बाजार संरचना

हिन्दी वार्ता
MS Excel in Hindi, Make money online, Finance in Hindi
वह बाजार संरचना क्या कहलाती है जिसमें केवल कुछ ही फर्मों का बोलबाला होता है? GK in Hindi
वह बाजार संरचना क्या कहलाती है जिसमें केवल कुछ ही फर्मों का बोलबाला होता है?
नीचे दिये गए विकल्पों में से इस प्रश्न का सही उत्तर चुनिये:
(B). पूर्ण प्रतियोगिता
हिन्दी सामान्य ज्ञान के प्रश्न उत्तर का अभ्यास विद्यार्थियों के लिए सभी प्रतियोगी परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। अक्सर विद्यार्थी अन्य विषयों की तैयारी तो अच्छी तरह से कर लेते हैं किन्तु सामान्य ज्ञान की जानकारी कमजोर होने के बाजार संरचना बाजार संरचना कारण परीक्षा में असफल हो जाते हैं। अर्थशास्त्र सामान्य ज्ञान प्रश्न उत्तर क्विज के हजारों प्रश्न हमने यहाँ संकलित किए हैं।
भारतीय वित्तीय प्रणाली के घटक
वित्तीय प्रणाली उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें मुद्रा और वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रवाह बचत करने वालों से निवेश करने वालों की तरफ होता है | वित्तीय प्रणाली के मुख्य घटक हैं : मुद्रा बाजार, पूंजी बाजार, विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार, बैंक, सेबी और RBI हैं | ये वित्तीय घटक बचत कर्ता और निबेशकों के बीच एक कड़ी या मध्यस्थ का कार्य करते हैं |
वित्तीय प्रणाली से आशय संस्थाओं (institutions), घटकों (instruments) तथा बाजारों के एक सेट से हैI ये सभी एक साथ मिलकर अर्थव्यवस्था में बचतों को बढाकर उनके कुशलतम निवेश को बढ़ावा देते हैं I इस प्रकार ये सब मिलकर पूरी अर्थव्यवस्था में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाते है I इस प्रणाली में मुद्रा और वित्तीय परिसंपत्तियों का प्रवाह बचत करने वालों से निवेश करने वालों की तरफ होता हैI वित्तीय प्रणाली के मुख्य घटक हैं: मुद्रा बाजार, पूंजी बाजार, विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार, बैंक, सेबी और RBI हैं I ये वित्तीय घटक बचत कर्ता और निबेशकों के बीच एक कड़ी या मध्यस्थ का कार्य करते हैं I
भारतीय वित्तीय प्रणाली को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है I
- मुद्रा बाजार (अल्पकालिक ऋण)
- पूंजी बाजार (मध्यम और दीर्घकालिक ऋण)
भारतीय वित्तीय प्रणाली को इस प्रकार बर्गीकृत किया जा सकता है .
वित्तीय प्रणाली का निर्माण वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रदान किए गए उत्पादों और सेवाओं से हुआ है जिसमें बैंक, बीमा कंपनियां, पेंशन फंड, संगठित बाजार, और कई अन्य कंपनियां शामिल हैं जो आर्थिक लेनदेन की सुविधा प्रदान करती हैं। लगभग सभी आर्थिक लेनदेन एक या एक से अधिक वित्तीय संस्थानों द्वारा प्रभावित होते हैं। वे स्टॉक और बांड, जमाराशि पर ब्याज का भुगतान, उधार मांगने वालों और ऋण देने वालों को मिलाते हैं तथा आधुनिक अर्थव्यवस्था की भुगतान प्रणाली को बनाए रखते हैं।
अन्य लेखों को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें .
इस प्रकार के वित्तीय उत्पाद और सेवाएं किसी भी आधुनिक वित्तीय प्रणाली के निम्नलिखित मौलिक उद्देश्यों पर आधारित होती हैं:
- एक सुविधाजनक भुगतान प्रणाली की व्यवस्था
- मुद्रा को उसके समय का मूल्य दिया जाता है
- वित्तीय जोखिम को कम करने के लिए उत्पाद और सेवाओं को उपलब्ध कराती हैं या वांछनीय उद्देश्यों के लिए जोखिम लेने का साहस प्रदान करती हैं।
- एक वित्तीय बाजार के माध्यम से साधनों का अनुकूलतम आवंटन होता है साथ ही बाजार में आर्थिक उतार-चढ़ाव की समस्या से निजात मिलती है I
वित्तीय प्रणाली के घटक- एक वित्तीय प्रणाली का अर्थ उस प्रणाली से है जो निवेशकों और उधारकर्ताओं के बीच पैसे के हस्तांतरण को सक्षम बनाती है। एक वित्तीय प्रणाली को एक अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय या संगठनात्मक स्तर पर परिभाषित किया जा सकता है। "वित्तीय प्रणाली" में "प्रणाली" शब्द एक जटिल समूह को संदर्भित करता है और अर्थव्यवस्था के अंदर संस्थानों, एजेंटों, प्रक्रियाओं, बाजारों, लेनदेन, दावों से नजदीकी रूप से जुडा होता है। वित्तीय प्रणाली के पांच घटक हैं, जिनका विवरण निम्नवत् है:
- वित्तीय संस्थान: यह निवेशकों और बचत कर्ताओं को मिलाकर वित्तीय प्रणाली को गतिमान बनाये रखते हैं। इस संस्थानों का मुख्य कार्य बचत कर्ताओं से मुद्रा इकठ्ठा करके उन निवेशकों को उधार देना है जो कि उस मुद्रा को बाजार में निवेश कर लाभ कमाना चाहते है अतः ये वित्तीय संस्थान उधार देने वालों और उधार लेने बाजार संरचना बाजार संरचना वालों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं I इस संस्थानों के उदहारण हैं :- बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान, स्वयं सहायता समूह, मर्चेंट बैंकर इत्यादि हैं I
- वित्तीय बाजार: एक वित्तीय बाजार को एक ऐसे बाजार के रुप में परिभाषित किया जा सकता है जहां वित्तीय परिसंपत्तियों का निर्माण या हस्तानान्तरण होता है। इस प्रकार के बाजार में मुद्रा को उधार देना या लेना और एक निश्चित अवधि के बाद उस ब्याज देना या लेना शामिल होता है I इस प्रकार के बाजार में विनिमय पत्र, एडहोक ट्रेज़री बिल्स, जमा प्रमाण पत्र, म्यूच्यूअल फण्ड और वाणिज्यिक पत्र इत्यादि लेन देन किया जाता है I वित्तीय बाजार के चार घटक हैं जिनका विवरण इस प्रकार है:
- मुद्रा बाज़ार: मुद्रा बाजार भारतीय वित्तीय प्रणाली का एक महत्वपूर्ण अंग है I यह सामान्यतः एक वर्ष से कम अवधि के फण्ड तथा ऐसी वित्तीय संपत्तियों, जो मुद्रा की नजदीकी स्थानापन्न है, के क्रय और विक्रय के लिए बाजार है I मुद्रा बाजार वह माध्यम है जिसके द्वारा रिज़र्व बैंक अर्थव्यवस्था में तरलता की मात्रा नियंत्रित करता है I
इस तरह के बाजारों में ज्यादातर सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों का दबदबा रहता है। इस बाजार में कम जोखिम वाले, अत्यधिक तरल, लघु अवधि के साधनों वित्तीय साधनों का लेन देन होता है।
- पूंजी बाजार: पूंजी बाजार को लंबी अवधि के वित्तपोषण के लिए बनाया गया है। इस बाजार में लेन-देन एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए किया जाता है।
- विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार: विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार बहु-मुद्रा आवश्यकताओं से संबंधित होता है। जहां पर मुद्राओं का विनिमय होता है। विनिमय दर पर निर्भरता, बाजार में हो रहे धन के हस्तांतरण पर निर्भर रहती है। यह दुनिया भर में सबसे अधिक विकसित और एकीकृत बाजारों में से एक है।
- ऋण बाजार (क्रेडिट मार्केट): क्रेडिट मार्केट एक ऐसा स्थान है जहां बैंक, वित्तीय संस्थान (FI) और गैर बैंक वित्तीय संस्थाएं NBFCs) कॉर्पोरेट और आम लोगों को लघु, मध्यम और लंबी अवधि के ऋण प्रदान किये जाते हैं।
निष्कर्ष: उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि एक वित्तीय प्रणाली उधारदाताओं और उधारकर्ताओं को अपने आपसी हितों के लिए एक दूसरे के साथ संवाद स्थापित करने के लिए एक मंच प्रदान करता है। इस संवाद का अंतिम फायदा मुनाफा पूंजी संचय (जो भारत जैसे विकासशील देशों के लिए बहुत जरूरी है जो धन की कमी की समस्या का सामना कर रहे हैं) और देश के आर्थिक विकास के रूप में सामने आता है।
अन्य लेखों को पढने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें .
एकाधिकार बाजार संरचना में विक्रेताओं की संख्या कितनी होती है?
Explanation : एकाधिकार बाजार संरचना में विक्रेताओं की संख्या एक होती है। एकाधिकार बाजार की उस स्थिति को बाजार संरचना स्पष्ट करता है जिसमें विशिष्ट वस्तु की पूर्ति पर किसी एक उत्पादक अथवा फर्म का नियंत्रण रहता है। एकाधिकारी अपनी वस्तु का अकेला उत्पादक है। उद्योग तथा फर्म का अलग-अलग अस्तित्व नहीं होता है। उत्पाद के लिए मांग की लोच शून्य होती है। एकाधिकारी एक फर्म या फर्मों का समूह या सरकारी विभाग या स्वयं सरकार हो सकती है। . अगला सवाल पढ़े
Latest Questions
Related Questions
- भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार कौन है 2022
Explanation : केंद्र सरकार ने 28 जनवरी 2022 को अर्थशास्त्री वी अनंत नागेश्वरन को मुख्य आर्थिक सलाहकार यानि सीईए नियुक्त किया। क्रेडिट सुइस ग्रुप एजी और जूलियस बेयर ग्रुप के साथ काम कर चुके और शिक्षा क्षेत्र से जुड़े नागेश्वरन ने के वी सुब्रमण् . Read More
Explanation : वाटरक्रेडिट (WaterCredit) इनिशिएटिव को सामाजिक उद्यमी गैरी ह्वाइट और हॉलीवुड अभिनेता मैट डेमन ने अपने संगठन water.org के माध्यम से वित्त पोषित किया है, जिसने वाटरक्रेडिट कार्यक्रमों में $2.2 मिलियन का निवेश किया है। वाटरक्रेडिट व . Read More
Explanation : भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में, मांग-प्रेरित मुद्रास्फीति या उसमें वृद्धि, विस्तारकारी नीतियों, राजकोषीय प्रोत्साहन (कर में कमी, ऋण में वृद्धि), व उच्च क्रय शक्ति (क्रय शक्ति का बढ़ना) के कारणों से होती है। मांग-प्रेरित मुद्रा . Read More
Explanation : लोगों की बैंकिंग आदतों/व्यवहारों में वृद्धि से किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा गुणक में वृद्धि होती है। मुद्रा गुणक किसी अर्थव्यवस्था में कुल मुद्रा पूर्ति और उच्च शक्तिशाली मुद्रा के स्टॉक के अनुपात को व्यक्त करता है। मुद्रा गुणक ए . Read More
Explanation : एक्सिस बैंक में मिनिमम बैलेंस 15000 रुपये होना चाहिए। Axis Bank के 1 मई 2021 को जारी नए नियम के अनुसार मेट्रो शहरों के जिन लोगों ने एक्सिस बैंक में इजी सेविंग स्कीम के तहत खाता खुला है, उनके लिए मिनिमम बैंक बैलेंस से जुड़ी अनिवार . Read More
Explanation : एक्सिस बैंक के सीईओ अमिताभ चौधरी (Amitabh Chaudhry) है। निजी क्षेत्र के एक्सिस बैंक (Axis Bank) के निदेशक मंडल ने 14 अक्टूबर 2021 को अमिताभ चौधरी को तीन साल के लिये फिर से बैंक का प्रबंध निदेशक और सीईओ बनाने को मंजूरी दे दी। उनक . Read More
Explanation : तारापोर समिति पूंजी खाता परिवर्तनीयता पर रिपोर्ट से संबंधित है। पूंजी खाता पर परिवर्तनीयता के सम्बन्ध में रिज़र्व बैंक द्वारा सावक सोहराब तारापोर की अध्यक्षता में गठित समिति ने जून 1997 में कुछ निश्चित दशाओं की पूर्ति पर क्रमिक ढं . Read More
Explanation : भारत में राष्ट्रीय आय का आकलन केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) नामक संस्था करती है। राष्ट्रीय आय से आशय किसी देश में एक वर्ष के मध्य में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवाओं के बाजार मूल्य के योग से है, जिसे ह्रास घटाकर व विदेशी लाभ जोड . Read More
Explanation : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एच एल दत्तू को 23 जनवरी, 2016 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बनाया गया। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक स्वतन्त्र वैधानिक . Read More
Explanation : मर्चेंट डिस्काउंट रेट (Merchant Discount Rate- MDR) किसी डेबिट या क्रेडिट कार्ड द्वारा लेन-देन पर भुगतान प्रसंस्करण सेवाओं के लिए व्यापारी से ली गई शुल्क दर को कहा जाता है। इस दर से प्राप्त रकम दुकानदार या कम्पनी के पास नहीं जाती . Read More
बदतर या बेहतर? भारत के लिए यह तय करने का समय आ गया है कि वो कैसी आर्थिक नीति अपनाना चाहता है
पुराने नीति-निर्माताओं का कथित पाखंड भारत में राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारने वाला साबित होता है, लेकिन उसे यह तय करना होगा कि क्या वह एक सॉफ्ट पावर के तौर पर प्रशंसा हासिल करना चाहता है या एक मनमाने रवैये वाले राष्ट्र के तौर पर पहचान बनाना चाहता है.
प्रज्ञा घोष का चित्रण | दिप्रिंट
जैसा, पिछले सप्ताह इसी कॉलम में उल्लेख किया था, भारत ने मौजूदा समय में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक शानदार मुकाम हासिल कर लिया है. ब्रिटेन को पछाड़कर 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के बाद, यह वास्तव में एक दशक के भीतर ही जर्मनी (अब भारत से केवल 16 प्रतिशत बड़ी अर्थव्यवस्था) और जापान (24 प्रतिशत बड़ी) को भी पीछे छोड़ देने की उम्मीद कर सकता है.
देश को इसके लिए बस इतना ही करना होगा कि बड़ी गलतियां करने से बचे और अपनी गति बनाए रखे. इस सबके बीच, तात्कालिक तौर पर एक सवाल उठना लाजिमी है, देश के पास कौन-सी अन्य विशेषताएं, जिसमें संस्थागत संरचना भी शामिल है, होनी चाहिए जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर आदर्श रूप से इसमें निहित हों?
अब जवाब तलाशने के लिए जरा इस पर गौर कीजिए—क्या तथाकथित ‘व्यक्तिगत डेटा संरक्षण’ विधेयक का नया मसौदा भारत के प्रति आकर्षण बढ़ाने वाला होगा जिसकी अपने मनमाफिक नियम बनाने के लिए सरकार को वस्तुतः असीमित अधिकार देने को लेकर व्यापक स्तर पर खासी आलोचना की जा रही है.
एक बिजनेस डेस्टिनेशन के तौर पर देश की प्रतिष्ठा का क्या हाल होगा जब अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता समझौतों पर अमल रोकने के लिए घरेलू अदालतों का इस्तेमाल किया जा रहा हो? अब सत्ता प्रतिष्ठान के साथ व्यापारिक कुलीन वर्गों की बढ़ती नजदीकी पर भी गौर करें जिससे आम तौर पर प्रतिस्पर्द्धा के समान अवसर बाधित होते हैं? और इसका क्या असर पड़ता होगा कि शासन मनमानी कार्रवाई पर उतारू है, जैसे कोर्ट में मामला शुरू किए बिना लोगों को सालों तक जेल में रखना?
वैसे, इन सवालों को अप्रासंगिक मानकर खारिज किया जा सकता है क्योंकि चीन ने पिछले कुछ दशकों में एक-दलीय शासन के तहत तेज वृद्धि और विकास के लक्ष्य हासिल किए है, जहां नागरिकों को दूरदराज के इलाकों में बंधक बनाकर रखा जाता है और व्यवसायों को कार्यस्थल में बेहद प्रतिकूल स्थितियों का सामना करना पड़ता है.
अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक
दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं
हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.
दुनिया में संशयवाद ऐसी स्थितियों में और बढ़ता है जहां मध्य क्रम की शक्तियां एक उदार लोकतंत्र के मूल्यों की अवहेलना करती हैं, जो खास तौर पर यूरोपियन इनलाइटेनमेंट (ज्ञानोदय काल) से उपजे हैं, और इसके बजाय राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक-पहचान की राजनीति को पूजते हैं (और ‘एशियाई मूल्यों’ को याद रखें).
यह तब और भी मजबूत हो जाता है जब ग्लोबलाइजेशन का नतीजा खासकर उन देशों में इनवर्ड-लुकिंग पॉलिसी (घरेलू उद्योगों के हितों पर जोर देने वाली नीतियां) के तौर पर सामने आता है, जिन्होंने कभी खुले बाजारों के लिए सबसे पुरजोर तरीके से वकालत की थी.
इसलिए, भारत को यह तय करना होगा कि वह सरकार-बिजनेस के संदर्भ में कैसे रिश्ते चाहता है, और उसे स्टेट-सिटीजन समीकरण से जोड़ना होगा. ऐसा करते समय उसे खुद से यह अवश्य पूछना चाहिए कि हजारों की संख्या में अमीर भारतीय सिंगापुर, दुबई और इसी तरह अन्य जगहों की तरफ पलायन क्यों कर रहे हैं. उन्हें भारत में क्या कमी महसूस होती है? यह सिर्फ स्वच्छ हवा या अच्छे स्कूल और अस्पताल उपलब्ध होने से जुड़ा नहीं हो सकता. क्या यह नियमों के पालन से जुड़ी सामान्य बात भी हो सकती है?
अपनी प्राथमिकताएं तय करते समय भारत को इस तथ्य पर भी गौर करना होगा कि यह चीन नहीं है, जिसके निवेश से जुड़े अटपटे नियमों और ऑपरेशनल अनिश्चितताओं को अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने कारोबार की लागत के हिस्से के तौर पर स्वीकार कर लिया था, क्योंकि चीन के घरेलू बाजार की गतिशीलता और आकार तो विशाल है ही, प्रोडक्शन बेस के रूप में इसके फायदे ऐसे रहे जिनकी अनदेखी करना संभव नहीं था.
इसकी तुलना में, भारत के सामने ऐसे प्रतिस्पर्द्धी हैं जो खुद को बेहतर निवेश विकल्प के तौर पर पेश करते हैं. वे भले घरेलू स्तर पर एक बड़े बाजार का अतिरिक्त लाभ न दे सकते हो, लेकिन भारत के मामले में भी स्थिति उतनी दमदार नहीं है, जितनी दो दशक पहले चीन के साथ थी. भारत को अभी लंबा रास्ता तय करना है, और उसे खुद को चीन से बेहतर खिलाड़ी साबित करना होगा.
ये बात भी निश्चित तौर पर सच है कि जिन देशों ने अपने नागरिकों के साथ व्यवहार के मामले में खुद को एक बेहतरीन उदाहरण की तरह पेश किया है, वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मामले उन प्रतिबद्धताओं के पालन में खरे नहीं उतरे जिसका राग अलापते रहे हैं. सामान्यत: यह बात किसी से छिपी नहीं है कि गैर-टैरिफ व्यापारिक बाधाओं में जापानियों को विशेषज्ञता हासिल है, उसी तरह यह भी एक तथ्य है कि अमेरिका एकतरफा नियम बनाता है—जैसे बाकी दुनिया को यह बताना कि कौन उसके साथ व्यापार कर सकता है और कौन नहीं, और विदेशों में रूस की तमाम वित्तीय संपत्तियों को जब्त करना आदि.
बिजनेसमैन जानते ही हैं कि जापान में किसी विदेशी के लिए किसी स्थानीय संस्था के खिलाफ अदालती मामला जीतना बहुत ही ज्यादा कठिन होता है, और यह भी कि यूरोप उतना ही संरक्षणवादी रहा है, जितना आमतौर पर कोई जूता चुभने पर होता है.
पुराने नीति-निर्माताओं के कथित पाखंड या दिखावटी सिद्धांतों को बाजार संरचना लेकर ऐसी जागरूकता भारत की राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारने में मददगार साबित होती है. फिर भी, अंतत: भारत को यह तय करना होगा कि वह किस तरह का देश बनना चाहता है—ऐसा जिसे अपनी सॉफ्ट पावर के लिए उतनी ही प्रशंसा मिले, जितनी अपने बाजार के लिए. या फिर मनमाने रवैये वाला एक ऐसा राष्ट्र जो लोगों और व्यवसायों के साथ वैसा ही बर्ताव करे जैसा करना चाहता है, क्योंकि आकार और गतिशीलता के कारण यह अंतरराष्ट्रीय दबाव से परे है. क्या भारत सिर्फ पॉवर गेम खेलेगा या फिर नैतिक मूल्यों के साथ आगे बढ़ेगा?
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)