विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं

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विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं
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भारत में सूती वस्त्र उद्योग के .
Solution : भारत में सूती वस्त्रों के उपयोग की परम्परा बहुत प्राचीन है। सिन्धु सभ्यता में बने वस्त्रों की माँग यूरोपीय और मध्य-पूर्व के देशों में बहुत अधिक थी। उस काल में सूती वस्त्र उद्योग ग्रामीण या कुटीर उद्योग के रूप में संचालित किया जाता था। वस्त्र के लिए धागा बनाने की मशीन मात्र चरखा थी। उन्नीसवीं शताब्दी केआरम्भिक वर्षों में कोलकाता के निकट सूती मिल की स्थापना की गई। परन्तु इस उद्योग का वास्तविक विकास सन् 1954 ई० से प्रारम्भ हुआ, जब पूर्ण रूप से भारतीय पूँजी द्वारा मुम्बई में सूती मिल की स्थापना की गई थी। महत्त्व – सूती वस्त्र उद्योग एक प्रमुख उद्योग है। यह न केवल वस्त्र जैसी अनिवार्य आवश्यकता की पूर्ति करता है वरन् बड़ी मात्रा में रोजगार भी उपलब्ध कराता है। यह निर्यात द्वारा बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा भी कमाकर देता है। स्थानीयकरण के कारण – भारत में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के निम्नलिखित कारण हैं पर्याप्त कच्चे माल (विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं कपास) का स्थानीय उत्पादन। अनुकूल नम जलवायु तथा स्वच्छ जल। रासायनिक पदार्थों विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं का सरलता से मिलना। सस्ते एवं कुशल श्रमिकों का मिलना। परिवहन के सस्ते साधनों का मिलना। वस्त्र बनाने वाली मशीनरी की उपलब्धता। वस्त्र उद्योग विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं को सरकारी संरक्षण तथा सहायता प्राप्त होना। उपभोक्ता बाजार निकट स्थित होना। शक्ति के पर्याप्त संसाधन मिलना। विदेशी सूती वस्त्रों पर भारी आयात कर का होना। सूती वस्त्र निर्यात की उदार सरकारी नीति का पालन करना। उत्पादन-सूती वस्त्र उद्योग भारत का प्राचीनतम एवं महत्त्वपूर्ण उद्योग है। यह वर्तमान में भारत का सबसे बड़ा तथा विकसित उद्योग है। यह देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में लगभग 14% का अंशदान करता है। देश के कुल निर्यात व्यापार में लगभग 23% की हिस्सेदारी रखने वाला निर्यातपरक यह उद्योग लगभग 35 लाख लोगों की जीविका चला रहा है। भारत का विश्व के सूती वस्त्र उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान है। परन्तु तकुओं की दृष्टि से प्रथम स्थान है। भारत में सूती विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं वस्त्र बनाने का कार्य पहले कुटीर उद्योग के रूप में किया जाता था, परन्तु अब यह एक महत्त्वपूर्ण संगठित उद्योग के रूप में विकसित हो गया है। भारत के अनेक राज्यों में सूती वस्त्र उद्योग का स्थानीयकरण हुआ है। यह क्षेत्र हैं-मुम्बई, हैदराबाद, सूरत, शोलापुर, कोयम्बटूर, नागपुर, मदुरै, कानपुर, बंगलुरु, पुणे और चेन्नई। सूती वस्त्र उद्योग उत्पादन के क्षेत्र एवं महत्त्वपूर्ण केन्द्र यद्यपि भारत के अनेक राज्यों में सूती वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है, परन्तु इसका सर्वाधिक विकास गुजरात एवं महाराष्ट्र राज्यों में हुआ है। मुम्बई तथा अहमदाबाद नगर सूती वस्त्र उद्योग के प्रधान केन्द्र हैं। भारत के प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादन राज्यों का विवरण निम्न प्रकार है 1. गुजरात-सूती वस्त्र उत्पादन के क्षेत्र में गुजरात राज्य का भारत में प्रथम स्थान है। यह देश का लगभग 33% सूती वस्त्र का उत्पादन करता है। अहमदाबाद महानगर सूती वस्त्र उद्योग का मुख्य केन्द्र है। यही कारण है कि अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर और पूर्व का बोस्टन कहा जाता है। बड़ोदरा, सूरत, भरूच, बिलिमोरिया, मोरवी, सुरेन्द्रनगर, राजकोट, कलोल, भावनगर, नाडियाड, पोरबन्दर तथा जामनगर अन्य प्रमुख सूती वस्त्र बनाने वाले केन्द्र हैं। 2. महाराष्ट्र – इस राज्य का भारत के सूती वस्त्र उद्योग में दूसरा स्थान है। मुम्बई महानगर में खटाऊ, फिनले तथा सेंचुरी जैसी प्रसिद्ध सूती वस्त्र मिले हैं। महाराष्ट्र में सूती वस्त्र विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं उद्योग के अन्य केन्द्रों में शोलापुर, कोल्हापुर, पुणे, नागपुर, सतारा, वर्धा, (UPBoardSoluti अमरावती, सांगली, थाणे, जलगाँव, अकोला, सिद्धपुर, चालीसगाँव, धूलिया, औरंगाबाद आदि प्रमुख हैं। 3. तमिलनाडु – इस राज्य में कोयम्बटूर सूती वस्त्र का प्रमुख केन्द्र है। सलेम, चेन्नई, रामनाथपुरम, तूतीकोरिन, तंजावूर, मदुरै, पेराम्बूर आदि अन्य प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। 4. उत्तर प्रदेश – यह उत्तर भारत का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक राज्य है, कानपुर महानगर इस उद्योग का मुख्य केन्द्र है, इसे उत्तर भारत का मानचेस्टर कहा जाता है। अन्य सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्रों में वाराणसी, रामपुर, मुरादाबाद, आगरा, बरेली, अलीगढ़, हाथरस, मोदीनगर, पिलखुवा, सण्डीला, इटावा आदि मुख्य हैं। 5. पश्चिम बंगाल – विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं सूती वस्त्र उत्पादन की दृष्टि से इस राज्य का भारत में तीसरा स्थान है। यह राज्य भारत का 15% सूती वस्त्र उत्पादित करता है। कच्चे माल की कमी आयातित कपास से पूरी की जाती है। चौबीस-परगना, हावड़ा एवं हुगली प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादन जिले हैं। कोलकाता, श्रीरामपुर, हुगली, मुर्शिदाबाद, हावड़ा, रिशरा, फूलेश्वर, धुबरी आदि प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केन्द्र हैं। अन्य राज्य – भारत के अन्य सूती वस्त्र उत्पादक राज्यों में कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, केरल, बिहार एवं दिल्ली प्रमुख हैं। व्यापार विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं – भारत सूती वस्त्र का निर्यात मुख्यतः हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों-ईरान, इराक, म्यांमार (बर्मा), श्रीलंका, बंगलादेश, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, इण्डोनेशिया, थाईलैण्ड, मिस्र, सूडान, टर्की, इथोपिया, नेपाल, सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैण्ड आदि को करता है।
विदेशी मुद्रा भंडार 414.78 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर
मुंबई. देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार छठे सप्ताह तेजी दर्ज की गई और 19 जनवरी को समाप्त सप्ताह में यह 95.91 करोड़ डॉलर की वृद्धि के साथ 414.78 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। इससे पहले 12 जनवरी को समाप्त सप्ताह में 2.70 अरब डॉलर बढ़कर यह 413.83 अरब डॉलर पर रहा था। रिजर्व बैंक द्वारा आज यहां जारी आंकड़ों के अनुसार, 19 जनवरी को समाप्त सप्ताह के विदेशी मुद्रा भंडार के सबसे बड़े घटक विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति में 93.46 करोड़ डॉलर की वृद्धि हुई और यह 390.77 अरब डॉलर पर पहुंच गया। स्वर्ण भंडार 20.42 अरब डॉलर पर स्थिर रहा। आलोच्य सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पास आरक्षित निधि भी 1.41 करोड़ डॉलर बढ़कर सप्ताहांत पर 2.06 अरब डॉलर पर और विशेष आहरण अधिकार 1.04 करोड़ डॉलर बढ़कर 1.53 अरब डॉलर पर रहा।
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत जीडीपी के संदर्भ विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं में विश्व की नवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । यह अपने भौगोलिक आकार के संदर्भ में विश्व में सातवां सबसे बड़ा देश है और जनसंख्या की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा देश है । हाल के वर्षों में भारत गरीबी और बेरोजगारी से संबंधित मुद्दों के बावजूद विश्व में सबसे तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में उभरा है । महत्वपूर्ण समावेशी विकास प्राप्त करने की दृष्टि से भारत सरकार द्वारा कई गरीबी उन्मूलन और रोजगार उत्पन्न करने वाले कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं ।
इतिहास
ऐतिहासिक रूप से भारत एक बहुत विकसित आर्थिक व्यवस्था थी जिसके विश्व के अन्य भागों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध थे । औपनिवेशिक युग ( 1773-1947 ) के दौरान ब्रिटिश भारत से विदेशी मुद्रा बाजार के दो मुख्य कार्य क्या हैं सस्ती दरों पर कच्ची सामग्री खरीदा करते थे और तैयार माल भारतीय बाजारों में सामान्य मूल्य से कहीं अधिक उच्चतर कीमत पर बेचा जाता था जिसके परिणामस्वरूप स्रोतों का द्धिमार्गी ह्रास होता था । इस अवधि के दौरान विश्व की आय में भारत का हिस्सा 1700 ए डी के 22.3 प्रतिशत से गिरकर 1952 में 3.8 प्रतिशत रह गया । 1947 में भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात अर्थव्यवस्था की पुननिर्माण प्रक्रिया प्रारंभ हुई । इस उद्देश्य से विभिन्न नीतियॉं और योजनाऍं बनाई गयीं और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गयी ।
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