआ कि क्रूड की कीमत घटकर 19.33 बिलियन डॉलर तक पहुंच गई। इस प्रकार क्रूड की कीमतों में इस साल अपने उच्चतम स्तर से 71 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है। सोमवार 7 सितंबर को यह 42.05 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा है।
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ निर्यात पर ध्यान देने का समय
एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।
अमरीकी डॉलर के मुकाबले रुपए में रेकॉर्ड गिरावट आई है। रुपया डॉलर के मुकाबले 77 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर अपने निचले स्तर पर पहुंच गया है। यह गिरावट एक ऐसे दौर में आई है, जब अमरीकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरें बढ़ाने का सिलसिला थमा नहीं है और भारत में महंगाई सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। रुपए में रेकॉर्ड गिरावट के साथ ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार 600 बिलियन डॉलर से नीचे चला गया है। भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया, लेकिन उसकी मंशा गिरावट को थामना था, न कि उसके रुख को बदलना। रिजर्व बैंक ने भारतीय रुपए की मजबूती के लिए डॉलर की काफी बिकवाली की है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार 3 सितम्बर 2021 के सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉलर से 45 अरब डॉलर कम हो गया। मौजूदा अनिश्चितता को देखते हुए आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार को 600 अरब डॉलर पर बनाए रखना चाहती है। हालांकि विदेशी मुद्रा भंडार अब भी 12 महीने के आयात के लिए काफी है, लेकिन इसमें तेजी से कमी आ सकती है।
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमरीका में महंगाई 40 साल के उच्चतम स्तर पर है। इस महंगाई से निपटने के लिए अमरीकी फेडरल रिजर्व ने करीब चार वर्ष बाद ब्याज दरों में वृद्धि की घोषणा की है और इस साल इस तरह की छह और बढ़ोतरी के स्पष्ट संकेत दिए हैं। वर्ष के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 1.75 फीसदी से 2 फीसदी के बीच होंगी, जबकि 2023 के अंत तक फेडरल ब्याज दरें 2.8 प्रतिशत तक पहुंच सकती हैं। इससे पूर्व अमरीका में ब्याज दर लगभग शून्य पर थी। अमरीकी केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि से दुनिया भर के निवेशक अब अमरीका की ओर जा रहे हैं। वैश्विक निवेशक दुनिया भर की संपत्तियों में निवेश करने के लिए शून्य या कम ब्याज दरों वाले देशों से उधार लेते हैं। इसे ही 'कैरी ट्रेडÓ कहते हैं। अमरीका में ब्याज दर इस बढ़ोतरी से पूर्व लगभग शून्य थी। ऐसे में निवेशक वहां से लोन लेकर भारत सहित अन्य उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में निवेश करते थे, जहां ब्याज दर ज्यादा है। कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी के पीछे यही 'कैरी ट्रेडÓ था, परन्तु अब 'कैरी ट्रेडÓ उलट रहा है। यही कारण है कि विदेशी संस्थागत निवेशक लगातार बिकवाली कर अपना निवेश निकाल रहे हैं। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में अप्रेल से लेकर अब तक भारतीय बाजार से 5.8 अरब डॉलर का विदेशी निवेश निकाला जा चुका है। ऐसे में रुपए पर दबाव स्वाभाविक है।
भारतीय नीति निर्माता समुचित प्रबंधन द्वारा रुपए की गिरावट को रोक सकते हैं। वर्ष 2008 से 2011 के दौरान भी वैश्विक आर्थिक परिदृश्य संकटपूर्ण रहा था, लेकिन भारतीय रुपया लगातार मजबूत हो रहा था। रुपए की कमजोरी से डीजल-पेट्रोल महंगे हो सकते हैं। खाद्य तेल के जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है भी महंगा होने की आशंका है, परन्तु रुपए की कमजोरी से निर्यातकों को लाभ हो सकता है। उच्च निर्यात द्वारा भारत न केवल व्यापार संतुलन, डॉलर स्टॉक इत्यादि में वृद्धि का लाभ ले सकता है, अपितु भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सकता है। इसके लिए युद्ध स्तर जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है जब विदेशी मुद्रा व्यापार करने का सबसे अच्छा समय है की तैयारी की आवश्यकता है।
इसके बावजूद यह ध्यान रखना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था मूलत: आयात आधारित अर्थव्यवस्था है। ऐसे में सरकार को रुपए को मजबूत करने के लिए हर संभव कदम उठाने होंगे। इसका सबसे अच्छा तरीका है, भारतीय उद्योगों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश अर्थात एफडीआइ को प्रोत्साहित किया जाए। एफडीआइ को प्रोत्साहित करने के लिए अर्थव्यवस्था के मूलभूत तत्वों को मजबूत करने की आवश्यकता है। यही कारण है कि जब अर्थव्यवस्था मजबूत होती है, तो रुपया भी प्राय: मजबूत होता है। निर्यात और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में वृद्धि ही गिरते रुपए को मजबूत बना सकते हैं।